简体中文
繁體中文
English
Pусский
日本語
ภาษาไทย
Tiếng Việt
Bahasa Indonesia
Español
हिन्दी
Filippiiniläinen
Français
Deutsch
Português
Türkçe
한국어
العربية
एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesबात 2014 के संसदीय चुनाव से पहले की है. एक चुनावी सभा में मुलायम सिंह यादव
इमेज कॉपीरइटGetty Images
बात 2014 के संसदीय चुनाव से पहले की है.
एक चुनावी सभा में मुलायम सिंह यादव ने नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा, “मोदी में दम नहीं है कि वो उत्तर प्रदेश को गुजरात बना दें.”
दूसरे दिन एक दूसरी चुनाव सभा में नरेंद्र मोदी ने इसका उसी 'टोन' में जवाब दिया, “नेताजी कह रहे हैं कि मोदी में बूता नहीं है कि वो उत्तर प्रदेश को दूसरा गुजरात बना दें. क्या आपको पता है कि दूसरा गुजरात बनाने के लिए क्या चीज़ सबसे अधिक ज़रूरी है? इसके लिए चाहिए छप्पन इंच की छाती.”
इस एक जुमले ने उस चुनाव में मोदी को एक 'माचो मैन' के रूप में स्थापित कर दिया. इसके ज़रिए उन्होंने हिंदू पौरुष से प्रभावित होने वाले मतदाताओं को अपनी ओर आकृष्ट भी किया.
ये अलग बात है कि जब उनके जीवनीकार निलंजन मुखोपाध्याय ने अहमदाबाद में उनके दर्ज़ी बिपिन चौहान से जिनकी 'जेड ब्लू' नाम की दुकान है, उनकी सीने की असली नाप जाननी चाही, तो वो चुप लगा गए और इतना ही बताया कि वो 56 इंच तो नहीं ही है.
बाद में जब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के अधिकारियों को नरेंद्र मोदी की अचकन सिलवाने की ज़िम्मेदारी दी गई तो उनके दर्ज़ी को नरेंद्र मोदी के सीने की नाप 50 इंच बताई गई.
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesबचपन से ही बहस की आदत
अपने पढ़ाई के दिनों में मोदी एक औसत विद्यार्थी थे.
निलंजन मुखोपाध्याय ने बीएन हाई स्कूल में उनके उन दिनों के अध्यापक प्रह्लाद भाई पटेल से बात कर अपनी किताब 'नरेंद्र मोदी- द मैन, द टाइम्स' में लिखा है, “नरेंद्र उन दिनों बहस बहुत करते थे. एक बार मैंने उन्हें अपना 'होम वर्क' क्लास के 'मॉनीटर' को दिखाने के लिए कहा.”
“मोदी ने ये कहते हुए साफ़ इनकार कर दिया कि मैं अपना काम या तो अध्यापक को दिखाउंगा, या किसी को भी नहीं.”
‘चौकीदार चोर है’ का नारा देकर फंस गए राहुल गांधी?
दुर्भाग्य से मोदी के भीतर प्यार नहीं है: राहुल गांधी
पीएम मोदी की पाकिस्तान को बधाई पर उठते सवाल
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesजब मोदी ने मगरमच्छों से भरी झील पार की
मोदी के बड़े से बड़े विरोधी भी मानते हैं कि उनमें आत्मविश्वास की कमी नहीं.
मोदी के एक और जीवनीकार एंडी मरीनो अपनी किताब 'नरेंद्र मोदी अ पोलिटिकल बायोग्राफ़ी' में लिखते हैं, “मोदी के बचपन के दिनों में शर्मिष्ठा झील के पास एक मंदिर हुआ करता था. कई पवित्र मौक़ों पर उसके ऊपर लगे झंडे को बदला जाता था. एक बार भारी बारिश के बाद उस झंडे को बदलना ज़रूरी हो गया.”
“नरेंद्र मोदी ने तय किया कि वो झील के पार तैर कर जाएंगे और उस झंडे को बदलेंगे. झील में उस समय बहुत सारे मगरमच्छ रह रहे थे. किनारे खड़े लोग मगरमच्छों को डराने के लिए ढोल बजाते रहे और नरेंद्र मोदी अकेले तैर कर झील के पार जा कर मंदिर का झंडा बदल आए. जब वो वापस लौटे तो लोगों ने उन्हें कंधों पर उठा लिया.”
सैम पित्रोदा के किस बयान पर पीएम मोदी ने कहा जनता माफ़ नहीं करेगी
बनारस में मोदी के ख़िलाफ़ 111 किसान लड़ेंगे चुनाव
'मुसलमानों के मामले में भारत पर छा जाती है ख़ामोशी'
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesचाय की दुकान
नरेंद्र मोदी शुरू से ही घर के काम में हाथ बँटाते थे. स्कूल बंद होते ही दौड़ कर वडनगर स्टेशन पर अपने पिता की चाय की दुकान पर पहुंच जाते थे.
नरेंद्र मोदी ने लोगों को ये बात हमेशा गर्व से बताई.
एक बार असम के चाय मज़दूरों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, “लोगों को आपकी असम की चाय पिला-पिला कर ही मैं इस जगह पर पहुंचा हूँ.”
छोड़िए यूट्यूब पोस्ट BBC News Hindi
चेतावनी: तीसरे पक्ष की सामग्री में विज्ञापन हो सकते हैं.
पोस्ट यूट्यूब समाप्त BBC News Hindi
इमेज कॉपीराइट BBC News HindiBBC News Hindiपत्राचार के ज़रिए राजनीति विज्ञान में डिग्री
नरेंद्र मोदी की दिली इच्छा थी कि प्राइमरी स्कूल के बाद वो जामनगर के सैनिक स्कूल में दाख़िला लें लेकिन उनके परिवार आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वो वहाँ दाखिला ले पाते.
दूसरे उनके पिता ये नहीं चाहते थे कि वो पढ़ने के लिए वडनगर से बाहर जाएं. उन्होंने एक स्थानीय डिग्री कॉलेज में दाख़िला भी लिया लेकिन उपस्थिति कम होने के कारण उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा.
बाद में उन्होंने पत्राचार के ज़रिए पहले दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए किया और फिर गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एमए.
सूचना के अधिकार के तहत जब कुछ लोगों ने मोदी की एमए डिग्री का विवरण जानना चाहा तो गुजरात विश्वविद्यालय ने बताया कि उन्होंने 1983 में प्रथम श्रेणी में एमए की परीक्षा पास की थी.
बाद में गुजरात विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर जयंतीभाई पटेल ने ये कह कर विवाद खड़ा कर दिया कि मोदी की डिग्री में जिन विषयों का ज़िक्र किया गया है, वो कभी राजनीति शास्त्र के एमए के पाठ्यक्रम में रखे ही नहीं गए.
गुजरात विश्वविद्यालय ने इन आरोपों का खंडन किया.
मोदी सरकार ने कितने एयरपोर्ट बनाए?
मोदी वाराणसी से और अमित शाह गांधीनगर से लड़ेंगे लोकसभा चुनाव
नीरव मोदी को नहीं मिली ज़मानत,अब आगे क्या?
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesजसोदाबेन से शादी
जब मोदी 13 साल के थे, जब उनके परिवार ने 11 साल की जसोदाबेन से उनकी शादी करवा दी. कुछ दिन उनके साथ रहने के बाद मोदी ने अपना घर छोड़ दिया.
दुनिया को उसके बारे में पहली बार पता तब चला जब उन्होंने 2014 लोकसभा चुनाव के हलफ़नामे में इसका ज़िक्र किया, हालांकि गुजरात के राजनीतिक हल्कों में दबी-ज़ुबान में इसकी चर्चा होती थी.
दिलचस्प बात ये है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जसोदाबेन को जब प्रोटोकॉल के अनुरूप सरकारी सुरक्षा प्रदान करवाई गई तो उन्होंने अपने-आप को एक अजीब सी स्थिति में पाया.
फ़र्स्ट पोस्ट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि जब वो सार्वजनिक वाहन से सफ़र करती हैं तो सुरक्षाकर्मी पुलिस वाहन में उनकी बस के पीछे चलते हैं.
छोड़िए यूट्यूब पोस्ट 2 BBC News Hindi
चेतावनी: तीसरे पक्ष की सामग्री में विज्ञापन हो सकते हैं.
पोस्ट यूट्यूब समाप्त 2 BBC News Hindi
इमेज कॉपीराइट BBC News HindiBBC News Hindi'वकील साहब' थे मोदी के उस्ताद
मोदी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में लाने का श्रेय अगर किसी को दिया जा सकता है तो वो हैं लक्ष्मणराव इनामदार उर्फ़ 'वकील साहब.'
उस ज़माने में वकील साहब गुजरात में आरएसएस के प्रांत प्रचारक हुआ करते थे.
एमवी कामथ और कालिंदी रन्डेरी अपनी किताब 'नरेंद्र मोदी: द आर्किटेक्ट ऑफ़ अ मॉड्रन स्टेट' में लिखते हैं, “एक बार मोदी के माता-पिता को इस बात का बहुत दुख पहुंचा था कि वो दीवाली पर घर नहीं आए थे. उस दिन वकील साहब उनको आरएसएस की सदस्यता दिलवा रहे थे.”
वर्ष 1984 में वकील साहब का निधन हो गया लेकिन मोदी उन्हें कभी भूल नहीं पाए. बाद में मोदी ने एक और आरएसएस कार्यकर्ता राजाभाई नेने के साथ मिल कर वकील साहब पर एक किताब लिखी, 'सेतुबंध.'
दूसरों को मोदी का जो गुण सबसे अधिक आकर्षित करता था, वो है अनुशासन.
वरिष्ठ पत्रकार जी संपथ बताते हैं, “मोदी के सबसे बड़े भाई सोमाभाई को ये कहते बताया गया है कि मोदी बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में शामिल होना चाहते थे, क्योंकि वो इस बात से ख़ासे प्रभावित थे कि शाखा में सिर्फ़ एक शख़्स आदेश देता है और हर कोई उसका पालन करता है.”
एक ज़माने में मोदी के क़रीबी रहे और बाद में उनके विरोधी बने शंकर सिंह वघेला बताते हैं, “मोदी शुरू से ही चीज़ों को अलग ढंग से करने के आदी रहे हैं. अगर हम लोग लंबी आस्तीन की कमीज़ें पहनते थे, तो मोदी छोटी आस्तीन की कमीज़ों में देखे जाते थे. हम लोग जब ख़ाकी 'शॉर्ट्स' पहनते थे, तो मोदी का पसंदीदा रंग सफ़ेद हुआ करता था.”
'बेरोज़गार हूं, इसलिए चौकीदार हूं'
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesवाजपेयी का वो मोबाइल कॉल
एक अक्तूबर 2001 को मोदी हवाई दुर्घटना में मरने वाले अपने एक पत्रकार मित्र के अंतिम संस्कार में भाग ले रहे थे. तभी उनके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी.
दूसरे छोर पर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे. उन्होंने पूछा, “आप कहाँ हैं?” तय हुआ कि शाम को मोदी वाजपेयी से मिलने जाएंगे.
जब शाम को मोदी 7 रेसकोर्स रोड पहुंचे तो वाजपेयी ने उनसे मज़ाक किया, “आप कुछ ज़्यादा ही तंदरुस्त दिखाई दे रहे हैं. दिल्ली में आपका कुछ ज़्यादा ही रहना हो गया है. पंजाबी खाना खाते खाते आपका वज़न बढ़ता जा रहा है. आप गुजरात जाइए और वहाँ काम करिए.”
एंडी मरीनो लिखते हैं, “मोदी समझे कि शायद उन्हें पार्टी के सचिव की हैसियत से गुजरात में कुछ काम करना है. उन्होंने बहुत मासूमियत ने पूछा. इसका मतलब ये हुआ कि जिन राज्यों को मैं देख रहा हूँ, उनको अब मैं नहीं देखूँगा? जब वाजपेयी ने उन्हें सूचित किया कि वो केशूभाई पटेल के बाद गुजरात के अगले मुख्यमंत्री होंगे तो मोदी ने ये पद लेने से साफ़ इनकार कर दिया.”
“उन्होंने कहा कि वे गुजरात में पार्टी को ठीक करने के लिए महीने में 10 दिन दे सकता हैं, लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे. वाजपेयी उन्हें मनाते रहे, लेकिन मोदी नहीं माने. बाद में आडवाणी को उन्हें फ़ोन कर कहना पड़ा, ”सबने आपके नाम पर मुहर लगा दी है. जाइए और शपथ लीजिए.“ वाजपेयी के फ़ोन आने के छठे दिन यानी 7 अक्तूबर, 2001 को नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली.”
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesगुजरात दंगों ने किया सबसे अधिक बदनाम
चार महीने बाद ही मोदी के नेतृत्व की पहली परीक्षा तब हुई जब गोधरा में अयोध्या से लौट रहे कार सेवकों के डिब्बे में आग लगा दी गई, जिसमें 58 लोग मारे गए.
दूसरे दिन विश्व हिंदू परिषद ने पूरे राज्य में बंद का आह्वाहन कर दिया. हिंदू मुस्लिम दंगे हुए और उसमें 2000 से अधिक लोगों की जान गई.
मोदी पर हालात पर क़ाबू करने के लिए तुरंत क़दम न उठाने के आरोप लगे.
मोदी ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में एक बहुत ही विवादास्पद बयान दिया, “हर क्रिया पर बराबर और उसके विपरीत प्रतिक्रिया होती है.”
एक दिन बाद उन्होंने एक टेलीविज़न चैनल को दिए एक दूसरे इंटरव्यू में दोहराया, “क्रिया और प्रतिक्रिया की 'चेन' चल रही है. हम चाहते हैं कि न क्रिया हो और न प्रतिक्रिया.”
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesवाजपेयी की राय
कुछ दिनों बाद उन्होंने दंगा पीड़ित शिविरों में रहने वाले मुसलमानों पर एक और असंवेदनशील टिप्पणी की. उन्होंने कहा, “हम पाँच, हमारे पच्चीस.”
बाद में उन्होंने एक इंटरव्यू में स्पष्टीकरण दिया कि वो सहायता शिविरों में रहने वाले लोगों की नहीं बल्कि देश की जनसंख्या समस्या का ज़िक्र कर रहे थे.
सालों बाद जब एक पत्रकार ने अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान सचिव रहे ब्रजेश मिश्रा से पूछा कि वाजपेयी ने मोदी को गुजरात दंगों के लिए बर्ख़ास्त क्यों नहीं किया तो उनका जवाब था, “वाजपेयी चाहते थे कि मोदी इस्तीफ़ा दें, लेकिन वो सरकार के प्रमुख थे, पार्टी के नहीं. पार्टी नहीं चाहती थी कि मोदी जाएं. वाजपेयी को पार्टी की राय के आगे झुकना पड़ा. बीजेपी कांग्रेस की तरह नहीं थी और न ही आज है.”
टोपी पहनने से इनकार
एक बार जब मौलाना सैयद इमाम ने उन्हें पहनने के लिए एक जालीदार टोपी दी तो उन्होंने उसे ये कहते हुए पहनने से इनकार कर दिया कि टोपी पहनने से कोई 'सेकुलर' नहीं बनता! ये अलग बात है कि 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने सिख पगड़ी सहित कई तरह की टोपियाँ पहनीं.
इमेज कॉपीरइटGetty Images
'मियाँ मुशर्रफ़' और 'शहज़ादे'
गुजरात के मुख्यमंत्री वाले दिनों में अपने चुनावी भाषणों के दौरान जिन पर उन्हें हमला करना होता था, उनके नाम के आगे वो अक्सर मुस्लिम विशेषण जैसे 'मिय़ाँ मुशर्रफ़' और 'मियाँ अहमद पटेल' लगाते थे.
साल 2014 के चुनाव के दौरान जब उन्होंने राहुल गाँधी का उपहास किया तो उन्होंने उसके लिए उर्दू शब्द 'शहज़ादे' का सहारा लिया, जब कि वो बहुत आसानी से 'राज कुमार' शब्द का प्रयोग कर सकते थे.
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली पार्टी बनी जिसने एक भी चुने हुए मुस्लिम सांसद के बिना केंद्र में सरकार बनाई.
बाद में मोदी मंत्रिमंडल में जो तीन मुस्लिम मंत्री लिए गए, उनमें से एक भी लोकसभा का सदस्य नहीं था.
छोड़िए यूट्यूब पोस्ट 3 BBC News Hindi
चेतावनी: तीसरे पक्ष की सामग्री में विज्ञापन हो सकते हैं.
पोस्ट यूट्यूब समाप्त 3 BBC News Hindi
इमेज कॉपीराइट BBC News HindiBBC News Hindiगुजरात मॉडल
गुजरात दंगों से खराब हुई छवि को नरेंद्र मोदी ने साफ़ करने की कोशिश की अपने मुख्यमंत्रित्व काल में हुए गुजरात के आर्थिक विकास को 'शो केस' करके.
इसको 'गुजरात मॉडल' का नाम दिया गया, जिसमें निजी क्षेत्र को बढ़ावा, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के बेहतर प्रबंधन और 10 फ़ीसदी की प्रभावशाली विकास दर हासिल की गई.
वर्ष 2008 में जब पश्चिम बंगाल में सिंगूर में टाटा मोटर्स का संयंत्र लगाने के खिलाफ़ आंदोलन चला तो मोदी ने तुरंत आगे बढ़ कर कंपनी को न सिर्फ़ गुजरात में संयंत्र लगाने की दावत दी, बल्कि उन्हें भूमि, कर छूट और दूसरी सुविधाएं भी उपलब्ध कराईं.
रतन टाटा इससे इतने खुश हुए कि उन्होंने मोदी की तारीफ़ के पुल बांध दिए. लेकिन इस गुजरात मॉडल की कई हलकों में आलोचना भी हुई.
मशहूर पत्रकार रूतम वोरा ने हिंदू में छपे एक लेख में बताया, कि 'वाइब्रेंट गुजरात' के आठ संस्करणों में 84 लाख करोड़ के निवेश समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, लेकिन इनमें से अधिकतर को पूरा नहीं किया गया.
“प्रति व्यक्ति आय के मापदंड पर गुजरात का भारत में पाँचवा स्थान ज़रूर था, लेकिन नरेंद्र मोदी के उदय से पहले भी गुजरात की गिनती भारत के चुनिंदा विकसित राज्यों में होती थी.”
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesख़ुद मोदी ने बनाया ब्रांड मोदी
सवाल उठता है कि जिन नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ भारत ही नहीं दुनिया के स्तर पर इतना प्रचार हुआ, उनको अमरीका ने वीज़ा नहीं दिया और संसद की कोई बहस नरेंद्र मोदी और गुजरात के दंगों के बिना नहीं पूरी हुई, उसके बावजूद मोदी को इतना बड़ा जन समर्थन क्यों मिला?
मोदी के एक और जीवनीकार और किताब 'सेंटरस्टेज- इनसाइड मोदी मॉडल ऑफ़ गवर्नेंस' के लेखक उदय माहूरकर बताते हैं, “मोदी को ब्रांड मोदी बनाने में ख़ुद नरेंद्र दामोदर मोदी ने काफ़ी मेहनत की है. बात-बात पर उंगलियों से वी का निशान बना देना, आत्मविश्वास या कहा जाए अकड़ से भरी चाल, उनके 'ट्रेडमार्क' आधी आस्तीन के कुर्ते और तंग चूड़ीदार पाजामें - उनकी हर अदा सोचसमझ कर बनाई गई है.”
मोदी की जो तस्वीर दुनिया के सामने पेश की जाती है वो है एक आधुनिक व्यक्ति की है जो लैप-टॉप इस्तेमाल करता है, उसके हाथ में एक वित्तीय अख़बार और 'डीएसएलआर' कैमरा है. वो कभी ओबामा की जीवनी पढ़ रहे हैं तो कभी ट्रैक सूट पहने हुए हैं तो कभी उनके सिर पर 'काऊ-ब्वॉय' हैट लगी हुई है.
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesमोदी की जीवनशैली
मोदी एक 'टिपिकल' 'समाजवादी' राजनेता की तरह नहीं हैं जो मुड़ा-तुड़ा खद्दर पहनता है और न ही वो ख़ाकी पैंट पहनने वाले और हाथ में लाठी लिए हुए आरएसएस प्रचारक हैं.
वो 'बलगारी' का मंहगा रीमलेस चश्मा पहनते हैं. उनकी जेब में अक्सर 'मों-ब्लाँ' पेन रहता है और वो हाथ में चमड़े के स्ट्रैप की लक्जरी 'मोवाडो' घड़ी बाँधते हैं.
वो कभी भी ठंडा पानी नहीं पीते, ताकि उनकी आवाज़ पर असर न पड़े. वो हमेशा जेब में एक कंघा रखते हैं. उड़े हुए बेतरतीब बालों के साथ उनकी आज तक एक भी तस्वीर नहीं खींची गई है.
वो हर रोज़ तड़के साढ़े चार बजे उठते हैं. योग करते हैं और अपने आई-पैड पर समाचार पत्र पढ़ते हैं. उन्होंने पिछले दो दशकों में एक भी छुट्टी नहीं ली है.
मशहूर पत्रकार विनोद के जोस 'कारवाँ' पत्रिका में अपने लेख 'द एंपरर अनक्राउंड: द राइज़ ऑफ़ नरेंद्र मोदी' में लिखते हैं, “मोदी को नाटकीयता पर पूरी महारत हासिल है. वो मुखर हैं, दृढ़ हैं और आत्मविश्वास से लबरेज़ हैं. वो उस तरह के नेता हैं जो अपने अनुयायियों को ये यकीन दिला सकते हैं कि उनके रहते हर चीज़ काबू में रहेगी.”
“वो बिना कागज़ का सहारा लिए लोगों की आँख में देख कर बोलते हैं. उनका भाषण शुरू होते ही लोगों में सन्नाटा छा जाता है. लोग अपने मोबाइल से छेड़-छाड़ करना बंद कर देते हैं और कई लोगों के तो मुंह खुले के खुले रह जाते हैं.”
छोड़िए यूट्यूब पोस्ट 4 BBC News Hindi
चेतावनी: तीसरे पक्ष की सामग्री में विज्ञापन हो सकते हैं.
पोस्ट यूट्यूब समाप्त 4 BBC News Hindi
इमेज कॉपीराइट BBC News HindiBBC News Hindiरिश्तेदार नहीं तो भ्रष्टाचार नहीं
मशहूर समाजशास्त्री प्रोफ़ेसर आशीष नंदी नरेंद्र मोदी की शख़्सियत के लिए 'प्योरिटैनिकल रिजिडिटी' शब्द का इस्तेमाल किया है.
इसको विस्तार से समझाते हुए वो लिखते हैं, “वो कोई सिनेमा नहीं देखते. न शराब पीते हैं और न ही सिगरेट पीते हैं. वो मसालेदार खाने से परहेज़ करते हैं. ज़रूरत पड़ने पर साधारण खिचड़ी खाते हैं, वो भी अकेले. ख़ास मौक़ों पर वो व्रत रखते हैं, ख़ासतौर से नवरात्र के मौक़े पर जब वो दिन में सिर्फ़ नीबू पानी या सिर्फ़ एक प्याला चाय पीते हैं.”
नंदी आगे लिखते हैं, “मोदी अकेले रहते हैं और अपनी माँ और चार भाइयों और बहन से मामूली संपर्क रखते हैं. हालाँकि एक-आध अवसरों पर उन्हें अपनी माँ से आशीर्वाद लेते और अपने सरकारी निवास में उन्हें 'व्हील चेयर' पर घुमाते देखा गया है. वो अपने जीवन के इस पक्ष को सच्चरित्रता के तौर पर दिखाते हैं.”
एक बार हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर में एक चुनाव सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, “मेरे कोई पारिवारिक संबंध नहीं हैं. मैं अकेला हूँ. मैं किस के लिए बेईमानी करूंगा? मेरा दिमाग़ और शरीर पूरी तरह से राष्ट्र को समर्पित है.”
छोड़िए यूट्यूब पोस्ट 5 BBC News Hindi
चेतावनी: तीसरे पक्ष की सामग्री में विज्ञापन हो सकते हैं.
पोस्ट यूट्यूब समाप्त 5 BBC News Hindi
इमेज कॉपीराइट BBC News HindiBBC News Hindi
हसीना वाजेद की तारीफ़ पर जगहंसाई
मोदी वैसे तो सार्वजनिक रूप से हर तरफ़ स्त्री शक्ति की तारीफ़ करते नज़र आते हैं, लेकिन एक बार उन्होंने बांगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद की तारीफ़ करते हुए कहा था कि महिला होने के बावजूद उन्होंने बहुत हिम्मत से आतंकवाद का मुक़ाबला किया है.
सोशल मीडियो में 'हैशटैग' 'डिसपाइट बींग वुमेन' 'ट्रेंड' करने लगा, लेकिन मोदी पर इसका कोई असर नहीं हुआ.
'वॉशिंगटन पोस्ट' ने ज़रूर एक सुर्ख़ी लगाई, 'इंडियाज़ मोदी डेलिवर्ड द वर्ल्ड्स वर्स्ट कॉम्प्लीमेंट.'
छोड़िए यूट्यूब पोस्ट 6 BBC News Hindi
चेतावनी: तीसरे पक्ष की सामग्री में विज्ञापन हो सकते हैं.
पोस्ट यूट्यूब समाप्त 6 BBC News Hindi
इमेज कॉपीराइट BBC News HindiBBC News Hindiनौकरियाँ पैदा नहीं कर पाए मोदी
नरेंद्र मोदी ने 2014 का चुनाव दो मुद्दों पर जीता था.
उनकी प्रतिद्वंदी कांग्रेस पार्टी की विश्वसनीयता तार-तार हो गई थी और उन्होंने देश के युवाओं के सामने एक बहुत बड़ा वादा किया था, “एक साल में 1 करोड़ नौकरियाँ देने का, या दूसरे शब्दों में कहा जाए हर महीने 840000 नौकरियाँ पैदा करने का.”
मोदी के सबसे बड़े समर्थक भी मानेंगे कि वो उस वादे के दूर दूर तक भी नहीं पहुंच पाए हैं.
एक सौ 30 करोड़ की आबादी वाले देश में जहाँ शिक्षा का स्तर लगातार बढ़ रहा है, हर महीने कम से कम 5 लाख नई नौकरियों की दरकार है. इस लक्ष्य तक न पहुंच पाना मोदी सरकार की सबसे बड़ी असफलता कही जा सकती है.
हालाँकि हाल की तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर 6.6 फ़ीसदी रही है, जो कई विकसित देशों की विकास दर से अभी भी अधिक है, लेकिन तब भी ये पिछले पाँच वर्षों की सबसे कम विकास दर है.
सामग्री उपलब्ध नहीं है
बालाकोट ने दी मोदी को संजीवनी
सिर्फ़ यही नहीं देश का किसान भी मोदी सरकार से खुश नहीं है.
बहुत अधिक दिन नहीं हुए जब हज़ारों किसानों ने अपना विरोध जताने के लिए देश की राजधानी की तरफ़ 'मार्च' किया था.
पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनाव में मोदी के ज़ोरशोर से प्रचार करने के वावजूद भारतीय जनता पार्टी को तीन राज्यों में सत्ता गंवानी पड़ी थी और पहली बार ये संदेह उठने लगा था कि मोदी आगामी लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की नैया पार लगा पाएंगे भी या नहीं.
लेकिन कश्मीर में एक चरमपंथी हमले और पाकिस्तान के साथ एक सप्ताह तक चली तनातनी ने मोदी के समर्थन में आ रहे ढलान को रोक दिया है.
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesमोदी की लड़ाई में वापसी
भारतीय मतदाताओं को इस बात से मतलब नहीं है कि पाकिस्तान में चरमपंथी ठिकानों पर भारतीय वायुसेना के हमले संभवत: अपना लक्ष्य चूक गए हों या भारत का एक युद्धक जहाज़ को पाकिस्तान ने गिरा दिया हो.
उनके लिए महत्वपूर्ण ये है कि उनके देश को निशाना बनाया गया और मोदी ने उसका तुरंत जवाब दिया.
मोदी ने जब जब ये कहा है कि 'अगर वो सात समुंदर के नीचे भी चले जाएंगे, तो मैं उन्हें ढ़ूढ़ निकालूँगा. हिसाब बराबर करना मेरी फ़ितरत रही है,' तालियों से उनका स्वागत हुआ.
'कार्नेगी इनडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस' के निदेशक मिलन वैष्णव कहते हैं, “पाकिस्तान संकट ने नरेंद्र मोदी को एक स्वर्णिम अवसर प्रदान किया है. राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा ही ऐसा है कि इसमें तुरंत निर्णय लेने और नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता पर लोगों का सबसे अधिक ध्यान जाता है. मोदी ये बताने में सफल रहे हैं कि उनमें इन गुणों की कमी नहीं है चाहे ये सही हो या ग़लत.”
छोड़िए यूट्यूब पोस्ट 7 BBC News Hindi
चेतावनी: तीसरे पक्ष की सामग्री में विज्ञापन हो सकते हैं.
पोस्ट यूट्यूब समाप्त 7 BBC News Hindi
इमेज कॉपीराइट BBC News HindiBBC News Hindi
'ब्राउन विश्वविद्यालय' में 'सेंटर फ़ार 'कंटेंपोरेरी साउथ एशिया' के निदेशक आशुतोष वार्ष्णेय का भी मानना है, “ऐसा लगता है कि मोदी दोबारा लड़ाई में वापस लौट आए हैं. लेकिन ये कहानी फिर बदल भी सकती है, क्योंकि कहीं न कहीं लोगों में मोदी के खिलाफ़ असंतोष दूर नहीं हुआ है और अभी तो चुनाव प्रचार शुरू ही हुआ है. लेकिन ये मान लेना भी नादानी होगी कि मोदी ने अपने तरकश के सारे तीर ख़त्म कर लिए हैं.”
आगामी लोकसभा चुनाव में सिर्फ़ और सिर्फ़ नरेंद्र मोदी ही 'एजेंडा' हैं. देखना ये है कि भारतीय मतदाता उन्हें 'थम्स-अप' करते हैं या नहीं, जिसको करने का ख़ुद उन्हें बहुत शौक रहा है.
अस्वीकरण:
इस लेख में विचार केवल लेखक के व्यक्तिगत विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं और इस मंच के लिए निवेश सलाह का गठन नहीं करते हैं। यह प्लेटफ़ॉर्म लेख जानकारी की सटीकता, पूर्णता और समयबद्धता की गारंटी नहीं देता है, न ही यह लेख जानकारी के उपयोग या निर्भरता के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के लिए उत्तरदायी है।