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एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटFACEBOOK/Rameswar Teliडिब्रूगढ़ के सांसद रामेश्वर तेली ने 30 मई की शाम जैसे ही कैबिनेट र
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डिब्रूगढ़ के सांसद रामेश्वर तेली ने 30 मई की शाम जैसे ही कैबिनेट राज्य मंत्री की शपथ ली, उनका नाम अचानक राष्ट्रीय फलक पर चर्चा में आ गया.
असम के दुलियाजान क्षेत्र से दो बार विधायक रह चुके रामेश्वर तेली साल 2014 में डिब्रूगढ़ सीट से बीजेपी की टिकट पर पहली बार सांसद बने थे लेकिन बीते पांच सालों में वे राष्ट्रीय राजनीति में कोई ख़ास पहचान नहीं बना सके.
बावजूद इसके तेली को नरेंद्र मोदी सरकार में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया है. कभी खेतों में ठेला खींचने वाले तेली ने इससे पहले अपने राजनीतिक जीवन में इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी कभी नहीं निभाई है.
48 साल के तेली चाय जनजाति समुदाय से आते हैं. उन्होंने ऑल असम टी ट्राइब स्टूडेंट्स यूनियन में बतौर छात्र नेता काम करते हुए इलाके में अपनी राजनीतिक ज़मीन तैयार की. तेली जिस विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र से आते है उन सीटों पर चाय जनजाति के मतदाताओं के वोट निर्णायक होते है. छात्र संगठन में काम करने के दौरान ही तेली ने अपने इलाके के चाय जनजाति समुदाय के लोगों में अच्छी पकड़ बना ली थी.
रामेश्वर तेली ने नई जिम्मेदारी को लेकर बीबीसी से कहा, “वैसे तो मैं विभाग में नया हूं. लेकिन केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरप्रीत कौर बादल से विभागीय अनुभव ले रहा हूं. अधिकारियों से भी चीज़ें समझने की कोशिश कर रहा हूं. राज्य मंत्री के तौर पर मुझे पूरे देश के हर तबके के लिये बराबर सोचना होगा. ”
इमेज कॉपीरइटFACEBOOK/RAMESHWAR TELIकैसे बीजेपी से जुड़े रामेश्वर तेली?
रामेश्वर तेली से लंबे समय से परिचित उनके पड़ोसी और अब सहायक देबजीत दत्ता ने बीबीसी से कहा, “चाय जनजाति स्टूडेंट्स यूनियन में एक छात्र नेता के तौर पर लंबे समय तक काम करने के बाद 12 जुलाई 1999 को तेली भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. असम की राजनीति में यह वो दौर था जब क्षेत्रीय पार्टी असम गण परिषद के शासन के बाद कांग्रेस बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. उस समय प्रदेश में बीजेपी काफी कमज़ोर पार्टी मानी जाती थी.”
वो कहते हैं, “पिछली मोदी सरकार में रेल राज्य मंत्री रहे राजेन गोंहाई असम बीजेपी के अध्यक्ष थे और उस दौर में यहां बीजेपी का टिकट मिलना इतना मुश्किल काम नहीं था. लिहाजा चाय जतजाति के मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए 2001 के विधानसभा चुनाव में रामेश्वर तेली को बीजेपी ने दुलियाजान से टिकट दे दिया. ये एक ऐसी सीट थी जहां कांग्रेस को हराना लगभग नामुमकिन था लेकिन तेली ने उस साल भारी मतों से जीत दर्ज की और ऊपरी असम से बीजेपी के इकलौते विधायक बने.”
इस तरह दूसरी बार भी तेली दुलियाजान विधानसभा से चुने गए लेकिन साल 2011 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार झेलनी पड़ी. लोगों का आरोप था कि तेली बतौर विधायक अपने इलाके का उतना विकास नहीं कर पाएं जितना दूसरे इलाकों का हुआ.
उनके समर्थक दावा करते हैं कि इसका एक और कारण था कि उस समय प्रदेश में कांग्रेस 10 साल से शासन कर रही थी. लिहाजा विपक्षी विधायकों के समक्ष फंड आंवटित कराने से लेकर कई तरह की चुनौतियां थी.
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रामेश्वर तेली
खेतों में ठेला चलाते हैं
एक बार किसी घटना पर प्रतिक्रिया लेने के लिए जब मैंने रामेश्वर तेली को फ़ोन कर पूछा कि वो चुनाव हारने के बाद क्या कर रहे हैं तो उन्होंने बिना किसी झिझक के कहा था कि वो खेतों में ठेला चलाते है.
दरअसल रामेश्वर तेली को नजदीक से जानने वाले कहते हैं कि उनके के चेहरे पर हमेशा दिखने वाली मुस्कान और उनकी सादगी ने आज उन्हें केंद्रीय राज्य मंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया है.
उनकी इसी सादगी का जिक्र करते हुए देबजीत दत्ता कहते हैं, “10 साल तक विधायक और पिछले पांच साल से लोकसभा सांसद होने के बाद भी तेली दुलियाजान के टिपलिंग पुराना घाट इलाके में बांस और टिन के बने घर में अपनी मां के साथ रहते है.साल 2011 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद तेली आजीविका के लिए मुर्गी पालन के काम में लग गए थे. कई बार खेत में सामान ढोने के लिए वे खुद ठेला खींचते थे.”
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इमेज कॉपीरइटDEBAJIT/BBCछत्तीसगढ़ से असम आए तेली अविवाहित हैं
रामेश्वर तेली का परिवार वर्षों पहले छत्तीसगढ़ से असम के चाय बागानों में काम करने आया था और वो हमेशा के लिए यहीं बस गए.
ऑयल इंडिया कंपनी में काम करने वाले रामेश्वर तेली के छोटे भाई भुवनेश्वर तेली ने बीबीसी से बात कहा, “वर्षों पहले हमारे दादा-परदादा छत्तीसगढ़ से यहां के चाय बागानों में काम करने आए थे. हम चार भाई-बहनों में रामेश्वर भैया सबसे बड़े हैं और हम सबका जन्म यहीं हुआ है.”
अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को लेकर भुवनेश्वर कहते हैं, “हमारा बचपन काफी आर्थिक तंगी में गुजरा है. पिता बुद्धू तेली ड्राइवर थे और मां दुक्ला तेली चाय बागान में मजदूर का काम करती थीं. इन परिस्थितियों का सामना करने के लिए भैया (रामेश्वर तेली) और मैं चाय की गुमटी के सामने पान-सुपारी का डाला लगाया करते थे.”
वो कहते हैं, “कई दफा हमने रास्ते के किनारे सब्जियां बेची हैं. आर्थिक स्थिति के कारण वो ज़्यादा पढ़ाई नहीं कर सके. लेकिन समाज के लिए कुछ करने का जज्बा उनमें शुरू से था. अपने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में वे इतने व्यस्त हो गए कि उन्होंने शादी तक नहीं की.”
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रामेश्वर तेली का परिवार
तेली का परिवार
रामेश्वर तेली के पिता का देहांत हो चुका है और परिवार में अब भी उनके कई चाचा ठेला चलाकर, गैस सिलेंडर की डेलीवरी कर और अख़बार बेचकर अपना गुजारा करते है. केंद्रीय राज्य मंत्री बनने के बाद तेली के परिवार को लोगों की कैसी प्रतिक्रिया मिल रही है?
इस सवाल पर भुवनेश्वर कहते है, “हम बेहद साधारण लोग है. भैया को आज यह मकाम यहां के लोग और समाज की बदौलत ही मिला है. हमारी मां बहुत खुश हैं. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि चाय बागान में काम करने वाली एक मजदूर का बेटा एक दिन देश का मंत्री बन जाएगा.”
मां का जिक्र करते हुए रामेश्वर तेली ने बीबीसी से कहा, “मेरी मां साधारण है, वो मेरे इस पद और मुकाम के बारे में इतना कुछ नहीं जानतीं. लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि 'तुम जैसे पहले थे वैसे ही रहना और सभी के प्रति काम करना'.”
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'काम के पैमाने पर पीछे'
रामेश्वर तेली की सादगी की जितनी चर्चा होती है उतनी उनके काम की नहीं होती.
डिब्रूगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार राजीव दत्ता कहते हैं, “तेली की सादगी पर कोई सवाल नहीं है. वास्तव में वो एक आम आदमी की तरह रहते हैं लेकिन तेली 10 साल दुलियाजान के विधायक रहे, पांच साल सांसद रहे उसके आधार पर अगर उनके काम का आकलन करें तो उसे अच्छा प्रदर्शन नहीं कहा जा सकता.”
वो कहते हैं, “डिब्रूगढ़ के सांसद के तौर पर वे क़रीब आठ से दस करोड़ सांसद पूंजी खर्च ही नहीं कर पाए. तेली खुद चाय जनजाति से आते है लेकिन वे चाय मजदूरों की समस्याओं का कोई हल नहीं निकाल पाए. आज भी चाय जनजाति के लोग बदतर जीवन जी रहे हैं.”
अगर ऐसा ही है तो वे इतने बड़े अंतर से इस बार फिर कैसे जीत गए?
इस पर दत्ता कहते हैं, “डिब्रूगढ़ लोक सभा सीट पर चाय जनजाति के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते रहें हैं. साल 2014 में नरेंद्र मोदी की लहर थी और तेली को टिकट दिया गया था. इस बार भी ऐसा ही हुआ लोग मोदी को वोट डालने निकले थे.”
इमेज कॉपीरइटPIBचाय जनजाति का मिला फायदा
वो कहते हैं, “डिब्रूगढ़ लोकसभा सीट का इतिहास रहा है, इससे पहले चाय जनजाति से आने वाले कांग्रेस के पवन सिंह घटवार यूपीए-2 की मनमोहन सरकार में राज्य मंत्री बनाए गए थे. तेली भी उसी चाय जनजाति से हैं.”
“ऐसा नहीं है कि असम में रामेश्वर तेली से बड़ा नेता नहीं है. प्रदेश बीजेपी में सर्वानंद सोनोवाल, हिंमंत विश्व शर्मा सरीखे के कई बड़े नेता है लेकिन तेली का मजबूत आधार यह है कि वो शुरू से बीजेपी में है और चाय जनजाति समुदाय से आते हैं.”
रामेश्वर तेली पर डिब्रूगढ़ के मुसलमानों से दूरी बनाए रखने के भी आरोप लगते रहें हैं. डिब्रूगढ़ के रहने वाले जहीर अहमद की शिकायत है कि असम एक ऐसा प्रदेश है जहां सब लोग आपसी भाई-चारे के साथ रहते हैं लेकिन जब राजनीति की बात होती है तो विचारधारा बदल जाती है.
जब बीबीसी ने उनसे पूछा कि आप मुसलमानों से दूरी बना कर रखते हैं तो उन्होंने कहा, “कुछ लोग ऐसा सोचते हैं, लेकिन मोदी सरकार की उज्जवला योजना के तहत हमने सबसे ज़्यादा मुस्लिम बहनों को ही सिलेंडरें दी हैं. ”
मंत्री बने तेली से सबसे ज़्यादा उम्मीद चाय जनजाति और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को है.
खुद तेली कहते हैं, “मेरा विभाग पूरे देश में अगले सौ दिन में 1140 करोड़ रुपये से ज़्यादा खर्च करेगा. पूर्वोत्तर पर ज़्यादा ध्यान रहेगा, विशेष कर चाय जनजाति पर.”
तेली असम से मंत्रिमंडल में शामिल एकमात्र चेहरा हैं.
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