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एब्स्ट्रैक्ट:Image caption साल 2011 में ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद पाकिस्तान में अमरीका विरोधी प्रदर्शन हुए थे
Image caption साल 2011 में ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद पाकिस्तान में अमरीका विरोधी प्रदर्शन हुए थे
पाकिस्तान के एबटाबाद में अमरीकी सैन्य बलों के हाथों अल-क़ायदा के सरग़ना ओसामा बिन लादेन की मौत को अब आठ साल हो चुके हैं.
ओसामा बिन लादेन जिस चरमपंथी संगठन की रहनुमाई कर रहे थे, उसे दुनिया के सबसे ख़तरनाक़ जिहादी गुटों में गिना जाता था.
इस गुट के झंडे तले कई लड़ाके लड़ा करते थे और ये भी माना जाता था कि अल-क़ायदा के पास बड़े पैमाने पर आर्थिक संसाधन हैं.
लेकिन ओसामा बिन लादेन की मौत और ख़ुद को 'इस्लामिक स्टेट' कहने वाले चरमपंथी संगठन के उभार के साथ ही अल-क़ायदा की ताक़त और रसूख़ में भारी कमी आई.
ऐसे में ये सवाल उठता है कि आज अल-क़ायदा की क्या हैसियत रह गई है और दुनिया की सुरक्षा को अब इससे किस हद तक ख़तरा है?
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इमेज कॉपीराइट BBC News HindiBBC News Hindiधीरे से सिर उठाना...
हाल के सालों में जब चरमपंथी संगठन 'इस्लामिक स्टेट' दुनिया भर के अख़बारों की सुर्खियां बन रहा था तो उसी दरमियां अल-क़ायदा ने दूसरी रणनीति अपनाई.
अल-क़ायदा ने बिना ज़्यादा शोर-शराबा किए संगठन को फिर से मज़बूत करने का काम शुरू किया और क्षेत्रीय गुटों के साथ रिश्ते बनाए.
'यूएस नेशनल इंटेलीजेंस' ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि अल-क़ायदा के बड़े नेता संगठन की तरफ़ से फ़रमान जारी करने की व्यवस्था को मज़बूत कर रहे हैं.
चेतावनी में ये भी कहा गया है कि “अल-क़ायदा पश्चिमी देशों और अमरीका के ख़िलाफ़ हमलों को बढ़ावा देना जारी रखे हुए है.”
वैश्विक आंतकवाद के ख़तरे पर साल की शुरुआत में आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है, “अल-क़ायदा की महत्वाकांक्षाएं बढ़ती हुई मालूम पड़ रही हैं....”
“ज़रूरत के मुताबिक़ ख़ुद को ढालने की इसकी क़ाबिलियत बनी हुई है. कई इलाक़ों में ये सक्रिय है. दुनिया के फलक पर फिर से खड़ा होने की इसकी तमन्ना बरक़रार है.”
इसी साल फ़रवरी में ब्रिटेन के ख़ुफ़िया प्रमुख एलेक्स यंग ने भी अल-क़ायदा के फिर से उभार को लेकर चेताया था.
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इमेज कॉपीराइट BBC News HindiBBC News Hindiसाझीदार संगठनों का नेटवर्क
ड्रोन हमलों की अमरीकी मुहिम, इसके नेताओं की हत्या और इस्लामिक स्टेट के सामने मौजूद चुनौतियां, ये वो वजहें थीं जिनकी वजह से अल-क़ायदा ने नई रणनीति अपनाई.
उसने बड़ी कामयाबी से अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में अपने यूनिट्स या साझीदार संगठनों का नेटवर्क स्थापित किया.
अल-क़ायदा के ये साझीदार संगठन स्थानीय चरमपंथी गुट हैं जिन्होंने अल-क़ायदा के नेतृत्व के प्रति वफ़ादारी की क़सम खाई है.
इस्लामिक स्टेट के उलट अल-क़ायदा ने बड़ी एहतियात से स्थानीय आबादी से ख़ुद को अलग रखा है.
उसकी रणनीति स्थानीय चरमपंथी गुटों के साथ गठबंधन बनाकर साथ काम करने की है.
इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption सोमालिया में अल क़ायदा के सहयोगी संगठन अल शबाब की तरफ़ से होने वाली बमबारी अब लगभग रोज़मर्रा की बात हो गई है, तस्वीर में राजधानी मोगादिशु के एक बाज़ार में बम धमाके के बाद कार के अवशेष 'जिहाद के लिए एक गाइडलाइन'
साल 2013 में अल-क़ायदा ने अपने संगठन में 'सुधार' के इरादे से 'जिहाद के लिए एक गाइडलाइन' जारी की थी.
इस दस्तावेज़ में अल-क़ायदा ने अपने चरमपंथियों को संयम के साथ और सामाजिक बर्ताव अपनाने की नसीहत दी थी.
उन्हें ऐसा व्यवहार करने से परहेज़ करने के लिए कहा गया जिससे स्थानीय लोग विरोध करें या फिर विद्रोह को हवा मिले.
एलीज़ाबेथ केंडल ऑक्सफर्ड के पेमब्रोक कॉलेज में सीनियर फ़ेलो हैं.
वे कहती हैं, “अल-क़ायदा ने भ्रष्टाचार और समाज के एक तबक़े को हाशिये पर रखे जाने जैसी स्थानीय चिंताओं को तवज्जो देनी शुरू कर दी है और वे इसे जिहाद के ग्लोबल एजेंडे में जगह दे रहे हैं.”
वो कहती हैं, “ऐसा करके वो स्थानीय लोगों के बीच 'मसीहा' की तरह काम कर रहे हैं. इस्लामिक स्टेट के निर्दयी लड़ाकों के उलट वे ख़ुद को 'जेंटलमेन जिहादी' के तौर पर पेश कर रहे हैं.”
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अपनी शाखाओं और साझीदार चरमपंथी संगठनों के नेटवर्क के बूते अल-क़ायदा धीरे-धीरे अपने हमले बढ़ा रहा है.
'द आर्म्ड कॉन्फ़्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डेटा प्रोजेक्ट' (ACLED) के आंकड़ें बताते हैं कि साल 2018 में अल-क़ायदा ने दुनिया भर में 316 हमलों को अंजाम दिया.
अल-क़ायदा की शाखाएं
अल-क़ायदा इन द इस्लामिक मग़रिब (AQIM):ये संगठन साल 2006 में उस वक़्त अस्तित्व में आया जब एक अल्जीरियाई चरमपंथी संगठन ने अल-क़ायदा से हाथ मिला लिया.
अरब प्रायद्वीप में अल-क़ायदा (AQAP): साल 2009 में एक अंतरराष्ट्रीय जिहादी नेटवर्क के यमन और सऊदी अरब में सक्रिय शाखाओं के विलय के बाद ये संगठन वजूद में आया.
भारतीय उपमहाद्वीप में अल-क़ायदा (AQIS)अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, बर्मा और बांग्लादेश में सक्रिय है. इसकी शुरुआत सितंबर, 2014 में हुई थी.
जमात नुसरत अल-इस्लाम वल-मुस्लिमीनअल-क़ायदा से जुड़ा एक संगठन है. माली और पश्चिमी अफ्रीका में कई चरमपंथी संगठनों के विलय के बाद ये अस्तित्व में आया था.
अल-शबाबसोमालिया और पूर्वी अफ्रीका में सक्रिय है. अल-क़ायदा से इसके रिश्ते की शुरुआत साल 2012 में हुई थी.
हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस)सीरिया के कई चरमपंथी जिहादी गुटों के विलय के बाद वजूद में आया. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ इसके तार अल-क़ायदा से जुड़े हुए हैं. हयात तहरीर अल-शाम के पास फ़िलहाल उत्तरी सीरिया के इदलिब सूबे का कंट्रोल है.
मिस्र में अल-क़ायदाःमिस्र के सिनाई प्रायद्वीप में अल-क़ायदा से जुड़े कई जिहादी गुट इसमें शामिल हैं.
Image caption सीआईए को ओसामा बिन लादेन के एक कम्प्यूटर से जो चीज़ें मिली थीं उसमें एक वीडियो हमज़ा की शादी का भी था. ये तस्वीर उस वीडियो से लिया गया स्क्रीनशॉट है भविष्य का नेतृत्व?
साल 2015 में अल-क़ायदा के मौजूदा नेता अयमान अल-ज़वाहिरी ने अपने भाषण में बिन लादेन के 'टेरर नेटवर्क की मांद से निकले एक शेर' से दुनिया का परिचय कराया.
इस नौजवान शख़्स का नाम हमज़ा बिन लादेन था. ओसामा बिन लादेन के इस बेटे को आने वाले दिनों में अल-क़ायदा के नेता के तौर पर देखा जाता है.
अमरीका ने पहले ही हमज़ा बिन लादेन के बारे में सूचना देने वाले को 10 लाख डॉलर (सात करोड़ रुपये से ज़्यादा) देने की आधिकारिक रूप से घोषणा कर रखी है.
अल-क़ायदा से जुड़ी वेबसाइटों पर 30 साल के इस शख़्स को अल-क़ायदा के उभरते हुए सितारे के तौर पर पेश किया जाता है.
उन्हें लगता है कि हमज़ा जिहादियों की अगली पीढ़ी को प्रेरित कर सकता है और अल-क़ायदा में नई जान फूंक सकता है.
हाल के सालों में हमज़ा ने कई ऐसे ऑडियो और वीडियो संदेश जारी किए हैं जिनमें उसने अपने समर्थकों से अमरीका और उसके सहयोगी पश्चिमी देशों पर हमला करने और ओसामा बिन लादेन की मौत का इंतक़ाम लेने की अपील की है.
चैथम हाउस में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका विभाग की प्रमुख लिना ख़ातिब की राय में “इस्लामिक स्टेट के साम्राज्य के पतन के बाद अल-क़ायदा नेटवर्क को अपने ऑपरेशंस के बारे में ज़्यादा समझदारी और रणनीति के साथ सोचने के लिए मजबूर किया है.”
“अल-क़ायदा को फिलहाल एक ऐसे लीडर की ज़रूरत है जो रणनीति बनाने में माहिर हो. यही वजह है कि हमज़ा बिन लादेन अल-क़ायदा में अपने पिता की जगह लेने के लिए समर्थन जुटाने की दिशा में आगे बढ़ता हुआ दिख रहा है.”
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