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एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesसत्रहवीं लोकसभा की 543 सीटों में से 483 सीटों पर जनता का फ़ैसला फ़िलहाल ईवीए
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सत्रहवीं लोकसभा की 543 सीटों में से 483 सीटों पर जनता का फ़ैसला फ़िलहाल ईवीएम में बंद हो चुका है.
बीते एक महीने से जारी मैराथन चुनाव का आख़िरी चरण 19 मई को है.
जनता का अंतिम निर्णय अपने पक्ष में मोड़ने के लिए, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी आठ राज्यों की 59 लोकसभा सीटों पर होने वाला अंतिम चरण का यह मतदान अहम है.
अंतिम चरण के चुनाव में सबसे ज़्यादा चर्चा पूर्वी उत्तर प्रदेश की 13 लोकसभा सीटें की है.
वजह साफ़ है- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा सीट वाराणसी और प्रियंका गांधी को पूर्वांचल का कांग्रेस प्रभारी बनाया जाना. पूर्वांचल की इन 13 सीटों पर भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस की प्रतिष्ठा भी दांव पर है.
इमेज कॉपीरइटReuters प्रतिष्ठा का प्रश्न
प्रतिष्ठा सिर्फ़ बीजेपी और कांग्रेस की ही दांव पर नहीं है बल्कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का साथ भी सवालों के घेरे में है. यहां कुछ सीटों पर त्रिकोणीय, तो कुछ पर बहुकोणीय मुक़ाबला है.
पूर्वांचल की महाराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, ग़ाज़ीपुर, चंदौली, मिर्ज़ापुर और रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीटों के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वर्तमान सीट वाराणसी में भी 19 मई को अंतिम चरण में वोट डाले जाएंगें.
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesसीटों का गणित
इन सीटों पर महागठबंधन की ओर से सपा ने 8 और बसपा से 5 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं. जबकि दूसरी ओर भाजपा ने 11 और पूर्वांचल में उनकी सहयोगी पार्टी अपना दल ने बाकी 2 सीटों- मिर्ज़ापुर और रॉबर्ट्सगंज में अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं.
साथ ही यहां कांग्रेस सीधे-सीधे 11 सीटों पर चुनावी मैदान में है. वहीं कांग्रेस को अपना समर्थन घोषित कर चुकी जन अधिकार पार्टी एक सीट (चंदौली) पर लड़ रही है.
पूर्वांचल की इन 13 सीटों पर चुनाव लड़ रहे सबसे महत्वपूर्ण नामों की फ़ेहरिस्त वाराणसी से दूसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शुरू होती है.
साथ ही केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा, अफ़ज़ाल अंसारी, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर महेन्द्र नाथ पांडेय, अनुप्रिया पटेल, रमापति राम त्रिपाठी, ललितेश त्रिपाठी, रवि किशन, संजय सिंह चौहान, रतनजीत प्रताप नारायण सिंह (आरपीएन सिंह) और शिव कन्या कुशवाहा वो चंद महत्वपूर्ण नाम हैं जिन पर पूर्वांचल में सबकी नज़र बनी रहेगी.
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यहां यह याद रखना ज़रूरी है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में इन 13 सीटों में 12 सीटों पर भाजपा ने ख़ुद जीत हासिल की थी. जबकि एक सीट पर उनकी सहयोगी पार्टी अपना दल ने चुनाव जीता था.
ऐसे में एक ओर जहां पूर्वांचल में अंतिम चरण की तैयारियां ज़ोरों पर हैं. वहीं दूसरी ओर, मतदाताओं को लुभाने के लिए दिन-रात एक कर रहे प्रत्याशी प्रचार के आख़िरी दिनों में अपनी पूरी ताक़त चुनाव प्रचार में झोंक रहे हैं.
लेकिन सवाल ये है कि क्या भाजपा 2014 की सफलता की कहानी इस बार इन 13 सीटों पर दोहरा पाएगी?
यूं तो उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में पड़ने वाले 24 ज़िलों में सिमटा पूर्वांचल, हर बड़े चुनाव में अपने भौगोलिक दायरों से आगे बढ़कर नतीजों और राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करता रहा है.
लेकिन यहां सवाल यह भी है कि भाजपा को चुनौती दे रहे- महागठबंधन और कांग्रेस के उम्मीदवार इस अंतिम चरण में पूर्वांचल की कितनी बहुचर्चित सीटों को अपने खाते में ला पाते हैं.
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Image caption पूर्वांचल पूर्वांचल का महत्व
काशी से लेकर मगहर तक, मोक्ष और नर्क के पौराणिक द्वारों के बीच बसे पूर्वांचल का राजनीतिक महत्व इसी बात से स्पष्ट होता है कि 2014 में देश की सभी लोकसभा सीटों को छोड़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव लड़ने के लिए पूर्वांचल का दिल गंगा किनारे बसे पौराणिक शहर वाराणसी को चुना.
यही नहीं, 2017 के उत्तर प्रदेश चुनावों में भारी बहुमत से जीतकर राज्य में सरकार बनाने वाली भाजपा ने मुख्यमंत्री के तौर पर पूर्वांचल के केंद्र -गोरखपुर से निर्चवित योगी आदित्यनाथ को चुना. और आख़िर में कांग्रेस ने भी प्रियंका गांधी को औपचारिक रूप से इस चुनाव में उतारने के लिए पूर्वांचल को ही चुना.
लेकिन संत कबीर की अंतिम आरमागह और गौतम बुद्ध को परिनिर्वाण तक पहुंचाने वाली पूर्वांचल की ऐतिहासिक धरती पर किसी भी पार्टी के लिए चुनावी जीत की राह सरल नहीं है.
इमेज कॉपीरइटGetty Images भाजपा का प्रभाव
पूर्वांचल में चार दशकों से सक्रिय वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ भट्टाचार्य कहते हैं कि 2014 की तुलना में इस बार 'मोदी लहर' कमज़ोर है.
उन्होंने कहा, “वाराणसी को छोड़कर पूरे पूर्वांचल में कहीं भी मोदीजी की 'लहर' जैसा माहौल नहीं है. इसलिए ऐसा नहीं लगता की भाजपा 2014 के नतीजे दोहरा पाएगी. जहां तक महागठबंधन का सवाल है, वाराणसी में तो उनका कोई असर नहीं है. लेकिन वाराणसी के बाहर हर जगह वह भाजपा को ठीक-ठाक टक्कर दे रहे हैं”.
वोट देने के मामले में शहरी और ग्रामीण मतदाताओं की अलग-अलग पसंद पर ज़ोर देते हुए जानकार इस बार पूर्वांचल में 'अर्बन-रूरल डिवाइड फ़ैक्टर' के हावी होने का दावा भी कर रहे हैं.
वरिष्ठ स्थानीय पत्रकार उत्पल पाठक जोड़ते हैं, “पूर्वांचल के शहरी मतदाताओं पर आज भी भाजपा का प्रभाव ज़्यादा है. लेकिन जैसे-जैसे आप ग्रामीण अंचल में आगे बढ़ते हैं, वैसे-वैसे मतदाताओं का रुख़ महागठबंधन के प्रत्याशियों की ओर मुड़ने लगता है. वैसे भी अंतिम चरण में होने वाले मतदान पर पिछले चरणों के माहौल का काफ़ी असर पड़ता है. आख़िरी दिन तक मतदाता का मन बदलता है इसलिए निश्चित तौर पर सिर्फ़ इतना कहा जा सकता है कि बनारस को छोड़कर पूर्वांचल की हर सीट पर बहुत कड़ा मुक़ाबला है.”
विकास के साथ-साथ एंटी-इनकंबैंसी को भी एक मज़बूत फ़ैक्टर बताते हुए अमिताभ कहते हैं, “पूर्वांचल पुराने समय से ही ग़रीब और पिछड़ा इलाक़ा रहा है. यहां कभी जनता की आशाएं ही पूरी नहीं हुईं तो प्रत्याशाओं के बारे में क्या कहूं? लेकिन अगर पिछले चुनाव से तुलना करें तो भाजपा के पक्ष में होने वाले वोटिंग प्रतिशत में कमी आएगी. यह कमी नतीजों पर कितना असर डालेगी, यह तो 23 मई को ही साफ़ हो पाएगा”.
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प्रियंका गांधी का असर
प्रियंका गांधी के पूर्वांचल के नतीजों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बात करते हुए उत्पल बताते हैं, “देखिए, प्रियंका ने साफ़तौर पर कई बार कहा कि 2019 से ज़्यादा उन्हें 2022 के विधान सभा चुनाव की चिंता है. प्रियंका के पूर्वांचल प्रभार लेने से यहां कांग्रेस में कितनी मज़बूती आयी है ये तो अभी भविष्य के गर्भ में हैं लेकिन उनके आने से यहां कांग्रेस चर्चा में वापस आ गयी है.”
“अंतिम चरण की बात करें तो इस बार कुशीनगर और मिर्ज़ापुर की सीटों पर कांग्रेस मज़बूत नज़र आ रही है. पिछली बार से तो उनका वोटिंग प्रतिशत बढ़ेगा ही. क्योंकि 2014 की तुलना में इस बार कांग्रेस के पास पूर्वांचल में खोने के लिए कुछ नहीं है.”
इमेज कॉपीरइटAFPछोटी लेकिन महत्वपूर्ण पार्टियों का असर
योगी आदित्यनाथ की सरकार में कैबिनेट मंत्री और सुखदेव बीजेपी के प्रभारी ओम प्रकाश राजभर ने अपनी पुरानी सहयोगी भाजपा के ख़िलाफ़ जाकर मिर्ज़ापुर सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी ललितेश त्रिपाठी को अपना समर्थन घोषित कर दिया है.
साथ ही उत्तर प्रदेश की 40 सीटों से अपने उम्मीदवार खड़े करने वाली इस पार्टी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर का स्थानीय 'राजभर' जाति के लोगों पर ख़ासा प्रभाव माना जाता है.
बसपा से अलग होकर अपनी नई 'जन अधिकार पार्टी' बनाने वाले बाबू सिंह कुशवाहा ने इस चरण में बस्ती और चंदौली से अपने प्रत्याशी उतारे हैं.
कुशवाहा जाति के वोटों पर असर रखने वाली इस पार्टी ने चंदौली सीट पर कांग्रेस के समर्थन से बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिव कन्या कुशवाहा को चुनावी मैदान में उतारा है.
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