简体中文
繁體中文
English
Pусский
日本語
ภาษาไทย
Tiếng Việt
Bahasa Indonesia
Español
हिन्दी
Filippiiniläinen
Français
Deutsch
Português
Türkçe
한국어
العربية
एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटAFPImage captionपाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ़ गफूरजासूसी के आरोप में पाकिस
इमेज कॉपीरइटAFPImage caption
पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ़ गफूर
जासूसी के आरोप में पाकिस्तानी सेना ने अभूतपूर्व फैसला लेते हुए अपने दो आला अधिकारियों को सज़ा-ए-मौत और उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई है.
हाल के सालों में राजनेताओं के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के अभियान के बीच न्यायपालिका और सेना जैसी संस्थाओं को भी जवाबदेह बनाने की मांग बढ़ी है.
पाकिस्तानी सेना की ओर से जारी बयान के अनुसार, दो रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों और एक असैन्य अधिकारी को विदेशी एजेंसियों को संवेदनशील जानकारियां लीक करने के मामले में सज़ा दी गई है.
कौन हैं ये अधिकारी?
रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल जावेद इक़बाल को 14 साल सश्रम कारावास की सज़ा दी गई है.
अपने कार्यकाल में वो बहुत ऊंची हैसियत में काम कर चुके हैं. वो सेना के उस विंग में डायरेक्टर जनरल थे जो देश के सैन्य संचालन में रणनीति और योजना के लिए जवाबदेह है.
एडजुटेंट जनरल के रूप में उन्होंने सेना में अनुशासन और जवाबदेही तय करने वाले विभाग के मुखिया के रूप में भी काम किया है.
दूसरे सैन्य अफ़सर हैं रिटायर्ड ब्रिगेडियर रजा रिज़वान. वो जर्मनी में पाकिस्तान मिलिटरी के अटैची रह चुके हैं.
पाकिस्तान: कुलभूषण से पहले भारत के कितने 'जासूस'
पाकिस्तान ने दिखाया 'भारतीय जासूस' का वीडियो
इमेज कॉपीरइटReuters
उन्हें जासूसी के आरोप में मौत की सज़ी दी गई है. रजा रिज़वान पिछले साल इस्लामाबाद के जी-10 इलाक़े से ग़ायब हो गए थे.
उनके लापता होने पर उनके परिवार ने इस्लामाबाद हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.
बाद में रक्षा मंत्रालय ने कोर्ट को बताया कि वो सैन्य हिरासत में हैं और ऑफ़िशियल सीक्रेट एक्ट के तहत उन पर मुक़दमा चलाया जा रहा है.
डॉ. वसीम अकरम सिविलियन अफ़सर हैं. सेना के बयान के अनुसार, वो एक संवेदनशील संस्था में काम कर रहे थे.
डॉ. अकरम को भी मौत की सज़ा दी गई है. उन पर अन्य देशों की ख़ुफ़िया एजेंसियों को संवेदनशील जानकारियां मुहैया कराने के आरोप थे.
क्या है मामला?
ये अभूतपूर्व था, लेकिन इस ख़बर से हैरानी नहीं है. पिछले कुछ महीनों से मीडिया में सेना के दो आला अधिकारियों की गिरफ़्तारी की ख़बरें आ रही हैं.
संवाददाता सम्मेलन में सैन्य प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ़ ग़फ़ूर ने इन गिरफ़्तारियों की पुष्टि की थी.
उन्होंने कहा, “सैन्य प्रमुख ने कोर्ट मार्शल का आदेश दिया था, जो अभी चल रहा है. लेकिन ये मामले एक दूसरे से जुड़े नहीं हैं बल्कि अलग हैं और ये किसी नेटवर्क का मामला नहीं है.”
उन्होंने ये भी वादा किया था कि जब कार्रवाई पूरी हो जाएगी तो वो इसकी जानकारी सार्वजनिक करेंगे.
इमेज कॉपीरइटReutersजासूसी पर पाकिस्तानी क़ानून क्या है?
इन गिरफ़्तार अधिकारियों पर ऑफ़िशियल सीक्रेट एक्ट के तहत मुक़दमा चलाया गया. सरकारी सेवा में शामिल होने वाले हर व्यक्ति को चाहे वो सैन्य हो या असैन्य, उसे ऑफ़िशियल सीक्रेट एक्ट पर हस्ताक्षर करने होते हैं.
इस क़ानून के मुताबिक़ अधिकारियों पर संवेदनशील जानकारियों को उम्र भर गोपनीय रखने की ज़िम्मेदारी होती है.
इस क़ानून के उल्लंघन की सज़ा उम्रक़ैद या फांसी होती है.
सैन्य अधिकारियों को पाकिस्तान आर्मी एक्ट के तहत अलग-अलग मामलों में फ़ील्ड जनरल कोर्ट मार्शल के द्वारा सज़ा दी गई.
पहले भी हुईहै सज़ा
ऐसा पहली बार नहीं है कि अदालत ने आला अधिकारियों को सज़ा सुनाई है. साल 2012 में चार सैन्य अधिकारियों को प्रतिबंधित संगठन हिज़्बुल तहरीर से संबंध रखने के लिए सज़ा सुनाई गई थी.
इसमें ब्रिगेडियर अली ख़ान का नाम भी शामिल था. ख़ान पर सरकार का तख़्तापलट की साज़िश में शामिल रहने का आरोप था. साथ ही उन पर सेना में विद्रोह और पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय पर हमले की साज़िश रचने के आरोप थे.
साल 2015 में दो रिटायर्ड सैन्य जनरलों को भ्रष्टाचार के आरोप में सैन्य अदालत ने सज़ा सुनाई थी.
एक साल बाद एक लेफ़्टिनेंट जनरल, एक मेजर जनरल, पांच ब्रिगेडियर, तीन कर्नल और एक मेजर समेत 11 सैन्य अधिकारियों को सार्वजनिक धन के ग़बन के आरोप में सेना से बर्ख़ास्त कर दिया गया था.
उनकी रैंक, रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली सुविधाएं छीन ली गई थीं.
इस साल की शुरुआत में आईएसआई के पूर्व मुखिया असद दुर्रानी के साथ भी ऐसा ही हुआ था. उनपर सेना के आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप लगे.
भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ के पूर्व मुखिया एएस दुलत के साथ मिलकर एक किताब 'द स्पाई क्रॉनिकल्स' लिखने का आरोप लगा.
असद दुर्रानी को देश से बाहर न जाने देने वालों की लिस्ट में डाल दिया गया.
हालांकि हाल के सालों में सेना पर जवाबदेही वाली संस्था होने और ये साबित करने का बहुत दबाव रहा है कि वो अन्य संस्थाओं से ऊपर नहीं है.
इमेज कॉपीरइटAFP
रक्षा विश्लेषक इम्तियाज़ गुल के अनुसार, “ये सेना के अंदर चलने वाली सतत प्रक्रिया है. लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है कि सेना ने इसे सार्वजनिक किया. इससे निश्चित ही उसकी छवि सुधरेगी.”
वो मानते हैं कि ये क़दम आम जनता में सेना के बारे में बनी धारणा और राजनीतिक दबाव को कम करने वाला है. इसके अलावा इससे वे देश के अंदर और बाहर भी एक संदेश भेजना चाह रहे थे.
डॉ सलमा मलिक इस्लामाबाद के क़ायदे-आज़म यूनिवर्सिटी में रक्षा और रणनीतिक अध्ययन में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं.
वो कहती हैं, “संदेश साफ़ है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में कोई समझौता नहीं होगा, चाहे इसके ज़िम्मेदार सिविलियन हों या सेना की वर्दी पहनने वाले.”
डॉक्टर सलमा ने आगे कहा, “इसका मक़सद था सेना की जवाबदेही को और प्रचारित करना और इस धारणा को तोड़ना कि सेना देश में सभी संस्थाओं से ख़ुद को ऊपर समझती है.”
सलमा कहती हैं, “ये शुरुआती पहलक़दमी है, ये संदेश देने के लिए कि आला अधिकारियों से भी क़ानून के तहत सवाल पूछे जा सकते हैं.”
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिककर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूबपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
अस्वीकरण:
इस लेख में विचार केवल लेखक के व्यक्तिगत विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं और इस मंच के लिए निवेश सलाह का गठन नहीं करते हैं। यह प्लेटफ़ॉर्म लेख जानकारी की सटीकता, पूर्णता और समयबद्धता की गारंटी नहीं देता है, न ही यह लेख जानकारी के उपयोग या निर्भरता के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के लिए उत्तरदायी है।