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एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटEPAसंसद के सेंट्रल हॉल में हुई राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की बैठक में प्रधानमंत
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संसद के सेंट्रल हॉल में हुई राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश सत्ता भाव नहीं बल्कि सेवा भाव को स्वीकार करता है. अपने भाषण में उन्होंने अल्पसंख्यकों का भी ज़िक्र किया और सांसदों को नसीहत भी दी. उन्होंने सभी नवनिर्वाचित सांसदों से बिना भेदभाव के काम करने को भी कहा.
पीएम मोदी ने कहा, ''सत्ता में रहते हुए लोगों की सेवा करने से बेहतर अन्य कोई मार्ग नहीं है. हम उनके लिए हैं जिन्होंने हम पर भरोसा किया और उनके लिए भी हैं जिनका हमें 'विश्वास' जीतना है.''
उनके इस भाषण में क्या ख़ास रहा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से सभी के प्रति समान रवैया रखने और अल्पसंख्यकों की और उपेक्षा न होने देने की बात कही, उससे वह क्या संदेश देना चाहते हैं? क्या है उनके इस भाषण के मायने?
इसके जवाब में वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं, “कड़वाहट से भरे चुनाव अभियान के बाद का दिया गया भाषण था और सरकार बनने जा रही है तो भविष्य की संभावनाएं भी दिखाई देती हैं. इसलिए दो-तीन बातों के कारण यह बेहद महत्वपूर्ण भाषण है. इनकी बातों को हमें याद रखने की ज़रूरत है. आने वाले समय में इनमें से कुछ बातें तो देखने को मिलेगी.”
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह भाषण एक स्टेट्समैन के तौर पर देखा जा सकता है.”
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'सबका विश्वास' के क्या हैं मायने?
बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए का नेता चुने जाने के बाद अपने करीब 75 मिनट के भाषण में मोदी ने अल्पसंख्यकों का भी विश्वास जीतने की ज़रूरत बताते हुए कहा कि वोट-बैंक की राजनीति में भरोसा रखने वालों ने अल्पसंख्यकों को डर में जीने पर मजबूर किया, हमें इस छल को समाप्त कर सबको साथ लेकर चलना होगा.
उन्होंने कहा कि 'सबका साथ, सबका विकास के साथ अब सबका विश्वास' नारा है. उन्होंने ये भी कहा कि अल्पसंख्यकों के साथ किए गए छल में भी छेद करना है.
इस पर वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं, “अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतना है. चुप नहीं रहना है. सब साथ चलेंगे तभी सबका साथ सबका विकास होगा. मुस्लिमों का साथ देने पर वो बहुत मुखर दिखे. उन्होंने चुनाव के दौरान देखा कि मुस्लिम बीजेपी के ख़िलाफ़ एकजुट हो जाते हैं, उसे वो तोड़ना चाहते हैं. और तोड़ना कैसे चाहते हैं. उनका विश्वास जीत कर. सरकार की योजनाओं में उनसे बिना भेदभाव किये उसका लाभ देकर.”
वहीं वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी इस पर कहते हैं, “मोदी मानते हैं कि अल्पसंख्यकों के साथ छल हुआ है. इसके पीछे यह वजह हो सकती है कि वो कोशिश कर रहे हैं कि देश के मुसलमानों के मन में किसी चीज़ को लेकर कुंठा न रहे.उन्होंने ये एक सकारात्मक बात कही.”
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'नेशनल एम्बिशन रीजनल ऐस्पिरेशन' के मायने?
अपने भाषण में नरेंद्र मोदी ने “राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा और क्षेत्रीय आकांक्षा” को जोड़कर 'नारा' (NARA) (National Ambitions Regional Aspiration) की बात की.
इस पर प्रदीप सिंह कहते हैं, “यह देश को जोड़ने वाला भाषण है. उन्होंने पांच साल में देखा कि क्षेत्रीय दलों का महत्व बढ़ रहा है तो उन्होंने 'नारा' दिया. उन्होंने कहा कि ये दोनों जब तक नहीं मिलेंगी तब तक देश के विकास में मुश्किल होगी. उनका मतलब ये था कि राष्ट्रीय पार्टियां क्षेत्रीय आकांक्षाओं को तवज्जो नहीं देती तभी क्षेत्रीय दलों का प्रसार हो रहा है.”
वहीं प्रमोद जोशी कहते हैं कि “इतनी बड़ी पार्टी होने के बावजूद वो सभी दलों को साथ लेकर चल रहे हैं और साथ लेकर चलना चाहते हैं. व्यापक परिप्रेक्ष्य में पार्टी या हमारा नेता सोच रहा है तो इससे संभावनाएं बनती हैं हमारे मन में.”
'सिनर्जी है तो एनर्जी है' के मायने?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्षेत्रीय पार्टियों के विषय में कहा कि 'एनर्जी भी है सिनर्जी भी है.'
प्रदीप सिंह कहते हैं, “मोदी के यह कहने का मतलब था कि मिल कर साथ चलेंगे तभी बात बनेगी. उन्होंने कहा भी कि जो हमारे साथ हैं उन्हें आश्वस्त करता हूं कि वो हमारे साथ रहेंगे लेकिन हमें नए जो आ सकते हैं उनके बारे में भी सोचना है. उनकी नज़र एनडीए के विस्तार पर है. उनका इशारा वाईएसआर कांग्रेस, टीआरएस और बीजेडी की तरफ था.”
प्रदीप सिंह कहते हैं, “जनता जनार्दन थी इसलिए ये चुनाव मेरे लिए तीर्थयात्रा थी. ये सरकार ग़रीबों के लिए काम करेगी. ग़रीब बहुत उम्मीद नहीं करता, तो थोड़ा उनका हाथ थामिए तो वो देश को बदलने में बड़ी भूमिका निभा सकता है.”
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इमेज कॉपीरइटAFP/Gettyसांसदों, विधायकों, कार्यकर्ताओं को नसीहत
अपने भाषण में मोदी ने पार्टी के लोगों को अहंकार में नहीं आने की नसीहत दी. उन्होंने सांसदों और पार्टी के लोगों से अहंकार नहीं आने देने के लिए कहा. उन्होंने कहा कि अहंकार आयेगा तो सेवा भाव चला जाएगा.
प्रमोद जोशी कहते हैं, “अनुशासन, सतर्कता, जागरूकता और राष्ट्रीय ज़रूरतों के मुताबिक खुद को बदलने और अपने में ढालने की अपील अच्छी है.”
“मोदी ने अपने पार्टी के लोगों को जो अहंकार नहीं आने देने की नसीहत दी उसका मतलब था कि इससे सेवाभाव चला जायेगा और यदि सेवाभाव चला गया तो वो जनता के लिए कुछ नहीं कर सकेंगे तो फिर दोबारा चुन कर नहीं आ सकेंगे. यानी उन्हें दोबारा जनता का आशीर्वाद नहीं मिलेगा. उन्होंने यह कहा कि मोदी ने नहीं जिताया है और इस ग़लतफ़हमी में मत रहें कि आपकी लोकप्रियता की वजह से आप जीते हैं बल्कि यह जनता जनार्दन जिसने आपको जिताया है.”
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इमेज कॉपीरइटGetty Imagesउम्मीद जगाने वाला भाषण
प्रमोद जोशी कहते हैं “चुनाव की राजनीतिक में काफी चीज़ें बांटती है लेकिन कुछ चीज़ें जोड़ती भी हैं. चुनाव के दौरान सभी ने देखा कि कितनी कड़वाहट थी. लेकिन इसके नतीजे के बाद एक एकता दिखती है. जाति, धर्म, संप्रदाय या क्षेत्र से निकलकर ऊपर उठने की संभावना दिखायी पड़ती है. लोगों ने एक पार्टी को चुना है. अब यदि सरकार भी अपने कार्यक्रमों और योजनाओं में ऐसी चीज़ों को शामिल करेगी तो अच्छी बात निकलेगी.”
यह एक औपचारिक भाषण है लेकिन क्या इस तरह के भाषणों के भी मतलब होते हैं?
प्रमोद जोशी कहते हैं, “इस तरह के भाषण से सरकार की नीतियां या कार्यक्रम निकल कर आते हैं. इन्हीं बातों को याद किया जाता है. उनका भाषण उम्मीद जगाने वाला है. इसमें बहुत सारी ऐसी चीज़ें थीं जो अच्छी थी.”
वो कहते हैं, “नरेंद्र मोदी की छवि एक कठोर और भावनाओं से दूर व्यक्ति की बनाई हुई है. उनके इस भाषण से उनकी बेहतर छवि बनेगी और देश को भी यदि यह रास्ता दिखाया जा सके तो बहुत अच्छी बात है. कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि नई सरकार को नए अंदाज़ में देखेंगे.”
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