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एब्स्ट्रैक्ट:Image caption अपने पिता के साथ संजय और गांव के निवासी. "आलू किसान तीन साल से बहुत पिटा हुआ है." "मोद
Image caption अपने पिता के साथ संजय और गांव के निवासी.
“आलू किसान तीन साल से बहुत पिटा हुआ है.”
“मोदी जी देश के लिए तो बहुत कुछ कर रहे हैं लेकिन किसानों के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं. दो हज़ार रुपये की किस्त देने से किसान का कुछ नहीं होने जा रहा है.”
“हम चाहते हैं कि जैसे सरकार गेहूं का समर्थन मूल्य तय करती है, वैसे ही आलू का भी किया जाए. इस क्षेत्र में 95 फ़ीसदी किसान आलू की खेती करते हैं.”
“उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले के सादाबाद ब्लॉक से गुज़रते हुए सड़क के क़रीब एक खेत में आलू खोदकर बोरों में भरते किसानों से जैसे ही उनकी फ़सल के बारे में सवाल किया तो भगत सिंह और उनके दूसरे साथी किसान अपनी तकलीफ़ों का पिटारा खोलकर बैठ गए.”
भगत सिंह ने आगे कहा, “हम लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं. एक बीघा में लागत आती है 12 से 14 हज़ार रुपये.और एक बीघे से जितना आलू निकलता है मंडी में उसकी क़ीमत मिलती है 10 हज़ार रुपये. चार हज़ार रुपये अपना घाटा है.”
लोकसभा चुनाव क़रीब है. हाथरस में 18 अप्रैल को मतदान होना है तो क्या आलू किसानों के शिकवे का कोई असर चुनावों पर दिखेगा, खेत में मौजूद क़रीब बीस किसानों ने इस सवाल के जवाब में कहा, “हमारा आलू फेंका जा रहा है. चाहे हम भूखे मरें पर हम वोट मोदी जी को ही देंगे.”
इस क्षेत्र के किसान बीते तीन साल से सड़क पर आलू फेंकने की वजह से चर्चा में रहे हैं. लेकिन अपनी तकलीफ़ों के मुक़ाबले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'मज़बूत राष्ट्र' का नारा उन्हें ज्यादा भा रहा है.
किसानों ने आगे कहा, “मोदी जी से शिकायत नहीं है लेकिन इनकी जो मशीनरी है, सांसद है, विधायक हैं, वो हमें देख भी नहीं रहे हैं.”
Image caption हाथरस के आलू किसान से बाद करते बीबीसी संवाददाता
सादाबाद ब्लॉक में ही, इस खेत से क़रीब तीन किलोमीटर दूर कुरसंडा गांव में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के संयुक्त प्रत्याशी रामजी लाल सुमन के समर्थन में एक नुक्कड़ सभा हो रही थी.
इसमें लोकदल के नेता गुड्डू चौधरी स्थानीय जनप्रतिनिधियों की उदासीनता को लेकर उन्हें कठघरे में खड़ा करने की कोशिश में थे.
“कोई हाथ उठाकर ये कह दे कि उसने आसपास के गांवों में सांसद को देखा है. भारतीय जनता पार्टी के लोग ही बताते हैं कि सांसद जी अपने फ़ोन को पर्मानेंट बंद रखते हैं.”
लोकदल नेता गुड्डू हाथरस के मौजूदा सांसद राजेश कुमार दिवाकर का ज़िक्र कर रहे थे. दिवाकर को इस बार भारतीय जनता पार्टी ने टिकट नहीं दिया है. उनकी जगह राजवीर दिलेर को उम्मीदवार बनाया गया है.
दिलेर के पिता किशन लाल भी पहले हाथरस का लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, लेकिन गठबंधन के प्रत्याशी और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामजी लाल सुमन अपना मुक़ाबला शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रवाद के मुद्दे से मानकर चल रहे हैं.
Image caption गठबंधन के प्रत्याशी और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामजी लाल सुमन.
जाट बहुल हाथरस में मुसलमानों की भी अच्छी संख्या है. इस समीकरण को साधकर साल 2009 में राष्ट्रीय लोकदल ने चुनाव जीता था. 1991 के बाद से ये इकलौता मौक़ा था जब भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी लोकसभा चुनाव जीतने में नाकाम रहा था. 2014 में बीजेपी ने फिर से ये सीट जीत ली थी.
साल 1977 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले सुमन पांचवीं बार संसद पहुंचने के लिए ज़ोर लगा रहे हैं. कांग्रेस के उम्मीदवार त्रिलोकी राम मुक़ाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में हैं.
सुमन ने अपने छोटे से भाषण में मोदी पर लगातार हमले किए. सुमन ने वहां मौजूद लोगों को लगातार समझाने की कोशिश की कि देश की सुरक्षा गारंटी किसी नेता से नहीं बल्कि सेना से मिलती है.
रामजी लाल सुमन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए कहा, “ये देश किसी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति की वजह से सुरक्षित नहीं है. ये देश आपके दो लाडले बेटों की वजह से सुरक्षित है. आपने कहा एक खेती करेगा. दूसरे को आपने फ़ौज में भर्ती कर दिया. ये देश किसान के फ़ौजी बेटे की वजह से सुरक्षित है.”
थोड़ी देर बाद सुमन बीबीसी से मुख़ातिब थे और उन्होंने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार आरोप लगाते हुए कहा, “पांच साल में इस सरकार ने गिनाने लायक़ कोई काम नहीं किया.”
Image caption ग्राम नगला के लोगों ने चुनाव का बहिष्कार करने का फ़ैसला लिया है.
जब हमने आलू किसानों के साथ हुई अपनी बातचीत उनके साथ साझा की तो सुमन बोले, “कुछ लोगों ने कुछ कह दिया तो हम कुछ कह नहीं सकते. मैं मानता हूं कि लोगों में आक्रोश है. इस बार कम से कम बीजेपी की कोई लहर नहीं. लोगों को उत्तर प्रदेश में गठबंधन के रूप में विकल्प मिल गया है.”
रामजी लाल सुमन के आरोपों और दावों को भारतीय जनता पार्टी ने सिरे से ख़ारिज कर दिया. हाथरस में भारतीय जनता पार्टी की ओर से सरकारी योजनाओं की देखरेख के लिए ज़िला प्रमुख बनाए गए अनुज चौधरी ने दावा किया, “मैं यहां आम जनता की राय बताऊं तो स्थिति नब्बे फीसदी और दस फीसदी है. गठबंधन का प्रत्याशी यहां सरेंडर कर चुका है.”
हालांकि, चौधरी के पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि अगर भारतीय जनता पार्टी हाथरस में इतनी मज़बूत स्थिति में थी तो उसने मौजूदा सांसद का टिकट क्यों काटा?
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भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष कप्तान सिंह ठेनुआ ने भी दावा किया कि उनकी पार्टी चुनावी संघर्ष में काफ़ी आगे है.
लेकिन, ज़िले की राजनीति को तटस्थ तौर पर देखने वाले इस दावे को पूरी तौर पर मंज़ूर करने को तैयार नहीं दिखते.
हाथरस के मुरसान क्षेत्र के पूर्व चेयरमैन देशराज सिंह ने कहा कि हाथरस के जनप्रतिनिधियों ने स्थानीय लोगों के लिए कोई काम नहीं किया.
उन्होंने आगे कहा, “यहां बीजेपी को अगर वोट मिलेगा तो मोदी जी के नाम पर मिलेगा और कितना वोट मिलेगा ये 23 मई को साफ़ हो जाएगा.”
काका हाथरसी की कविताएं, हींग और देशी घी के लिए प्रसिद्ध रहा हाथरस बीते कुछ सालों से अपनी समस्याओं की वजह से ही चर्चा में आता है.
स्थानीय पत्रकार नीतीश शर्मा के मुताबिक़ आगरा, मथुरा और अलीगढ़ की सीमा से लगे हाथरस ज़िले में कई समस्याएं हैं. किसान फ़सल की क़ीमत को लेकर परेशान हैं. नौजवान रोज़गार को लेकर परेशान हैं. कई क्षेत्रों में सबसे बड़ी समस्या खारे पानी की है. ज़िले में बीजेपी के सांसद और पांच में से चार विधायक हैं लेकिन लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं हो सका है.
खारे पाने की समस्या को लेकर हसायन ब्लॉक के तीन गावों के लोगों ने मतदान के बहिष्कार का एलान कर दिया है. ये दावा करते हैं कि वोट नहीं देने का फ़ैसला करने वाले लोगों की संख्या क़रीब पांच हज़ार है.
इन तीन गावों में से एक नगला मया की प्रियंका कहती हैं, “तीन साल से हमारे यहां पानी की समस्या है और क़रीब एक साल से हम आंदोलन कर रहे हैं लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ.”
आंदोलन की अगुवाई करने वाले चंद्रपाल सिंह कहते हैं, “सीएमओ कह चुके हैं कि खारा पानी ह्डडियों को गला देता है. हमारे बच्चे ज़हर पी रहे हैं. सरकार और प्रशासन कहते हैं कि उनके पास पैसे नहीं हैं. जनवरी में हमने पैसे का इंतज़ाम करने के लिए ख़ुद को नीलाम करने का फ़ैसला किया था. चुनाव बहिष्कार करने के बाद भी हमसे मिलने न तो प्रशासन के लोग आए और न ही कोई प्रत्याशी.”
लेकिन मतदान नहीं करने से क्या हासिल होगा, ये पूछने पर गांव में ही रहने वाले राजपाल सिंह उल्टा सवाल दागते हैं, “हम और क्या कर सकते हैं?”
जवाब हसायन के ब्लॉक प्रमुख और कांग्रेस के नेता सुमंत किशोर सिंह देते हैं.
वो कहते हैं कि इस समस्या की जानकारी भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, यहां के सांसद, विधायक और ज़िलाधिकारी सभी को है.
“इसके लिए लगातार संघर्ष जारी है. वोट न देना सही नहीं है. जो लोग समस्याओं का समाधान नहीं करते हैं लोकतंत्र में वोट देकर उन्हें हटा दिया जाना चाहिए.”
Image caption सुमंत किशोर सिंह
समाजवादी पार्टी के नेता सुमन कहते हैं कि उन्हें खारे पानी की समस्या की जानकारी है.
वो कहते हैं, “बीजेपी का फ़िलहाल हर जगह क़ब्ज़ा है और उन्होंने कुछ भी नहीं किया. मेरे सामने जो प्राथमिकता है उनमें खारे पानी समस्या का समाधान करना शामिल है.”
वहीं बीजेपी नेता ठेनुआ दावा करते हैं कि इस समस्या के समाधान के लिए मुख्यमंत्री ख़ुद ध्यान दे रहे हैं.
बीते साल एक समस्या को लेकर हाथरस के बसई गांव के संजय जाटव भी चर्चा में आए थे.
संजय की शादी के दौरान हाथरस के क़रीब के कासगंज के कुछ दबंगों ने उन्हें घोड़ी चढ़ने से रोकने की कोशिश की थी.
लेकिन संजय धमकियों के आगे झुके नहीं. अब वो अपने गांव ही नहीं बल्कि पूरे ज़िले में चर्चित हैं.
ख़तरे को देखते हुए उन्हें अब तक सुरक्षा घेरा मिला हुआ है.
Image caption शीतल और संजय जाटव. संजय की शादी के दौरान हाथरस के करीब के कासगंज के कुछ दबंगों ने उन्हें घोड़ी चढ़ने से रोकने की कोशिश की थी.
क़ानून की पढ़ाई कर चुके संजय कहते हैं कि अब वो दलित समाज के दूसरे युवाओं को सम्मान दिलाने की कोशिश में जुटे हैं.
“मैं कहता हूं कि संगठित रहो. घोड़ी चढ़ने के क्रम में मेरे गांव का भी विकास हुआ.”
नहर किनारे की पक्की सड़क दिखाते हुए संजय कहते हैं, “मेरे गांव और ससुराल में सरकार ने सड़कें बनावाईं. मेरी शादी के बाद से काफ़ी बदलाव आए हैं. मेरी कहानी पर निर्देशक कैलाश मासूम फ़िल्म बना रहे हैं. फ़िल्म का नाम होगा बैंड बाजा बंदूक़.”
“शादी के माध्यम से मुझे कई पार्टियों ने टिकट देने का एलान किया. मैं आगे चुनाव भी लड़ूंगा.”
हाथरस में त्रिकोणीय मुक़ाबले के बीच जीत को लगने वाले क़यासों के साथ कुछ हलकों में चर्चा संजय के एलान पर भी होती है...और हाथरस के कई लोग इसे लोकतंत्र की बड़ी कामयाबी के तौर पर देखते हैं.
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