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एब्स्ट्रैक्ट:Image caption आयुध निर्माणी प्रोजेक्ट कोरवा अमेठी के ज़िला मुख्यालय गौरीगंज से क़रीब 12 किमी. दूर को
Image caption आयुध निर्माणी प्रोजेक्ट कोरवा
अमेठी के ज़िला मुख्यालय गौरीगंज से क़रीब 12 किमी. दूर कोरवा गांव में हिन्दुस्तान एअरोनॉटिकल लिमिटेड यानी एचएएल की इकाई है. इसी के बड़े से कैंपस के भीतर रक्षा उत्पादों और उपकरणों को बनाने की एक फ़ैक्ट्री है, जिसका नाम है आयुध निर्माणी प्रोजेक्ट कोरवा.
यूं तो इस ऑर्डनेंस फ़ैक्ट्री का साल 2007 में ही शिलान्यास हुआ था और पिछले क़रीब छह साल से यहां उत्पादन भी शुरू हो चुका है लेकिन रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब इस फ़ैक्ट्री को लेकर पिछली यूपीए सरकार और अमेठी से सांसद राहुल गांधी पर तंज़ कसा तो ये फ़ैक्ट्री फिर चर्चा में आ गई.
प्रधानमंत्री ने कोरवा से क़रीब पंद्रह किलोमीटर दूर अमेठी की रैली में कहा, जिस फ़ैक्ट्री में साल 2010 से काम शुरू हो जाना चाहिए था, तब तक उसकी बिल्डिंग लटकी रही. 2013 में जैसे-तैसे काम शुरू भी हुआ, लेकिन आधुनिक राइफ़ल तब भी नहीं बनी."
लेकिन, सभा में मौजूद रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण तो यहां तक कह गईं, रूस के सहयोग से अत्याधुनिक एके 203 गन हम कोरवा के जिस ऑर्डनेंस फ़ैक्ट्री में बनाने जा रहे हैं, वह फ़ैक्ट्री बीस-तीस साल से ऐसे ही पड़ी है, वहां कुछ भी काम नहीं हो रहा है."
प्रधानमंत्री इस रैली में इंडो-रूस राइफ़ल प्राइवेट लिमिटेड के संयुक्त उपक्रम की शुरुआत कर रहे थे जिसके तहत अत्याधुनिक एके 203 राइफ़ल्स का निर्माण भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के विभाग आयुध निर्माणी बोर्ड और रूस की दो कंपनियों रोसोबोरोन एक्सपर्ट और कंसर्न कलाश्निकोव के सहयोग से किया जाएगा.
पूरा निर्माण कार्य उसी ऑर्डनेंस फ़ैक्ट्री में होगा जो साल 2013 से रक्षा उपकरण और अत्याधुनिक राइफ़लें बना रही है.
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Image caption यूनिट के प्रभारी अधिकारी एससी पांडेय
यूनिट के प्रभारी अधिकारी एससी पांडेय ने बीबीसी को बताया, साल 2007 में इस यूनिट की स्थापना सेना के लिए कार्बाइन गन्स बनाने के लिए हुई थी. साल 2013 से ही यहां हम यहां पंप एक्शन गन यानी पीएजी और रक्षा संबंधी दूसरे उपकरणों का निर्माण कर रहे हैं."
अब यहां उन्नत श्रेणी की एके 203 राइफ़ल्स बनाई जाएंगी. इसके लिए ज़्यादातर संयंत्र और मशीनें यूनिट में पहले से ही उपलब्ध हैं. रूसी कंपनियों से हमें और उन्नत तकनीक मिलेगी."
एससी पांडेय के मुताबिक़, यहां बनी हुई पीएजी राइफ़ल्स उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल की पुलिस न सिर्फ़ इस्तेमाल कर रही हैं बल्कि पिछले वित्तीय वर्ष में इकाई को 17 करोड़ रुपये का राजस्व यानी वैल्यू ऑफ़ इश्यू भी मिला है. उनके मुताबिक, अन्य सालों में भी इसी तरह राजस्व की प्राप्ति हुई है.
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दरअसल, प्रधानमंत्री ने जिस तरीक़े से इस परियोजना को अपनी सरकार की उपलब्धि बताया और कांग्रेस पार्टी को सैन्य उपकरणों के प्रति उदासीन बताते हुए घेरने की कोशिश की, उससे कांग्रेस पार्टी में खलबली मच गई.
ख़ुद राहुल गांधी ने बेहद कड़े शब्दों में ट्वीट करके प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि अमेठी में ये फ़ैक्ट्री पहले से ही और बंदूकें बना भी रही है, जिसका उद्घाटन उन्होंने ख़ुद किया था.
इमेज कॉपीराइट @RahulGandhi@RahulGandhi
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राहुल गांधी अमेठी से लगातार तीसरी बार सांसद हैं. अमेठी में उनके प्रतिनिधि चंद्रकात दुबे कहते हैं, प्रधानमंत्री को तो राहुल गांधी और यूपीए सरकार को धन्यवाद देना चाहिए कि उन्हें बना-बनाया इंफ़्रास्ट्रक्चर मिल गया, जहां कितनी भी अत्याधुनिक राइफ़ल या अन्य रक्षा उपकरण बना सकते हैं."
सरकार ने नया कुछ नहीं किया है, सिवाए इसके कि रक्षा उपकरणों के निर्माण में निजी क्षेत्र, वो भी विदेशी कंपनी को अनुमति दे दी है. बाक़ी सब यहां पहले से ही मौजूद थीं और काम कर रही थीं."
वहीं रक्षा मंत्री ने भले ही ये कहा हो कि कारखाना वर्षों से बेकार पड़ा है लकिन वास्तविकता ये है कि इस कारखाने में ए और बी श्रेणी के अधिकारियों समेत दो सौ से ज़्यादा स्थाई और इतने ही अस्थाई कर्मचारी काम कर रहे हैं.
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक़, इस यूनिट का लक्ष्य शुरुआत में 45 हज़ार कार्बाइन गन्स हर साल बनाने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन ऐसा इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि सेना ये तय ही नहीं कर पाई कि उसे किस गुणवत्ता की कार्बाइन चाहिए.
इमेज कॉपीरइटcag.gov.inImage caption कैग की रिपोर्ट 'कंप्लायंस ऑडिट ऑन आर्मी एंड ऑर्डनेन्स फ़ैक्ट्रीज़' में इस बात का ज़िक्र है कि 2007 में अमेठी के कोरवा में 4.8.01 करोड़ रुपये की लागत से ऑर्डनेंस फ़ैक्ट्री बनाने के प्रस्ताव को हरी झंडी दी गई थी. इस फ़ैक्ट्री की स्थापना सेना की ज़रूरत के अनुसार 367 महीनों के भीतर अत्याधुनिक कार्बाइन्स को बनाने के लिए किया गया था.
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Image caption अमेठी में राहुल गांधी के प्रतिनिधि चंद्रकात दुबे आशंकाएं और विरोध
जानकारों के मुताबिक़, रक्षा मंत्रालय के तहत काम करने वाले विभाग ओफ़बी यानी ऑर्डनेंस फ़ैक्ट्री बोर्ड के अधीन देश भर में आज कुल 41 ऑर्डनेंस फ़ैक्ट्रियां हैं और ये बोर्ड ही तय करता है कि किस फ़ैक्ट्री में क्या बनना है. इनमें से चार यूनिट्स ऐसी हैं जिनमें छोटे हथियार और उपकरण बनते हैं.
बताया जा रहा है कि भारत सरकार की 'मेक इन इंडिया' नीति के तहत संयुक्त उपक्रम का गठन किया गया है. इसके तहत 7.5 लाख राइफ़लों का उत्पादन किया जाएगा. इन राइफ़लों की आपूर्ति तीनों सेनाओं और एवं केंद्रीय सुरक्षा बलों की जाएगी. यह राइफ़ल विकास के साथ धीरे-धीरे पूरी तरह से स्वदेशी हो जाएगा.
लेकिन ये आशंका भी जताई जा रही है कि रूसी कंपनी एके 203 से जुड़े सारे छोटे उपकरण यहां लाएगी और इस यूनिट में उन्हें सिर्फ़ जोड़ा जाएगा यानी केवल असेंबलिंग का काम होगा.
रक्षा मंत्रालय के ऑर्डनेंस विभाग के ही एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि रूसी कंपनियों की ओर से भारत को किसी तरह की तकनीक का हस्तांतरण नहीं किया जाएगा.
जानकारों के मुताबिक़, रक्षा क्षेत्र में निजी निवेश को खोलने के मुद्दे पर सरकार चारों तरफ़ से घिरी है. यह मामला ज़्यादा उछलने न पाए, इसलिए एके-203 के निर्माण की अभी सिर्फ़ योजना भर बनी है, फिर भी इसे इतना ज़्यादा प्रचारित किया जा रहा है.
वहीं, फ़ैक्ट्री के भीतर कर्मचारियों को इस बात की भी आशंका है कि विदेशी निवेश के चलते कहीं उनकी नौकरी ही संकट में न पड़ जाए.
यहां के कर्मचारी संगठन संयुक्त संघर्ष समिति ने 25 फ़रवरी से दो मार्च तक काली पट्टी बांधकर अपना विरोध प्रदर्शन किया था. कर्मचारियों ने सरकार के इस निर्णय का विरोध भी किया था और उच्चाधिकारियों को एक ज्ञापन भी दिया था. हालांकि इस मुद्दे पर कोई भी कर्मचारी आधिकारिक रूप से कुछ भी कहने से हिचिकचा रहे हैं.
बहरहाल, रूसी कंपनियों के साथ ऑर्डनेंस फ़ैक्ट्री बोर्ड का अभी सिर्फ़ संयुक्त उपक्रम बना है, एके 203 के निर्माण का कार्य तो दूर, अभी इस नई कंपनी की रुपरेखा भी बहुत स्पष्ट नहीं है.
ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि एके 203 की इस परियोजना के ज़रिए, बीजेपी अमेठी में कांग्रेस के गढ़ को ढहा पाएगी या नहीं.
अस्वीकरण:
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