简体中文
繁體中文
English
Pусский
日本語
ภาษาไทย
Tiếng Việt
Bahasa Indonesia
Español
हिन्दी
Filippiiniläinen
Français
Deutsch
Português
Türkçe
한국어
العربية
एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटSUNNY SHARAD/BBC"असली चौकीदार तो हम हैं, लेकिन हमें पिछले पांच महीने से वेतन नहीं मिला ह
इमेज कॉपीरइटSUNNY SHARAD/BBC
“असली चौकीदार तो हम हैं, लेकिन हमें पिछले पांच महीने से वेतन नहीं मिला है. और यह एक महीने की कहानी नहीं है. हमें कभी भी समय पर वेतन नही मिलता है. कभी आवंटन नहीं आता, तो कभी सभी जिलों की एक साथ रिपोर्ट नहीं जाती. अलग-अलग जिलों में वेतन भुगतान की अलग-अलग साइकिल है. कहीं पर चौकीदारों को अक्टूबर-2018 से वेतन नहीं मिला, तो कोई नवंबर से इसके इंतजार में है. इस इंतजार में होली भी कट गई. सरकार हमारी सुनती नहीं. ऊपर से दावा यह कि सरकार ही चौकीदार है. अब अगर सरकार ही चौकीदार है, तो प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जी हर महीने की एक तारीख को वेतन क्यों ले लेते हैं. उन्हें भी हमारी तरह पांच-पांच महीने इंतजार करना चाहिए.”
झारखंड चौकीदार व दफादार पंचायत (संघ) के अध्यक्ष कृष्ण दयाल सिंह यह कहते हुए उत्तेजित हो जाते हैं. उन्हें इस बात की तकलीफ है कि मौजूदा वक्त में चौकीदार शब्द का राजनीतिकरण हो चुका है. कोई चिल्ला-चिल्ला कर खुद को चौकीदार कह रहा है, तो कोई 'चौकीदार चोर है' के नारे लगवा रहा है.
'चौकीदार रघुवर' चौकीदारों से नहीं मिलते
इमेज कॉपीरइटSUNNY SHARAD/BBCImage caption कृष्ण दयाल सिंह
कृष्ण दयाल सिंह ने बीबीसी से कहा - ऐसे राजनेता चौकीदारी व्यवस्था को ही नहीं समझते. गुप्त काल से चली आ रही यह व्यवस्था उनके लिए राजनीति का मुद्दा है. उनके मन में हमारे लिए न तो सम्मान है और न उन्हें हमारी दिक्कतों से कोई मतलब. इस कारण झारखंड के करीब दस हजार चौकीदारों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा. तमाम आंदोलन को बावजूद मुख्यमंत्री रघुवर दास को हमसे मिलने की फुर्सत भी नहीं है. अब वे किस अधिकार से खुद को चौकीदार कह रहे हैं. उन्होंने पिछले चार साल से हमसे कोई मुलाकात नहीं की.
भूख से मर गए दस चौकीदार
उन्होंने दावा किया कि नौकरी से बर्खास्त कर दिए गए दस चौकीदारों की मौत भूखमरी और बीमारी से हो गई है. सिमडेगा जिले के एक चौकीदार को जैसे ही बर्खास्तगी का नोटिस थमाया गया, उनको हर्ट अटैक हुआ और उनकी तत्काल मौत हो गई.
इसके बावजूद नौकरी से बर्खास्त किए गए सैकड़ों चौकीदारों की सेवाएं वापस लेने के लिए झारखंड सरकार ने कोई प्रयास नहीं किया.
क्या है विवाद
इमेज कॉपीरइटSUNNY SHARAD/BBC
गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि साल 1995 में बिहार की तत्कालीन लालू यादव की सरकार ने चौकीदारों के आश्रितों को चौकीदार की नौकरी देने का प्रावधान किया था.
साल 2000 में अलग राज्य बनने के बाद झारखंड में करीब सत्रह हजार चौकीदारों के पदों की स्वीकृति मिली. जून-2002 में झारखंड की तत्कालीन गृह सचिव सुषमा सिंह के वक्त गृह विभाग ने एक पत्र निकाल कर बिहार सरकार की उस व्यवस्था को झारखंड में भी जारी रखने का आदेश दिया.
इसके बाद चौकीदारों की सेवानिवृति के बाद उनके नामित आश्रितों की नियुक्तियां की गईं. लेकिन, झारखंड सरकार ने साल 2014 की 23 मई को एक आदेश निकाल कर वैसे सभी चौकीदारों की सेवाएं स्थगित कर दी, जिनकी नियुक्ति जनवरी-1990 के बाद चौकीदारों के नामित आश्रित होने के कारण की गई थी.
इस कारण करीब 600 चौकीदार बर्खास्त कर दिए गए. तबसे यह मामला विवादों में है.
क्या है उपाय
इमेज कॉपीरइटSUNNY SHARAD/BBCImage caption झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास
चौकीदार-दफादार पंचायत के झारखंड प्रमुख कृष्ण दयाल सिंह कहते हैं कि सरकार सरकार चाहे तो अध्यादेश लाकर इनकी सेवाएं फिर से बहाल कर सकती है. लेकिन, मुख्यमंत्री जी फैशन वाले चौकीदार हैं, इसलिए हमारी इस मांग का उनपर कोई असर नहीं हो रहा है.
जबकि साल 2015 उन्होंने हमारी इस मांग पर सहमति जताते हुए कहा था कि वे इनकी सेवाएं वापस कराने की कोशिश करेंगे.
चौकीदार प्राइड
इमेज कॉपीरइटSUNNY SHARAD/BBCImage caption महेंद्र गोप
इटकी (रांची) के एक चौकीदार महेंद्र गोप कहते हैं कि अब जब प्रधानमंत्री - मुख्यमंत्री और बड़े-बड़े मंत्री खुद को चौकीदार कह रहे हैं, तो यह सुनकर अच्छा लगता है. लेकिन, क्या इससे हमारा पेट भर जाएगा. हमें वेतन नहीं मिल रहा है और यह हमारी सबसे बड़ी समस्या है.
उऩके लिए चौकीदार लिखना ट्विटर का नया फैशन होगा. हमारे लिए यह अस्तित्व और पहचान से जुड़ा शब्द है.
जब बेरंग हो गई होली
इमेज कॉपीरइटSUNNY SHARAD/BBCImage caption रामकिशनु गोपी
वहीं, चौकीदार दफादार पंचायत के रांची जिले के उपाध्यक्ष रामकिशुन गोप ने बताया कि सरकार का स्पष्ट आदेश है कि चौकीदारों को सिर्फ अपनी बीट पर काम करना है.
गांवों में रहना है लेकिन थाना प्रभारी हमें बैंक ड्यूटी, डाक लाने-लेजाने और शहरों में लगा देते हैं. हम उनके इस आदेश को भी मानते हैं.
इसके बावजूद हमारा वेतन हर महीने नहीं मिलता. इस कारण हमारे बच्चों की होली बेरंग हो गई. इसकी जवाबदेह वही सरकार है, जो खुद के चौकीदार होने का दावा कर रही है.
राजनीति का यह दौर त्रासद है
इमेज कॉपीरइटSUNNY SHARAD/BBC
चौकीदारों की समस्याओं पर लंबे वक्त तक काम करने वाले पत्रकार सन्नी शारद बताते हैं कि यह राजनीति का नया दौर है. यहां हर कोई चौकीदार है.
इसके बावजूद चौकीदारों को वेतन के लाले हैं तो इससे ज्यादा त्रासद स्थिति और क्या होगी. सरकार को इस समस्या के समाधान की पहल करनी चाहिए.
अस्वीकरण:
इस लेख में विचार केवल लेखक के व्यक्तिगत विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं और इस मंच के लिए निवेश सलाह का गठन नहीं करते हैं। यह प्लेटफ़ॉर्म लेख जानकारी की सटीकता, पूर्णता और समयबद्धता की गारंटी नहीं देता है, न ही यह लेख जानकारी के उपयोग या निर्भरता के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के लिए उत्तरदायी है।