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एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption प्रतीकात्मक तस्वीर मद्रास हाई कोर्ट में एक मामले पर फ़ैसला सुन
इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption प्रतीकात्मक तस्वीर
मद्रास हाई कोर्ट में एक मामले पर फ़ैसला सुनाते हुए जस्टिस जी आर स्वामीनाथन ने जाने-माने लेखक देवदत्त पटनायक की किताब 'जय' में लिखे एक किस्से का उल्लेख किया.
“महाभारत के युद्ध में अरावण मौत के क़रीब था. वो धर्म के लिए अपने प्राण त्याग रहा था लेकिन उसने अंतिम इच्छा ज़ाहिर की कि उसकी कोई पत्नी ज़रूर होनी चाहिए जो उसके मरने के बाद उसके लिए रोए. पांडवों ने कोशिश की कि कोई औरत उससे शादी कर ले लेकिन मरते हुए आदमी से कौन शादी करता. तो अंत में श्रीकृष्ण ने मोहिनी का रूप धरा और अरावण से शादी की. अगले दिन जब उसकी मौत हुई तो मोहिनी का रूप लिए कृष्ण ने विधवा की तरह विलाप किया.”
और महाभारत में ही पत्नी के संदर्भ में कहा गया है कि पत्नी सबसे उत्तम मित्र होती है और उसे सबसे सगा बंधु भी बताया गया है.
मद्रास हाई कोर्ट में बीते दिनों एक ऐसा मामला आया जिसमें एक ट्रांसजेंडर महिला और उसके पुरुष साथी की शादी रजिस्टर नहीं की जा रही थी क्योंकि वो ट्रांसजेंडर थी.
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यह मामला मद्रास हाई कोर्ट के मदुरै बेंच में सुना गया और कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा - “केवल महिला के तौर पर जन्म लेने वाले के लिए 'हिंदू दुल्हन' शब्द का इस्तेमाल नहीं होगा, इसमें ट्रांसजेंडर महिला भी शामिल होंगी.”
विवाद क्या था?
अरुण कुमार और श्रीजा ने बीते साल अक्टूबर महीने में तूतीकोरिन के एक मंदिर में शादी थी. लेकिन उन्हें अपनी शादी को रजिस्टर भी कराना था. जब वो शादी को रजिस्टर कराने के लिए रजिस्ट्रार के पास पहुंचे तो उन्होंने श्रीजा के ट्रांसजेंडर होने की वजह से शादी को पंजीकृत करने से इनक़ार कर दिया. इसके बाद दोनों ने अदालत का रुख़ किया.
जहां जस्टिस जी आर स्वामीनाथन ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा “कई बार कुछ फ़ैसलों को सुनाते हुए सिर्फ़ बाहरी आंखों की नहीं अंदरुनी, प्यार की आंखों की ज़रूरत होती है.”
उन्होंने कहा कि यह फ़ैसला देते हुए हम किसी क़ानून का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं. उन्होंने कहा “सेक्स और जेंडर दो अलग बातें हैं. सेक्स वो है जो जन्म के समय होता है जबकि जेंडर चुनने का हक़ हर किसी को है.”
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सुप्रीम कोर्ट ने यह हक़ हर किसी को दिया है कि वो महिला बनकर रहना चाहता है या पुरुष.
लेकिन हिंदू मैरिज एक्ट के लिए आवश्यक शर्तें
हिंदू विवाह अधिनियम भारत की संसद द्वारा साल 1955 में पारित हुआ था. इसके तहत...
- कोई भी हिंदू स्त्री-पुरुष दूसरे हिंदू स्त्री-पुरुष से विवाह कर सकते हैं
- एक विवाह का नियम है. पहली पत्नी या पति के रहते हुए दूसरा विवाह करना दंडनीय है
- दोनों पक्षों में से कोई भी एक किसी मानसिक विकार से पीड़ित न हो.
- क़ानून के लिए मान्य सम्मति देने के लिए असमर्थ न हो
- विवाह और सन्तानोत्पत्ति के लिए अयोग्य न हो
- वर की आयु कम से कम 21 साल और लड़की की 18 साल तो होनी ही चाहिए
एक ओर जहां हिंदू विवाह अधिनियम हिंदुओं पर लागू होता है वहीं स्पेशल मैरिज एक्ट भारत के समस्त नागरिकों पर लागू होता है.
जानकारोंकी राय
हालांकि एक ओर जहां ट्रांसजेंडर समुदाय इसे बड़ी कामयाबी के तौर पर देख रहा है वहीं सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वक़ील अवनि बंसल इसके दूसरे पहलू पर भी ज़ोर देती हैं.
बतौर अवनि “पहली नज़र में ये फ़ैसला बहुत प्रोग्रेसिव और ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लिए एक बड़ी कामयाबी के तौर पर नज़र आता है लेकिन इसका दूसरा पहलू भी हो सकता है. पर अभी कुछ भी कहना जल्दबाज़ी ही होगी क्योंकि अभी सिर्फ़ मद्रास हाईकोर्ट ने यह फ़ैसला दिया है. बहुत हद तक संभव है कि कोई इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज कर दे.”
अवनि मानती हैं कि इसे शुरुआती जीत तो कहा जा सकता है लेकिन किसी भी निष्कर्ष के लिए अभी इंतज़ार करने की ज़रूरत है.
इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption लक्ष्मी
लेकिन ट्रांसजेंडर कम्युनिटी का नेतृत्व करने वाली लक्ष्मी का मानना है कि यह एक अच्छा फ़ैसला है. हालांकि लक्ष्मी कहती हैं कि अमूमन ट्रांसजेंडर महिलाएं जब शादी करती हैं तो उन्हें शादी रजिस्टर कराना ज़रूरी नहीं लगता. लक्ष्मी के मुताबिक़, वो सालों से ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए काम कर रही हैं लेकिन उनके सामने इस तरह का मामला पहली बार आया है लेकिन बावजूद इसके वो इसे एक सकारात्मक नजर से देखती हैं.
वो कहती हैं, “बहुत सीधी सी बात है. कोर्ट जो आदेश देता है पहले वो क़ानून बनता है और बाद में समाज का हिस्सा. इस फ़ैसले से यह तो समझ आता ही है कि लोग अब ट्रांसजेंडर्स के बारे में सोचने लगे हैं. उन्हें लगने लगा है कि हमारी भी कोई पहचान है.”
हालांकि कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें इस फ़ैसले के बारे में तो पता है लेकिन कोई लेना-देना नहीं.
पूर्वी दिल्ली में रहने वाले गोविंद ने एक ट्रांसजेंडर महिला से शादी की है. वो बताते हैं कि शादी के लिए क़ानूनी मान्यता से कहीं अधिक सामाजिक मान्यता की ज़रूरत है.
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गोविंद कहते हैं, “जब मैंने शादी की थी तो सिर्फ़ लोगों से नाराज़गी ही मिली. किसी तरह सबकुछ झेला लेकिन अब धीरे-धीरे लोगों का बोलना बंद हो गया है. कोई कुछ बोलता भी है तो फ़र्क पड़ना बंद हो गया है.”
वो कहते हैं, जितने संघर्ष से हमने ये रिश्ता बनाया है हमारे लिए वही सबकुछ है, हमें किसी क़ानूनी मान्यता की ज़रूरत नहीं. हमारे मन ने मान्यता दी तभी शादी की और वही सबसे ऊपर है.
ये फ़ैसला ऐतिहासिक क्यों है ?
गोविंद के पास भले ही इस सवाल का जवाब नहीं लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें इस फ़ैसले ने उम्मीद दी है.
प्रिया बाबू तमिलनाडु में रहती हैं और ट्रांसजेंडर हैं. प्रिया अपने बारे में बताती हैं कि वो एक आदमी के साथ छह साल रहीं. उस शख़्स ने प्रिया को बंद कमरे में मंगलसूत्र पहनाया और शादी की लेकिन कभी भी सार्वजनिक तौर पर ये नहीं माना कि प्रिया उनकी पत्नी हैं. लगभग छह साल बाद एक दिन वो शख़्स प्रिया को छोड़कर चला गया.
प्रिया बताती हैं कि कई बार ऐसा होता है कि लोग हमारे रहने के तौर-तरीक़े, पैसे और खूबसूरती से आकर्षित होकर शादी कर लेते हैं.
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बतौर प्रिया “ट्रांसजेंडर से शादी करना कोई आसान काम नहीं है. आपको अपने घर में सभी को मनाना पड़ता है. मेरे केस में भी यही हुआ. मैं जिस आदमी के साथ थी उसने अपने घरवालों को मनाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं माने और अंत में छह साल के बाद उसने मुझे अपने मां-बाप की वजह से छोड़ दिया. मेरा सारा पैसा भी वो लेकर चला गया.”
प्रिया का मानना है कि ट्रांसजेंडर के साथ लोग शादी तो कर लेते हैं पर गुपचुप तरीक़े से. लेकिन एक बार शादी रजिस्टर हो जाएगी तो अगर पुरुष छोड़कर जाता है तो कम-से-कम उस महिला ट्रांसजेंडर के पास अपने हक़ के लिए लड़ने का मौक़ा तो होगा.
लेकिन शादी रजिस्टर कराना ज़रूरी क्यों है?
फ़ेसबुक पर रिलेशनशिप स्टेटस लिखने के लिए किसी भी प्रमाण पत्र की ज़रूरत नहीं पड़ती लेकिन बहुत से ऐसे काग़ज़ात बनाने पड़ते हैं जहां शादीशुदा होने की प्रमाणिकता देनी पड़ती है. इस लिहाज़ से शादी रजिस्टर कराना ज़रूरी हो जाता है.
- 'शादी रजिस्ट्री का सर्टिफ़िकेट' विवाहित होने का क़ानूनी प्रमाण है
- बैंक खाता खोलने के लिए - पासपोर्ट बनाने के लिए
- अगर पति-पत्नी के बीच किसी तरह का विवाद हो जाता है तो भी यह प्रमाण पत्र बहुत काम आता है
- बाल विवाह पर लगाम लगाने में मददगार
- महिलाओं के लिए यह दस्तावेज़ ज़्यादा अहम हैं क्योंकि अगर तलाक़ की स्थिति बनती है तो महिला बतौर पत्नी अपने समाजिक और आर्थिक अधिकारों के लिए खड़ी हो सकती है.
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एक ट्रांसजेंडर ने शुरू की बदलाव की मुहिम
बावजूद इसके अगर आप अपने आस-पास देखेंगे और पूछेंगे तो बहुत से लोग ऐसे मिल जाएंगे जिनकी शादी को 20-30 साल हो चुके हैं लेकिन उनकी शादी रजिस्टर नहीं. उनका कहना है उन्हें ज़रूरत महसूस नहीं हुई. कई आपको ये दलील देते भी मिल जाएंगे कि शादी दो आत्माओं, दो दिलों का रिश्ता है इसमें कोर्ट-कचहरी की क्या ज़रूरत...लेकिन ज़रूरत तो है.
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