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एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटFacebook/Mukesh Sahaniचार नवंबर 2018 को पटना के गांधी मैदान में दिल्ली के संसद भवन की प्
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चार नवंबर 2018 को पटना के गांधी मैदान में दिल्ली के संसद भवन की प्रतिकृति दिख रही थी या यूं कहें कि दिखाने की कोशिश की जा रही थी. लेकिन यहां न फ़िल्म की शूटिंग चल रही थी और न ही कोई प्रदर्शनी. बल्कि निषाद समुदाय के लोगों का जुटान हुआ था.
बॉलीवुड फ़िल्मों के सेट डिजाइनर और खुद को 'सन ऑफ़ मल्लाह' कहने वाले मुकेश सहनी ने इसी दिन अपने हज़ारों समर्थकों की मौजूदगी में एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की और पार्टी का नाम रखा गया वीआईपी. यानी विकासशील इंसान पार्टी.
'वीआईपी' का मतलब समझाते हुए मुकेश कहते हैं, “लोकतंत्र में वीआईपी वही होता जिसके पास अधिक लोग होते हैं. क्योंकि हम बिहार की 14 फ़ीसदी से अधिक अतिपिछड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसलिए हम वीआईपी पार्टी हैं.”
'वीआईपी' को बने अभी बमुश्किल पांच महीने भी नहीं हुए हैं. पार्टी की घोषणा के वक्त उन्होंने कम से कम 20 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही थी लेकिन महागठबंधन का हिस्सा बनने पर उनके खाते में बिहार की 40 में से तीन लोकसभा सीटें आई हैं.
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इमेज कॉपीरइटABHIMANYU KUMAR SAHA/BBCतीन सीटें क्यों?
29 मार्च को यह एलान हो गया कि वीआईपी पार्टी खगड़िया, मधुबनी और मुज़फ़्फ़रपुर से चुनाव लड़ेगी. खगड़िया से खुद मुकेश प्रत्याशी होंगे.
इस एलान के बाद से यह चर्चा आम है कि पांच महीने पहले बनी इस पार्टी को इतना महत्व क्यों दिया जा रहा है और ये तीन सीटें किस आधार पर उन्हें दी गई हैं. जबकि जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को भी इतनी ही सीटें मिली हैं.
लेफ्ट पार्टियों में से सीपीआई-एमएल को मिली एक सीट को छोड़कर बाकी सीपीआई और सीपीआई-एम को गठबंधन से किनारे का रास्ता दिखा दिया गया.
इस सवाल के जवाब में मुकेश सहनी कहते हैं, “तीन तो कम ही मिली हैं. हमारी मांग अधिक की थी. चूंकि हम मौजूदा एनडीए सरकार को हराने के लिए प्रतिबद्ध हैं, इसलिए तीन पर ही समझौता करना पड़ा.”
वे कहते हैं, “तीन सीटें कम हैं क्योंकि हमारा प्रतिनिधित्व इससे ज़्यादा है. अतिपिछड़ी जातियों में हमारे समुदाय की भागीदारी सबसे अधिक है. हम 21 जातियों-उपजातियों में बंटे हैं.”
“हमारे वोट सरकार बना और गिरा सकते हैं. उत्तर बिहार में हम 15 सीटों पर उम्मीदवारों का भाग्य बदल सकते हैं. और ऐसा नहीं कि ये सिर्फ़ पांच महीने की बात है. हम बीते पांच सालों से अपने समुदाय के लिए संघर्ष कर रहे हैं. 2015 में हमने आंदोलन किया.”
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{} 18 今日早盘政治生涯站在熊Mahagtbndn是与NDA。人民院选举2014在BJP,他是明星活动家.BJP总统Amit Shah在近40次会议中与Mukesh一起举行。他吃饭。被每天送往直升机和他一起解决双方的联合会议。 {18} {19} 然后发生了什么事留下NDA? { 19} Mukesh回答说:“因为当时Amit Shah向我们许诺了对Nishad社区以及其他21个种姓和子种姓的特别保留。 2015年晚些时候,他们拒绝承诺。因此,我们也支持左侧。 ”
2015选举与穆克什尼,尼蒂什库马尔,后者分离。说,“ Nitishji具有也欺骗了我们他们最初还承诺我们社区的预订和设施,但不能这样做。现在他自己加入了BJP。因此,我们的战斗是他们。”
{} 22 通过政治分析家认为,NDA也去肚带三席穆克什·萨尼,但他们在预订时要求则坚持一下。有一个联合政府JD-U和RJD在比哈尔,他遭受了拉到自己身边。之后参与密切政府只去了。然后穆克什·萨尼惊人的。 {22} { 777} 为什么所有各方都应该与他们合作如果你不想? {777} {} 24 他们给自己。“因此,我们的合作伙伴关系的答案,这将与我们随身携带。不仅是Nishad,还有Bind,Baldar,Chayya,Tiar,Khalavat,Surahiya,其他21种亚种,包括吉祥,啄木鸟和果园,是我们社区的一部分。在很多地区,我们是17% ” {24} {25} 另外读|比哈尔:大亲缘族与 图片版权/金钱游戏?
{28在与BJP分离的问题上,穆克什说:“如果箭头在手中,那么就可以制造出不同的目标。但是当箭头消失时,什么都不会发生。这些谁都会有胸部,Chubega一样的。” {28} “阿米特·沙阿背叛了我们,然后我们的政党是没有。现在,我们拥有一个政党,所以要支付的汉奸和战争是政治协议。”
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एनडीए ने वादा तोड़ा, नीतीश ने छल किया
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आज महागठबंधन के साथ खड़े सहनी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत एनडीए के साथ हुई थी. लोकसभा चुनाव 2014 में वो बीजेपी के स्टार कैंपेनर थे. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने क़रीब 40 सभाओं में मुकेश को अपने साथ रखा था. उन्हें अपने साथ हर दिन हेलीकॉप्टर में ले जाते और दोनों संयुक्त सभा को संबोधित करते थे.
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तो फिर क्या हुआ कि एनडीए का साथ छोड़ दिया?
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मुकेश जवाब देते हैं, “क्योंकि तब अमित शाह ने हमसे वादा किया था निषाद समुदाय और उसमें बँटी 21 अन्य जातियों-उपजातियों के लिए विशेष आरक्षण की व्यवस्था करेंगे. बाद में 2015 वे वादों से मुकर गए. इसलिए हमने भी साथ छोड़ दिया.”
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2015 के विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी ने नीतीश कुमार को सपोर्ट किया था. बाद में उनसे भी अलग हो गए. कहते हैं, “नीतीशजी ने भी हमारे साथ छल किया. उन्होंने भी हमारे समुदाय के आरक्षण और सुविधाओं के लिए शुरू में वादा किया, लेकिन नहीं निभा पाए. अब तो वे खुद बीजेपी के साथ हो गए हैं. इसलिए हमारी लड़ाई उनसे भी है.”
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राजनीतिक जानकार कहते हैं कि एनडीए के साथ भी मुकेश सहनी की तीन सीटों पर बात पक्की हो गई थी. लेकिन वे उस वक्त आरक्षण की मांग को लेकर अड़े थे. तब बिहार में जेडीयू और आरजेडी के गठबंधन की सरकार थी. उन्होंने सहनी को अपनी तरफ खींच लिया. बाद में सरकार ही टूट गई. फिर मुकेश सहनी तेजस्वी के करीबियों में शामिल हो गए.
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आखिर क्या वजह है कि सभी दल सहनी को अपने साथ रखना चाहते हैं?
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जवाब वे खुद देते हैं. “हमारी भागीदारी इतनी है कि हमें साथ लेकर चलना ही होगा. केवल निषाद ही नहीं बल्कि बिंड, बेलदार, चाईये, तियार, खुलवत, सुराहिया, गोढी, वनपार और केवट समेत अन्य 21 जातियां-उपजातियां हमारे समुदाय का हिस्सा हैं. कई ज़िलों में हम 17 फ़ीसदी तक हैं.”
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इमेज कॉपीरइटFacebook/Mukesh Sahaniपैसे का खेल?
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बीजेपी से अलग होने की बात पर मुकेश कहते हैं कि, “अगर तीर हाथ में रहे तो अलग निशाना लगाया जा सकता है. लेकिन जब तीर हाथ से छूट जाए तो कुछ नहीं हो सकता. वो जिस किसी के सीने में जाएगा, चुभेगा ही.”
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“अमित शाह ने हमसे गद्दारी की और तब हमारी पॉलिटिकल पार्टी भी नहीं थी. अब हम खुद एक पॉलिटिकल पार्टी हैं, इसलिए उस गद्दारी का हिसाब चुकाने के लिए पॉलिटिकल समझौता किया और लड़ाई लड़ रहे हैं.”
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लेकिन, जानकार कहते हैं कि सभी मुकेश सहनी को इसलिए भी साथ रखना चाहते हैं क्योंकि इनके पास पैसा बहुत है. अपनी रैलियों और प्रचार-प्रसार में मुकेश ने पैसे की ताक़त भी दिखाई है. फिर चाहे वह चार्टर्ड विमान से पटना आना हो, अख़बारों में बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाना हो, हेलिकॉप्टर से अपने क्षेत्र के दौरे पर निकलना हो या फिर रैलियों में साज-सज्जा और इंतज़ाम की बात हो.
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कहते हैं कि राजनीति के शुरुआती दिनों में मुकेश को पटना के किसी होटल में ठहरना पसंद नहीं था. क्योंकि उन्हें यहां की सुविधाएं और इंतजाम नाकाफी लगते थे. चर्चा है कि आगामी चुनाव में भी मुकेश के पैसे की धमक देखने को मिलेगी.
लेकिन, इन सारी चर्चाओं पर तब विराम लग जाता है जब पैसे की बात पर मुकेश कहते हैं, “देखिए मैं मछुआरा का बेटा हूं. मेरे पास पहले की कोई संपत्ति नहीं है. हां, हमने पैसे कमाये हैं और यह काली कमाई नहीं, एक नंबर का पैसा है. एक-एक पैसे का हिसाब है. इनकम टैक्स देता हूं. कमाए हुए पैसे अपने लोगों के लिए खर्च करता हूं. और उतना भी पैसा नहीं है जितना लोग कहते हैं.”
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बॉलीवुड से सुर्खियों में आए थे मुकेश
मूल रूप से दरभंगा के सुपौल बाज़ार के रहने वाले मुकेश सहनी संजय लीला भंसाली की फ़िल्मों के सेट डिजाइन कर सुर्खियों में आए थे. फिलहाल वो मुंबई में मुकेश सिनेवर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मालिक हैं. जिसका बेस कैपिटल पांच लाख रुपये है. कंपनी 2013 में ही बनी थी.
मुकेश पहली बार खगड़िया से चुनाव लड़ेंगे. लेकिन उनका घर दरभंगा में है और चर्चा भी यही थी कि महागठबंधन उन्हें दरभंगा से अपना उम्मीदवार बनाएगा. बाद में जब दरभंगा से आरजेडी के अब्दुल बारी सिद्दिकी के नाम पर मुहर लग गई तब यह कयास लगाए जाने लगे कि मुकेश को मुज़फ़्फ़रपुर सीट दी जाएगी.
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आखिर में खगड़िया से क्यों? जवाब में सहनी कहते हैं, “समझौते के तहत हमें तीन सीटें लेनी थी. चूंकि खगड़िया नया सीट था. इसलिए हमने उसे चुनौती के रूप में लिया. जहां तक बात मुज़फ़्फ़रपुर सीट की है तो हम वहां से क्यों लड़ें जहां से हमारे लोग जीत सकते हैं?”
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“मेरे खयाल से सीटें उतना मायने नहीं रखती हैं, जितना कि मायने रखता है बीजेपी को हराना.”
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सवाल फिर वही कि क्या मुकेश सहनी को तीन सीटें इसलिए मिली हैं क्योंकि (उनके दावे के मुताबिक) वे निषाद समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं और उनका वोट बैंक 14 फ़ीसदी है?
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बीजेपी क्यों नहीं मना पाई मुकेश सहनी को?
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बीजेपी के प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं, “ऐसा नहीं कि मुकेश निषाद समुदाय के अकेले नेता हैं. उनकी तरह के दर्जनों नेता हमारी पार्टी में भी हैं. स्पष्ट है कि महागठबंधन ने उन्हें तीन सीटें जातीय आधार पर दिया है. सीटों के बंटवारे से इसे समझा जा सकता है.”
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सहनी को बीजेपी ने भी मनाने की कोशिशें की थी. तीन सीटों की बात भी हो गई थी. लेकिन अब मामला उलट है. आखिर मुकेश सहनी को बीजेपी क्यों नहीं मना पायी?
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निखिल आनंद कहते हैं, “राजनीति में परिस्थितियां बदलती हैं. जिन परिस्थितियों में सहनी को साथ लेने की बात थीं वे अब नहीं रहीं. बात केवल समुदाय विशेष के कल्याण की नहीं थी, वो तो होनी ही चाहिए. दरअसल, मुकेश सहनी उस समुदाय के नाम पर राजनीति कर रहे हैं.”
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दूसरी तरफ उनके सहयोगी आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार संजय यादव कहते हैं कि, “मुकेश सहनी को महागठबंधन में तीन सीटें उनके समुदाय के प्रतिनिधित्व के आधार पर मिली हैं. महागठबंधन की राजनीति सोशल जस्टिस की राजनीति है.”
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“हमने सीट शेयरिंग में इस बात का पूरा खयाल रखा है कि हर समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व मिले चाहे वह अतिपिछड़े समुदाय का हो या फिर अल्पसंख्यक हो. हम बीजेपी की तरह धर्म की राजनीति नहीं करते.”
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