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एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटvivek oberoy facebookImage caption विवेक ओबेरॉय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क़िरदार में
इमेज कॉपीरइटvivek oberoy facebookImage caption विवेक ओबेरॉय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क़िरदार में
बीते 5 सालों में आपने भारतीय राजनीति में बड़ा बदलाव होता देखा होगा. अभिनेता और नेता के बीच जो रिश्ता है वो आज से नहीं कई सालों पुराना है.
बस फर्क है तो इतना कि पहले अभिनेता अभिनय कर नाम कमाने के बाद राजनीति से जुड़ते थे और अब अभिनेता नेताओं की बायोपिक फ़िल्मों के ज़रिये बड़े पर्दे पर राजनीति करते दिख रहे हैं.
2018 में कई ऐसी फिल्में आईं जो किसी बड़े राजनेता कि बायोपिक का हिस्सा रहीं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि चमकाने वाली एक के बाद एक कई फ़िल्में रिलीज़ हुईं. फिर वो 2018 में आई 'उरी :द सर्जिकल स्ट्राइक' हो या फिर हाल ही में रिलीज़ हुई राकेश ओम प्रकाश मेहरा कि फ़िल्म 'मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर'.
अब आलम ऐसा है कि पूरी फिल्म ही रिलीज़ हो रही है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर. फ़िल्म का नाम है 'पीएम नरेंद्र मोदी'.
इस फ़िल्म में नेरन्द्र मोदी का क़िरदार अभिनेता विवेक ओबेरॉय निभा रहे हैं. फिल्म की रिलीज डेट पहले 12 अप्रैल रखी गई थी, लेकिन अब फिल्म को 5 अप्रैल को रिलीज़ किया जाएगा.
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इमेज कॉपीरइटScreen shotएक सप्ताह पहले रिलीज़ क्यों?
इस तरह चुनावी माहौल में फ़िल्म को पहले रिलीज़ करने के कई मायने निकाले जा रहे हैं. हालांकि फ़िल्म के निर्माताओं ने कहा है कि यह उन्होंने पब्लिक डिमांड पर किया है.
निर्माता संदीप सिंह फ़िल्म के निर्माता और क्रिएटिव डायरेक्टर हैं और उन्होंने इसकी कहानी भी लिखी है.
उन्होंने हाल ही में फ़िल्म के ट्रेलर लांच के दिन कहा था कि, “हम इस फ़िल्म की सार्वजनिक मांग को देखते हुए एक सप्ताह पहले रिलीज़ कर रहे हैं. लोगों के बीच इसे लेकर बहुत प्यार और आशा है और हम नहीं चाहते कि वे लंबे समय तक इंतजार करें.”
'पीएम नरेंद्र मोदी' में शुरुआत से लेकर भारत के प्रधानमंत्री बनने तक के नरेंद्र मोदी के सफ़र को दिखाया गया है.
क्या ये फ़िल्म प्रोपोगैंडा फ़िल्म है? इस सवाल पर फ़िल्म के निर्माता संदीप सिंह कहते हैं, “हम फ़िल्म के मेकर हैं और आप ट्रेलर देख चुके हैं और जब फ़िल्म देखेंगे तब आप सब ही तय करिएगा कि ये प्रोपोगैंडा फ़िल्म है या नहीं.”
उन्होंने कहा, “हम अपना काम कर रहे हैं. हमको नहीं जानना कौन क्या बोल रहा है. किसको क्या शिकायत है. ये एक सच्ची कहानी है जो हम दर्शकों तक पंहुचा रहे हैं. हम अपना काम कर रहे हैं और इसका विरोध कर दूसरी पार्टी के लीडर अपना काम कर रहे हैं.”
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है तो प्रोपेगैंडा फ़िल्म ही
लेकिन जाने माने वरिष्ठ पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज कहते हैं, “इन प्रोपोगैंडा फ़िल्मों को जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा. अभी जो लोग सत्ता में हैं वो सत्तारूढ़ पार्टी है फ़िल्मों को अपने हित में सही से इस्तेमाल करती है या ये कह लें करना जानती है और इन फ़िल्मों की प्लानिंग आज से नहीं सत्ता के आने के बाद से ही थी.”
“उन्होंने अपनी लॉबी पहले से ही तैयार कर ली थी अंदरूनी तरीके से. पार्टी से जुड़े कुछ फिल्म मेकर हैं जो बार बार इस बात पर ज़ोर डालते रहे हैं कि अगर आप राष्ट्रवाद की बात करेंगे या भाजपा की विचारधारा से प्रेरित होकर विषयों पर फिल्म बनाएंगे या उनकी बात करेंगे तो ये आपके लिए बेहतर होगा और ऐसा ही हुआ कुछ लोगों ने इन बातों पर अमल भी किया.”
“ऐसा करना मैं ग़लत नहीं मानता हूँ. इसको अपराध की तरह देखना ग़लत होगा क्योंकि सत्ता के क़रीब कोई भी रहना चाहेगा और ये फ़िल्म कलाकार ज़्यादा ऐसा चाहते हैं. फिल्म मेकर भी इनके समर्थन में ही फ़िल्म बना रहे हैं और अगर कल कांग्रेस पार्टी या कोई और पार्टी सत्ता में आ गई तो वो फिर उन्हें समर्थन करने लगेंगे.”
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इमेज कॉपीरइटParull gossain PRImage caption 'द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर' में मनमोहन सिंह के क़िरदार में अनुपम खेर.
बायोपिक फ़िल्मों का फ़ैशन
ब्रह्मात्मज कहते हैं , “आज बायोपिक फिल्मों का ज़माना है, बायोपिक फिल्में आज कल फ़ैशन में हैं. आज के जो दर्शक है वो ही कल के मतदाता बनते हैं और बायोपिक फ़िल्में हमेशा प्रभावित करती रही हैं. ये फिल्में तीन लोगों पर ही बनती हैं सैनिक, खिलाड़ी या राजनेता.”
वो पूछते हैं, “लेकिन क्या कभी किसी समाज सेवक पर फिल्म बनी है? किसी ने बाबा अम्बेडकर पर बायोपिक बनाने की घोषणा की है? जवाब है ना क्योंकि उनके विचारों पर कोई फ़िल्म नहीं बनाना चाहता और बायोपिक फिल्मों के लिए ढेर सारे ड्रामे की ज़रूरत होती है.”
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वो कहते हैं, “ड्रामा क्रिएट किया जाता है, हार के बाद जीत दिखाया जाता है फिर वो चाहे 'ठाकरे' हो या 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' या 'उरी' या फिर 'पीएम मोदी'. फ़िल्म 'उरी' का डायलॉग हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी बोलते नज़र आते हैं 'हाउ इज़ द जोश'.”
वो कहते हैं, “आज तक कभी किसी प्रधानमंत्री ने किसी फ़िल्म का संवाद बोला है?”
अजय ब्रह्मात्मज कहते हैं कि नेशनलिज़्म पर फ़िल्में आज से नहीं आजादी के समय से बनती आ रही हैं. 'गांधी' से लेकर कई फिल्में 'पूरब और पश्चिम', 'नया दौर' जैसी कई फिल्में बनीं जो भारत के विकास और उसकी विचारधारा पर बात करती थीं, लेकिन आज वैचारिकता जो है वो सिर्फ एक पार्टी के लिए हो गई है.
जाने माने निर्देशक और निर्माता ने एक टाइम में 'माय नेम इज़ ख़ान' जैसी फ़िल्म बनाई थीं और आज वो केसरी भी बना रहे हैं. ये उनके विचार नहीं व्यापार है.
फ़िल्म में कश्मीर, पाकिस्तान
अजय ब्रह्मात्मज कहते हैं कि पीएम मोदी को देख कर साफ़ पता चलता है. इस फ़िल्म का एक संवाद है 'देश भक्ति ही मेरी शक्ति है' ये संवाद खुद अपने आप में बहुत बड़ा प्रपोगैंडा है.
फ़िल्म कश्मीर के मुद्दे की बात करती है, पकिस्तान के मुद्दे की बात करती है लेकिन विकास की बात तो कर ही नहीं रही है.
फ़िल्म में एक और संवाद है 'तुमने हमारा बलिदान देखा है...बदला नहीं', ऐसे संवाद तो हमारी हिंदी फ़िल्मों का हीरो बोलता है लेकिन प्रधानमंत्री जो बनने जा रहा है वो इस तरह के संवाद बोलते दिख रहा है इससे पता चलता है फ़िल्म का स्तर कैसा है.
इमेज कॉपीरइटDevendra Fadnavis twitter
फ़िल्म का पहला पोस्टर 3 जनवरी को आता है उसी दिन फ़िल्म की घोषणा होती है और 3 महीने के अंदर पूरी फ़िल्म बन जाती है.
वो कहते हैं, “मैं जानता हूँ 3 महीने में फ़िल्म बनाना बड़ी बात नहीं है लेकिन फ़िल्म के बारे में सोचने से लेकर बनाने तक 3 महीने का समय बहुत कम है और फिर इसे कई भाषाओं में रिलीज़ करना. मुझे अच्छे से याद है इस फ़िल्म का पोस्टर 23 भाषाओं में लाया गया था. इतना कुछ इलेक्शन से पहले करना ये बात सबको समझ आती है और फिर कहते हैं कि ये प्रोपोगैंडा फ़िल्म नहीं है.”
निर्माता को मुनाफ़े से मतलब
जाने माने बॉलीवुड ट्रेड एनालिस्ट आमोद मेहरा का भी यही मानना है कि 'ठाकरे', 'पीएम नरेंद्र मोदी' जैसी फ़िल्में प्रोपोगैंडा फ़िल्में हैं.
वो कहते हैं, “'ठाकरे' फ़िल्म को बनाया ही शिवसेना ने था. उसे रिलीज़ भी उन्हीं ने किया. शिवसेना को इस फ़िल्म के चलते इलेक्शन में कितना फ़ायदा होगा ये मैं नहीं बता सकता. हाँ, लेकिन इस फ़िल्म को रिलीज़ कर उनका जो मकसद था वो ज़रूर कामयाब हुआ.”
'ठाकरे' के विचारधारा को दिखाया और उनको जो बताना था कि उन्होंने मराठी लोगों के लिए बहुत कुछ किया वो उनका मकसद कामयाब हुआ. फ़िल्म ने नवाज़ की वजह से 25 करोड़ भी कमाए.
वो कहते हैं, “उसी तरह 'द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर' भी आई उसने 20 करोड़ रुपये की कमाई. ये बहुत बड़ी कमाई है, वरना अनुपम खेर को बतौर अभिनेता 300 से 400 रुपये की टिकट खरीद कर कौन जाता है देखने. लेकिन फ़िल्म में विवाद था. लोगों में जानने की दिलचस्पी थी इसलिए फ़िल्म ने अच्छी कमाई भी की जिसके चलते फ़िल्म मेकर को फ़ायदा हुआ.”
“अब फ़िल्म मोदी आ रही है मुझे नहीं पता पीएम को इससे क्या फ़ायदा या नुक्सान होगा लेकिन, हाँ फ़िल्म से जुड़े मेकर और विवेक के करियर को ज़रूर फ़ायदा होगा वरना विवेक को फिल्में कहां मिल रही थीं. अगर फ़िल्म चल गई तो विवेक का फ्लॉप करियर हिट हो जाएगा.”
बेघर हुईं एनटीआर की पत्नी लक्ष्मी पार्वती
इमेज कॉपीरइटRam gopal vermaImage caption राम गोपाल वर्मा ने एनटी रामा राव पर बायोपिक बनाई 'लक्ष्मी एनटीआर', जो जनवरी में ही रिलीज़ हो चुकी है.
सिलसिला अभी थमा नहीं है. बायोपिक फिल्मों की दौड़ में रामगोपाल वर्मा की फिल्म 'लक्ष्मी एनटीआर' भी है, जिसमें विद्या बालन एनटीआर की पत्नी की भूमिका में हैं.
ये जनवरी में रिलीज हो चुकी है. वहीं इस बायोपिक का दूसरा हिस्सा भी जल्द ही रिलीज किया जाएगा.
बाकी फ़िल्मों में और फ़िल्मों में केसीआर, तीसरी यात्रा, जो वायएस राजशेखर रेड्डी की राजनीतिक जीवनी है जिसमें मामूटी मुख्य भूमिका में हैं. चौथी चंद्रबाबू नायडू की ज़िंदगी पर भी बन रही है फिल्म.
इस लिस्ट में बहुत जल्द तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता का भी नाम शामिल है.
कहा जा रहा है कि जयललिता की ज़िन्दगी पर भी एक बायोपिक फ़िल्म बनने जा रही है और इस फ़िल्म में अभिनेत्री कंगना रनौत जयललिता का क़िरदार निभाती नज़र आ सकती हैं.
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