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एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटNeeraj PriyadarshiImage caption पहले ये मस्जिद थी लेकिन 1989 के दंगों के बाद इसे मंदिर ब
इमेज कॉपीरइटNeeraj PriyadarshiImage caption पहले ये मस्जिद थी लेकिन 1989 के दंगों के बाद इसे मंदिर बना दिया गया
हिन्दू नववर्ष के उपलक्ष्य में चैत्र रामनवमी के समय भागलपुर हमेशा ही सुर्ख़ियों में रहता है. वजह है इस मौक़े पर आयोजित होने वाले रामनवमी के जुलूस. और उस दौरान हिंदू तथा मुसलमानों के बीच पैदा होने वाली तनावपूर्ण स्थिति.
कहने के लिए तो ये एक शोभा यात्रा होती है, लेकिन दिखाने के लिए ताक़त का इस्तेमाल होता है. अभी तक के जुलूसों में देखा गया है कि सरेआम हथियार लहराए जाते हैं. डीजे की तेज़ बीट पर भड़काऊ गाने बजाए जाते हैं. नारे लगाए जाते हैं.
तनाव वाली स्थिति तब पैदा होती है जब जुलूस नाथनगर और इसके आसपास के मुस्लिम बहुल इलाक़ों से गुज़रता है.
पिछली बार के रामनवमी जुलूस के दौरान पैदा तनाव के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत चौबे पर आरोप लगा था.
नाथनगर थाने में अर्जित के ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज हुई थी. बाद में उन्होंने ख़ुद पटना पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया.
इस बार फिर से रामनवमी के मौक़े पर जुलूस अथवा शोभा यात्रा का आयोजन किया गया था.
पटना से भागलपुर जाने के लिए फरक्का एक्सप्रेस पकड़ने के दौरान जब हम पटना जंक्शन पहुंचे तो वहां का नज़ारा हैरान कर देने वाला था.
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रामनवमी अगले दिन थी. लेकिन पटना जंक्शन महावीर मंदिर के गेट पर आठ बजे रात से ही लाइन लगनी शुरु हो गई थी. एक दिन पहले से ही राम भक्तों की ऐसी आस्था देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि अगर पटना के रामभक्त ऐसे हो सकते हैं तो फिर भागलपुर के रामभक्तों का आलम कैसा होगा.
सुबह के साढ़े तीन बजे तक हम भागलपुर पहुंच चुके थे. रेलवे स्टेशन से बाहर निकलने पर नज़ारा रामनवमीमय दिख रहा था. सड़कों पर वंदनद्वार बनाए गए थे. चारों तरफ़ भगवा लहरिया और पताकाएं लहरा रही थीं. शहर के मंदिरों को धोने और साफ़-सफ़ाई का काम चल रहा था. सुबह रामनवमी की पूजा होनी थी और जुलूस निकलने थे.
लेकिन सुबह होने पर रामभक्तों के लिए एक बुरी ख़बर आई. और वो यह कि जुलूस को शनिवार के लिए रोक दिया गया था. ज़िला प्रशासन ने किसी को जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी थी.
प्रशासन के अनुसार शनिवार को भागलपुर में पुलिस बल की संख्या कम थी. जुलूस बेहद संवेदनशील मसला था, इसलिए कोई भी चूक भारी पड़ सकती थी.
एहतियातन शनिवार के बजाय रविवार को जुलूस निकालने का तय हुआ. रामनवमी के पूरे दिन मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा.
कैसे निकला जुलूस और उस दौरान क्या हुआ
रविवार को दिन के दो बज रहे थे. शहर के हर चौक चौराहे पर सुरक्षा बलों की मुस्तैदी थी. साथ चल रहे स्थानीय पत्रकार रंजन सिंह ने कहा कि आम दिनों में भागलपुर की सड़कों पर इतनी पुलिस नहीं होती है. इस बार चुनाव और रामनवमी साथ हैं, इसलिए सतर्कता ज़्यादा है.
रामनवमी पर निकलने वाली भगवा क्रान्ति की शोभा यात्रा/जुलूस फिलहाल आदमपुर चौक पर थी. जिस गाड़ी पर राम की आदमक़द मूर्ति को रखकर घुमाया जा रहा था, वह आदमपुर चौक के पास पंक्चर हो गई थी.
इमेज कॉपीरइटNeeraj PriyadarshiImage caption पंक्चर हुआ रामनवमी का रथ
गौशाला से निकला जुलूस क़रीब ढाई घंटे तक आदमपुर चौक पर ठहरा रहा. जब जुलूस वहां पहु़ंचा था तब मुश्किल से 60-70 लोग उसमें शामिल दिख रहे थे. लेकिन राम रथ का पंक्चर ठीक होने तक वहां सैकड़ों की भीड़ जमा हो गई थी.
माथे पर केसरिया साफा लपेट कर और भगवा वस्त्र धारण किए रामभक्तों के हाथों में झंडे भी भगवा ही थे. हर झंडे पर लिखा था जय श्री राम. कुछ के हाथों में तिरंगा भी दिख रहा था. नारे लग रहे थे… “वंदे मातरम-जय श्री राम”.
आदमपुर चौक से मनाली चौक होते हुए कचहरी चौक, फिर घंटाघर चौक, ख़लीफ़ाबाग चौक, कोतवाली चौक होते हुए तिलकामांझी यूनिवर्सिटी के रास्ते जुलूस को बूढ़ानाथ (वृद्धेश्वरनाथ) मंदिर तक जाना था.
ख़लीफ़ाबाग चौक पहुंचते-पहुंचते जुलूस विशाल रूप धारण कर चुका था. नारों की गूंज बढ़ती जा रही थी. आगे-आगे मोटरसाइकिल से चल रहे युवकों ने एक्सलरेटर तेज़ कर दिया था. लहरिया कट मारते हुए आगे बढ़ रहे थे. हॉर्न की आवाज़ इतनी तेज़ कि राह चलते लोग अचानक सकपका जाते. महिलाएं और बच्चे पहले से रास्ता छोड़कर सड़क के किनारे खड़े हो जाते.
जुलूस जिस रास्ते से गुज़रता वो रास्ता थोड़ी देर के लिए ब्लॉक हो जा रहा था. कुछ सड़कों पर गाड़ियों की लंबी क़तारें लगी थीं. पुलिस भी जुलूस के साथ चल रही थी.
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अभी तक सबकुछ ठीक चल रहा था. जुलूस की मंज़िल क़रीब आ रही थी. बूढ़ानाथ मंदिर से पहले चौक पर सब लोग इकट्ठे हो रहे थे. अब आख़िरी पड़ाव आने वाला था, इसलिए जो लोग जुलूस को बीच से छोड़ कर चले गए थे वो भी आख़िर में शामिल हो जाना चाहते थे.
वृद्धेश्वर नाथ मंदिर वाली गली की शुरुआत में ही एक मस्जिद मिलती है. अगल बगल कुछ मुसलमानों के घर और दुकानें भी हैं.
चौक तक जुलूस के आने की सूचना पाकर दुकानदार बाहर से रखे हु़ए अपने सामान अंदर करने लगे. कुछ दुकानों के शटर भी गिर चुके थे.
जैसे ही जुलूस ने गली में प्रवेश किया, अचानक लड़के उग्र हो गए. नारेबाज़ी तेज़ हो गई. पतली सी गली में एक साथ दर्जनों लोग हॉर्न बजा रहे थे, कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था.
मस्जिद के सामने जुलूस थोड़ी देर के लिए ठहर गया. ढोल, ताशे, नगाड़े बजने लगे. नारेबाज़ी तेज़ हो गई. अगल बग़ल के घर-परिवारों से बड़े, बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं सभी देख रहे थे कि किस तरह कु़छ अतिउत्साही युवा भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे चीख़-चीख़ कर लगा रहे हैं.
रामनवमी में वंदे मातरम और भारत माता की जय लगाने का मक़सद या फिर औचित्य क्या है?
जुलूस को लीड कर रहे भगवा क्रांति के अध्यक्ष सह संस्थापक कुणाल सिंह बीबीसी को कहते हैं, “हमारा एक ही मक़सद है राम मंदिर को बनवाना. आज राम का जन्म हुआ था. हमलोग उसी का उत्सव मना रहे हैं. भगवा क्रांति का उद्देश्य है भेदभाव की करो विदाई, सारे हिंदू भाई-भाई.”
पिछली बार नाथनगर में जो विवाद हुआ था और उसके बाद तनाव की स्थिति पैदा हुई थी, क्या उसमें भगवा क्रांति के लोग नहीं थे?
कुणाल साफ़ इन्कार कर देते हैं. वे कहते हैं, “वो कौन लोग थे उसकी जांच वीडियो के ज़रिए हुई थी. अगर भगवा क्रांति के लड़के होते तो अबतक पहचान में आते नहीं! किया कोई और था, आरोप हमपर लगा दिया गया.”
तो वे कौन लोग थे? कुणाल कहते हैं, मुझे कैसे मालूम कौन लोग थे. अब आप ही बताइए कि इतने बड़े जुलूस में कोई हुड़दंगी आकर घुस जाता है तो मैं कैसे रोक पाउंगा उसको?''
पुलिस के रिकार्ड में पिछले साल की हिंसा के आरोप अर्जित शाश्वत चौबे के अलावा कुणाल सिंह पर भी लगे थे. बावजूद इसके एक बार फिर से उन्हें जुलूस निकालने की इजाज़त मिल गई.
उस घटना के मुख्य अभियुक्त भाजपा नेता अर्जित शाश्वत चौबे ने भी बीबीसी से बातचीत में एक दिन पहले कहा था कि वे भी जुलूस में ज़रूर रहेंगे. हालांकि, अर्जित दिख नहीं रहे थे.
अर्जित की फेसबुक टाइम लाइन बता रही थी कि वे पटना में हुए रामनवमी जुलूस में शामिल हो चुके थे. पटना में शनिवार को ही जुलूस निकाल लिया गया था.
सवाल यही है कि जिनपर पिछली बार हिंसा फैलाने और दंगा भड़काने के आरोप लगे थे, उन्हें फिर से जुलूस निकालने की अनुमति कैसे मिल गई?
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भागलपुर के डीआईजी विकास वैभव कहते हैं, “ऐसा बिल्कुल नहीं है. हमलोगों ने इस बार सिर्फ़ पांच संस्थाओं को जुलूस निकालने की इजाज़त दी है. इसमें वो संस्थाएं नहीं हैं जिनपर पिछली दफ़े आरोप लगे थे.”
संस्थाएं भले बदल गई हो, लेकिन लोग तो वही हैं जुलूस में! यह पूछने पर डीआईजी वैभव कहते हैं, “हां, क्योंकि लोगों को हम पूजा-अर्चना से रोक नहीं सकते हैं. वैसे हमारी नज़र उनपर लगातार बनी हुई है. चप्पे चप्पे पर पुलिस की तैनाती की गई है. डीजे बजाने, हथियार लहराने पर प्रतिबंध है. जुलूस का रास्ता पहले से निर्धारित है. उन इलाक़ों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है जहां तनाव रहता है.”
इस बार नाथनगर नहीं गया जुलूस!
जैसा कि डीआईजी विकास वैभव कहते हैं, “रामनवमी के जुलूस को नाथनगर और आसपास के इलाक़ों में जाने से प्रतिबंधित कर दिया गया है.”
वैसे इस तरह का प्रतिबंध पिछले साल भी लगा था. लेकिन फिर भी जुलूस वहां बोरिंगबाड़ी चौक पहुंच गई थी.
तो क्या इसबार नाथनगर नहीं गया जुलूस? जवाब वहीं के एक स्थानीय बुनकर अब्दुल रशीद देते हैं, “सवाल ही नहीं है आने का. पिछली बार पिट के गए थे. और उस समय तो हमलोग तैयार भी नहीं थे. अब हर वक़्त तैयार रहते हैं.”
इमेज कॉपीरइटNeeraj PriyadarshiImage caption डीआईजी विकास वैभव
क्या अब्दुल और उनके आसपास के लोगों को अब रामनवमी से डर लगता है? कहते हैं, “डर मत कहिए. लेकिन शंका ज़रूर रहती है. और हमें उनके जुलूस या शोभा यात्रा से कोई समस्या नहीं है. समस्या है उन बातों से, उन नारों से, उन गानों से जो वो लोग यहाँ आकर बजाते हैं. अगर कोई जय श्री राम कहे तो हमें क्या ही दिक्क़त होगी, लेकिन वो अगर हमारी टोपी उतारने की बात करने लगे, हमें पाकिस्तान भेजने की बात करने लगें तो हमें दिक्क़त होगी ही. पिछली बार यही तो हुआ था.”
क्या हुआ था पिछली बार?
अब्दुल राशिद ने कहा, “अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित अपने समर्थकों के साथ आए. डीजे और बाजा सब लेकर आए थे. हमलोगों ने कुछ नहीं कहा. मगर जब वे माइक से टोपी उतारने और पाकिस्तान चले जाने की बात करने लगे. डीजे पर इसी बोल के साथ गाना बजवाने लगे, तब हमने प्रतिकार किया. इसी में विवाद बढ़ गया.”
बग़ल में खड़े मोहम्मद सज्जाद, अब्दुल को रोकते हुए कहते हैं, “एक बात बताइए अगर वो लोग भागलपुर के बोरिंग बाड़ी चौक पर आकर पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाते हैं, हमें पाकिस्तान जाने की नसीहत देते हैं, तो क्या पाकिस्तान उनकी बात सुन लेगा? वो जानबूझकर भड़काने के लिए ही तो करने आते हैं.”
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पिछले साल सुलग रहा बोरिंगबाड़ी चौक इस साल शांत था. चौक के लोगों के मुताबिक़ इस बार नाथनगर में कोई जुलूस नहीं गया.
चूँकि अभी चुनाव का वक़्त है और हिन्दुत्व तथा राष्ट्रवाद अपने चरम पर है (ख़ुद प्रधानमंत्री चुनावी भाषणों में इसका ज़िक्र करते हैं), इसलिए आशंकाए और डर पहले से कहीं अधिक थीं. लेकिन इस साल की रामनवमी हर बार से अच्छी रही. भागलपुर में कहीं से कोई अप्रिय घटना नहीं सुनने को मिली.
अंत में सवाल यही बच जाता है कि आख़िर रामनवमी पर भागलपुर क्यों याद आता है?
भागलपुर के रहने वाले पत्रकार विवेकानंद सिंह कहते हैं, “आम तौर पर वहां की ख़बरें तब बनती हैं, जब कोई घटना-दुर्घटना हो जाती है. दो पक्षों के बीच तनाव बढ़ जाता है. लेकिन उसके पहले वहां क्या चल रहा होता है, जुलूस में कौन लोग शामिल होते हैं, क्या करते हैं, किस तरह खुलेआम हथियार लहराए जाते हैं, भड़काऊ और दंगाई गाने बजाए जाते हैं, पुलिस भी रहती है. सबलोग रहते हैं. लेकिन ये सब चलता है. इसी में किसी दूसरे धर्म वाले को ख़राब लग जाता है, और वह रिएक्ट करता है. तब तनाव बढ़ जाता है.”
इस बार रामनवमी के जुलूस के कारण भागलपुर सुर्खियों में नहीं है. इसे एक अच्छे संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए.
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