简体中文
繁體中文
English
Pусский
日本語
ภาษาไทย
Tiếng Việt
Bahasa Indonesia
Español
हिन्दी
Filippiiniläinen
Français
Deutsch
Português
Türkçe
한국어
العربية
एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटBBC/Facebook/dreamgirlhemamaliniराजेंद्री देवी अपनी छोटी-छोटी पोतियों के साथ गेहूं की फ़
इमेज कॉपीरइटBBC/Facebook/dreamgirlhemamalini
राजेंद्री देवी अपनी छोटी-छोटी पोतियों के साथ गेहूं की फ़सल काट रही हैं. उनका पूरा बदन पसीने से तर बतर है.
गेहूं की कटाई को खेती का सबसे मुश्किल काम माना जाता है. एक तो गर्म मौसम और उस पर हांड़-तोड़ मेहनत.
यही वजह है कि ज़मींदार किसान गेहूं अपने हाथ से काटने के बजाए राजेंद्री देवी जैसी भूमिहीन मज़दूरों से कटवाते हैं.
राजेंद्री देवी तीन बीघा गेहूं का खेत काट रही हैं. उनके पति के अलावा उनकी छोटी-छोटी नौ पोतियां भी इस काम में लगी हैं.
इस खेत को काटने में उन्हें हफ़्ते भर का समय लग सकता है और इसके बदले में उन्हें तीन मन यानी 120 किलो गेहूं मिलेगा.
राजेंद्री देवी कहती हैं, “हम यहां मज़दूरी करते हैं. खेत-खेत जाकर गेहूं काटते हैं. तीन बीघा काटने के तीन मन गेहूं मिलेंगे.”
वो कहती हैं, “दो सौ-ढाई सौ रुपये रोज़ भी मज़दूरी नहीं बैठती है. क्या होता है इतने पैसों में? एक किलो तेल नहीं मिल पाता है. ये बहुत कठिन काम है और कभी-कभी तो मज़दूरी भी खा जाते हैं. मेहनत करवाकर भगा देते हैं. हम रोते चले आते हैं जंगल से.”
इमेज कॉपीरइटPoonam Kaushal/BBCImage caption अपनी पोतियों के साथ गेंहूं की फ़सल काटती हुईं भूमिहीन किसान राजेंद्री देवी
राजेंद्री देवी भूमिहीन मज़दूर हैं. छह साल पहले उनके बेटे और बहू की मौत के बाद पीछे रह गई हैं नौ पोतियां जिनका पेट भरने की ज़िम्मेदारी अब अकेली राजेंद्री देवी पर है.
किसानों की समस्या मोदी की नोटबंदी की देन?
किसानों की क़र्ज़माफ़ी का बुरा असर किस पर
सरकारी योजनाओं से क्या मिलता है?
गेहूं कटाई करके वो पूरे साल भर के खाने का इंतेज़ाम करेंगी. राजेंद्री देवी कहती हैं कि उन्हें किसी भी सरकारी योजना का कोई फ़ायदा नहीं मिलता है.
वो कहती हैं, “किसी सरकार ने कोई मदद नहीं की है. इतने दुखी हैं कि बता नहीं सकते. कोई कुछ नहीं देता है. हमने कहा पेंशन खोल दो, इन बालकों को कुछ खाने-ख़र्चे को मिल जाए, कोई पेंशन न खोली. मांग-मांग कर तो कपड़े पहनाते हैं.”
अपनी फटी हुई शर्ट दिखाते हुए वो कहती हैं, “हम ऐसे फटे कपड़े पहनने लायक़ हैं. हमारे आगे मजबूरी है. जब ऊपर चले जाएंगे तब ही मजबूरी दूर होगी हमारी उससे पहले हमारी मजबूरी दूर नहीं होगी.”
इमेज कॉपीरइटFacebook/DreamGirlHemamalini
हाल ही में मथुरा से सांसद हेमा मालिनी की हाथ में दरांती और गेहूं की बालियां लिए तस्वीर ख़ूब वायरल हुई. ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी सत्ताधारी पार्टी की पोस्टर गर्ल भी हैं.
अगर सरकारी योजनाओं की नाकामी का कोई पोस्टर बने तो उसकी पोस्टर गर्ल राजेंद्री देवी हो सकती हैं.
विकास की 'काली कहानी'
जिस खेत में वो गेहूं काट रही हैं वो यमुना एक्सप्रेस वे से जुड़ता है.
एक ओर देश के तेज़ी से दौड़ते विकास की रफ्तार है और दूसरी ओर अपनी ज़िंदगी के ख़त्म होने का इंतज़ार करती एक मजबूर मज़दूर.
बच्चियों से गेहूं कटवाने के सवाल पर वो कहती हैं, “कुछ तो सहारा मिलेगा. मन दो मन गेहूं आ ही जाएगा. जब ये बच्चे भूखे सोएंगे तो कौन पूछेगा? कोई मदद नहीं करता, न समाज न सरकार. हमसे किसी को कोई मतलब नहीं है.”
इमेज कॉपीरइटPoonam Kaushal/BBC
उनकी पोतियां बताती हैं, हम सुबह सात बजे खेत में आ जाते हैं, शाम छह बजे तक यहीं रहते हैं. पूरा दिन गेहूं काटते हैं.
खेत मालिक सत्यपाल सिंह कहते हैं, “हेमा मालिनी ने फोटो खिंचवाकर दिखावा किया है. असल में गेहूं काटना उनके बस की बात कहां हैं. ये बहुत मेहनत का काम है. सारा दिन धूप में पसीना बहाना पड़ता है, हमसे नहीं कटते हैं, वो क्या काटेंगी?”
भूमिहीन किसानों की दशा
अक्सर भूमिहीन परिवारों की महिलाएं ही गेहूं की कटाई करती हैं. तीन बच्चों की मां पिंकी अपने परिवार के साथ गेहूं काट रही हैं.
उनके हाथ ये काम करके सख़्त हो गए हैं उनमें गांठें पड़ गई हैं.
पिंकी कहती हैं, “हाथों में बहुत दर्द होता है. ये बहुत भारी मज़दूरी है. लेकिन मिलता इतना है कि बस पेट की भूख ही मिटती है. हमें इस काम के बदले पैसे नहीं मिलते हैं बल्कि गेहूं मिलते हैं.”
“हम ग़रीबों के लिए कहीं कुछ नहीं है. वोट डालते हैं. नेता बनने के बाद कोई कुछ पूछता भी नहीं. कच्चे घरों में रहते हैं, हमें कोई घास नहीं डालता. चुनावों में ये और होता है कि फ्री शराब बांट देते हैं. पियो मौज लो, हम जनानियों के लिए तो कुछ भी नहीं है. जैसे-तैसे टाइम काट रहे हैं.”
वो कहती हैं, “हम खेतों में काम करते हैं, फिर घर जाकर खाना भी बनाते हैं. आदमियों से भी ज़्यादा काम करते हैं. हाथों में इतना दर्द होता है लेकिन फिर भी काम करते हैं.”
किसानों की कब्रगाह में बदलता पंजाब - BBC हिंदी
दिल्ली में किसानों की हुंकार से सरकार पर क्या असर
'रोते-रोते बीतती है रात'
सावित्री देवी भी भूमिहीन मज़दूर हैं. वो सुबह पहले घर का काम करती हैं फिर खेत काटने आती हैं. सारा दिन खेत में काम करने के बाद जब दिन छुपने पर वो घर पहुंचती हैं तो उनके पास आराम करने के लिए समय नहीं होता. वो बच्चों के लिए खाना बनाती हैं, पूरे परिवार की हंडिया-रोटी करने के बाद ही उन्हें सुकून के कुछ पल मिलते हैं.
अक्सर पति दारू के नशे में होते हैं और कुछ बोलने पर पिटाई भी कर देते हैं. वो कहती हैं कि कई बार रोते-रोते रात बीत जाती है.
इमेज कॉपीरइटPoonam Kaushal/BBCImage caption मजदूरी पर गेंहूं की फ़सल काटती हुईं सावित्री देवी
वो कहती हैं कि अभी तक किसी भी सरकार की योजना का कोई फ़ायदा उन्हें नहीं मिलता है.
वो कहती हैं, “सरकार भी हम ग़रीबों के लिए कुछ नहीं कर रही. दारूबाज़ों ने दारू चला रखी है. आदमी गाली देते हैं. शाम-सवेरे मारते हैं. पुरुष जंगल में छेड़ देते हैं. सारा दिन भूखे बाल बच्चों को लिए जंगल में पड़े रहते हैं.”
“नाज-पानी इतना महंगा हो गया. तेल महंगा कर रखा है. साग-सब्ज़ी बहुत महंगी कर रखी है. बालकों को कैसे-कैसे पाल रहे हैं किसी को नहीं पता? दारू वाले तो दारू पीकर सो रहे हैं, उन्हें क्या पता चार बालक कैसे पल रहे हैं.”
फ़ोटो खिंचाना अलग काम है और गेंहूं काटना अलग
उधर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से कुछ ही दूर दादरी क्षेत्र के एक गांव में कश्मीरी अपने दो नौजवान बेरोज़गार बेटों के साथ गेहूं की फ़सल काट रही हैं.
हेमा मालिनी की तस्वीर देखते हुए वो कहती हैं, “फ़ोटो खिंचाना अलग काम है, गेहूं काटना अलग काम. ये खेतीबाड़ी का सबसे भारी काम है. ऐसी फ़ोटो हमारी मेहनत के साथ मज़ाक़ है.”
कश्मीरी कहती हैं, “सिर का पसीना पैर से निकल जाता है. मजबूरी है तो ये मज़दूरी कर रहे हैं. गर्मी लगती है, बहुत कठिन काम है. तीन चार लोग लगे हैं. पूरे दिन में एक बीघा भी नहीं कटेगा. बच्चों का पेट भरना है इसलिए कर रहे हैं.”
राजेंद्री की तरह ही कश्मीरी को भी किसी सरकारी योजना का कोई फ़ायदा नहीं मिला है. खेत काटने के बदले उन्हें गेहूं मिलेंगे.
इमेज कॉपीरइटPoonam Kaushal/BBC
वो कहती हैं, “मिट्टी के कच्चे मकान में टाइम काट रहे हैं. पूरे गांव में हमारा ही मकान सबसे कच्चा है लेकिन किसी ने हमारा घर नहीं बनवाया है.”
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कश्मीरी जैसे ग़रीब परिवारों का घर बनाने में सरकार ढाई लाख रुपए तक मदद करती है.
लेकिन कश्मीरी की मदद करने अभी तक कोई नहीं आया है. वो कहती हैं कि उनकी भाग-दौड़ करने वाला कोई नहीं है.
यहां से कुछ दूर ही जयपाली अपनी एक पड़ोसन के साथ मिलकर खेत काटने में जुटी हैं.
उनका दर्द भी वैसा ही है जैसा कश्मीरी और राजेंद्री का. साल भर के खाने के इंतज़ाम करने के लिए वो ये काम कर रही हैं.
वो कहती हैं, “काम क्या कर रहे हैं, गर्मी में मर रहे हैं. ना करेंगे तो बच्चे कैसे पलेंगे. गर्मी हो या सर्दी हमें तो मेहनत ही करनी है.”
किसान क्यों रो रहे हैं प्याज़ के आंसू
क्या मोदी सरकार में और ख़राब हुई है किसानों की हालत?
'कहां से भरें बिजली का बिल'
वो कहती हैं, “पहले बिजली का बिल कम आता था. अब हज़ार रुपए महीना आ रहा है. हम जैसा ग़रीब आदमी कहां से इतना बिल भरेगा. बढ़-बढ़कर पैंतीस हज़ार हो गया है. कोई हमारा बिल कम करा दे तो बड़ी मदद हो.”
उन्हें किसी सरकार या पार्टी के वादे पर कोई भरोसा नहीं है. लेकिन जब उन्हें सीधे खाते में पैसे आने की प्रस्तावित योजना के बारे में बताया गया तो उन्होंने कहा, “अगर ऐसा हो जाए, सीधे पैसा हमारे खाते में आ जाए तो हम यहां ख़ून क्यों जलाएंगे.”
इमेज कॉपीरइटPoonam Kaushal/BBCImage caption भूमिहीन किसान मुन्नी देवी
यहां से क़रीब पचास किलोमीटर दूर गंगनहर के किनारे बसे मेरठ ज़िले के भोला झाल गांव की रहने वाली मुन्नी देवी अपनी बेटियों को साथ लिए जंगल जा रही हैं.
उनके हाथ में दरांती है.
वो कहती हैं, “लकड़ी काटने जा रहे हैं. जंगल से लकड़ी काटेंगे तो घर में शाम को चूल्हा जलेगा और खाना बनेगा.”
केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना का फ़ायदा मुन्नी को नहीं मिला है. उनके साथ जा रही उनकी नाबालिग़ बेटी निशा आगे पढ़ना चाहती है लेकिन जल्द ही उसकी शादी कर दी जाएगी.
निशा अभी शादी नहीं करना चाहती.
लेकिन कहती है, “मम्मी-पापा मजबूर हैं. घर में कुछ नहीं है. क़र्ज़ चढ़ा है. मकान गिरवी रखा है, मेरे पास आगे कोई रास्ता नहीं है.”
निशा कहती है, “पैसे की तंगी में पढ़ाई छूट गई. पापा ने चालीस हज़ार साहूकार से लिए थे. अब बढ़कर ढाई लाख हो गए हैं. हमें किसी भी दिन घर से निकाला जा सकता है.”
लकड़ी काटने जा रही मुन्नी देवी को ये काम निपटा कर गेहूं काटने जाना है. उन्हें सिर्फ़ खाने के लिए गेहूं का ही नहीं बल्की चूल्हे के लिए ईंधन का भी इंतज़ाम करना है.
इमेज कॉपीरइटPoonam Kaushal/BBC
उन्हें अपनी बेटी की पढ़ाई छूटने का अफ़सोस हैं.
वो कहती हैं, “हम ग़रीबों की कोई मदद नहीं करता. बेटी की शादी हो जाएगी तो एक फ़िक्र निबटेगी.”
मुन्नी के पति मज़दूरी करते हैं और अक्सर शाम को दारू पीकर झगड़ा करते हैं.
चुनावी मौसम में उन्हें किसी नेता से कोई उम्मीद नहीं हैं. वो कहती हैं, “हम जैसे गऱीबों का कोई कुछ नहीं करता. आप कुछ करा दो तो भला हो.”
गेहूं की फ़सल काट रही जितनी भी महिलाओं से मैं मिली वो दलित वर्ग से थीं. हेमा मालिनी की तस्वीर उनकी मेहनत और ज़िंदगी की मुश्किलों के साथ मज़ाक़ सी लगती है.
किसानों का क़र्ज़ पूरी तरह माफ़ हो गया?
क्या किसानों की आय 2022 तक दोगुनी हो जाएगी?
क़र्ज़माफ़ी की योजना
केंद्र और राज्य सरकारों ने हाल के महीनों में किसानों के लिए क़र्ज़माफ़ी का ऐलान किया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान सम्मान निधी के तहत सीधे किसानों के बैंक खातों में दो हज़ार रुपये भी भेजे हैं.
लेकिन केंद्र सरकार की ऐसी किसान हितैषी योजनाओं का फ़ायदा राजेंद्री और जयपाली जैसी महिलाओं को नहीं मिलता.
सरकार की योजना का फ़ायदा तो क्या इन भूमिहीन मज़दूर महिलाओं को तो अपनी मेहनत का सही दाम तक नहीं मिलता.
अस्वीकरण:
इस लेख में विचार केवल लेखक के व्यक्तिगत विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं और इस मंच के लिए निवेश सलाह का गठन नहीं करते हैं। यह प्लेटफ़ॉर्म लेख जानकारी की सटीकता, पूर्णता और समयबद्धता की गारंटी नहीं देता है, न ही यह लेख जानकारी के उपयोग या निर्भरता के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के लिए उत्तरदायी है।