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एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटPIBआईएनएस विराट दुनिया का सबसे पुराने विमानवाहक युद्धपोत था जिसे तीस साल की सेवा के बाद
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आईएनएस विराट दुनिया का सबसे पुराने विमानवाहक युद्धपोत था जिसे तीस साल की सेवा के बाद आधिकारिक तौर पर 6 मार्च 2017 को रिटायर किया गया था.
आईएनएस विराट को नौसेना में 'ग्रैंड ओल्ड लेडी' भी कहा जाता था. आईएनएस विराट नौसेना की शक्ति का प्रतीक था जो कहीं भी जाकर समुद्र पर धाक जमा सकता था.
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इमेज कॉपीरइटPIBब्रिटेन से ख़रीद
आईएनएस विराट ने 30 साल भारतीय नौसेना की सेवा की और 27 साल ब्रिटेन की रॉयल नेवी के साथ गुज़ारे. वर्ष 1987 में भारत ने इसे ब्रिटेन से ख़रीदा था.
उस वक्त इसका ब्रितानी नाम एचएमएस हरमीज़ था. ब्रितानी रॉयल नेवी के साथ विराट ने फॉकलैंड युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
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करीब 100 दिनों तक विराट समुद्र में मुश्किल परिस्थितियों में रहा.
इस जहाज़ पर 1944 में काम शुरू हुआ था. उस वक्त दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था. रॉयल नेवी को लगा कि शायद इसकी ज़रूरत न पड़े तो इस पर काम बंद हो गया.
लेकिन जहाज़ की उम्र 1944 से गिनी जाती है. 15 साल जहाज़ पर काम हुआ. 1959 में ये जहाज़ रॉयल नेवी में शामिल हुआ.
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इमेज कॉपीरइटPIBजहाज़ या शहर
226 मीटर लंबा और 49 मीटर चौड़ा आईएनएस विराट भारतीय नौसेना में शामिल होने के बाद जुलाई 1989 में ऑपरेशन जूपिटर में पहली बार श्रीलंका में शांति स्थापना के लिए ऑपरेशन में हिस्सा लिया.
वर्ष 2001 में भारतीय संसद पर हमले के बाद ऑपरेशन पराक्रम में भी विराट की भूमिका थी.
समुद्र में 2250 दिन गुज़ारने वाला ये महानायक छह साल से ज़्यादा वक्त समुद्र में बिताए और इस दौरान इसने दुनिया के 27 चक्कर लगाने में 1,094,215 किलोमीटर का सफर किया.
ये जहाज़ अपने आप में एक छोटे शहर जैसा था. इस पर लाइब्रेरी, जिम, एटीएम, टीवी और वीडियो स्टूडियो, अस्पताल, दांतों के इलाज का सेंटर और मीठे पानी का डिस्टिलेशन प्लांट जैसी सुविधाएं थीं.
इमेज कॉपीरइटAdmiral Arun Prakash
28700 टन वजनी इस जहाज़ पर 150 अफ़सर और 1500 नाविकों की जगह थी. अगस्त 1990 से दिसंबर 1991 तक रिटायर्ड एडमिरल अरुण प्रकाश आईएनएस विराट के कमांडिंग अफ़सर रहे.
पुराने रिश्ते
एडमिरल अरुण प्रकाश आईएनएस विराट से तीन दशक पुराने रिश्ते को याद करते हैं. वो बताते हैं कि जून 1983 में उनसे बोला गया कि वो लैंडिंग और टेक-ऑफ़ की प्रैक्टिस करें.
वो इंग्लिश चैनल पोर्ट्समथ के पास पहुंचे. वहां वो एचएमएस हरमीज़ या आईएनस विराट पर हेलिकॉप्टर से उतरे. उन्हें पूरा जहाज़ दिखाया गया.
ये पहली पहचान बेहद रोमांचक लगी. वो इससे पहले आईएनएस विक्रांत पर सफ़र कर चुके थे. विक्रांत 18000 टन का जहाज़ था. विराट उससे कहीं भारी था.
इमेज कॉपीरइटAdmiral Arun Prakash
वो हवाई जहाज़ से विमान में बैठे और टेक ऑफ़ किया. एक घंटे बाद डेक पर वर्टिकल लैंडिंग की. 1987 में जब जहाज़ मुंबई आया तो एडमिरल अरुण प्रकाश एक छोटी फ़्रिगेट को कमांड कर रहे थे.
तकनीकी विशेषज्ञ
वो बताते हैं, “हमें बोला गया कि सब जाकर विराट का स्वागत करो. वो मॉनसून का बहुत ही तूफ़ानी दिन था. हम मुंबई के बाहर गए. लगातार बारिश हो रही थी, तेज़ हवा चल रही थी. दूर से हमने देखा जहाज़ को. वो दृश्य शानदार था. मुझे अगस्त 1990 (दिसंबर 1991 तक) में जहाज़ की कमान मिली.”
एडमिरल अरुण प्रकाश के मुताबिक आईएनएस विराट ने तटरक्षा के अलावा नौसेना की दो पीढ़ियों के पायलटों, इंजीनियर, तकनीकी विशेषज्ञों को बहुत कुछ सिखाया.
इमेज कॉपीरइटAdmiral Arun PrakashImage caption 1983 में तीन सी हैरियर विमानों को ब्रिटेन से भारत लाने के बाद उस वक्त कमांडर अरुण प्रकाश ऐडमिल डॉसन के साथ.
वो बताते हैं, ये खुश रहने वाला जहाज़ था. इसमें रहने, खाने का अच्छा बंदोबस्त था.
जहाज़ पर मीठे पानी बनाने का डिस्टिलेशन प्लांट था तो आप शाम को नहा सकते थे. इसमें ख़राबियां कम होती थीं. फौज की गढ़वाल रेजिमेंट के साथ इसका जुड़ाव था.
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