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एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटReutersस्टेट बैंक ने जेट एयरवेज़ के चेयरमैन नरेश गोयल से कहा है कि वो कंपनी में अपनी भाग
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स्टेट बैंक ने जेट एयरवेज़ के चेयरमैन नरेश गोयल से कहा है कि वो कंपनी में अपनी भागीदारी 17 फ़ीसदी से कम करके 10 फ़ीसदी करें. साथ ही बैंक ने कंपनी के तीन और निदेशकों को बोर्ड से इस्तीफ़ा देने के लिए कहा है.
निजी विमानन कंपनी जेट एयरवेज़ की आर्थिक स्थिति बेहद ख़राब है और उसे इस स्थिति से उबारने के लिए बड़ा निवेश चाहिए.
इसी सप्ताह जेट एयरवेज़ के 250 से अधिक कर्मचारियों के नौकरी की तलाश में स्पाइसजेट जाने की ख़बर सामने आई.
अंग्रेज़ी वेबसाइट मनीकंट्रोल में प्रकाशित ख़बर के अनुसार 20 मार्च को आयोजित स्पाइसजेट के वॉक-इन-इंटरव्यू में जेट एयरवेज़ के 260 पायलट पहुंचे थे, इनमें 150 कैप्टन शमिल थे.
छोड़िए ट्विटर पोस्ट @flyspicejet
Give wings to your imagination and an exciting career in aviation. Calling all pilots to be a part of India‘s Reddest Hottest airline. Walk in to The Lalit, Mumbai, Sahar Airport Road on 20th March, 2019 and get the opportunity to pilot one of India’s Largest fleets. #flySpiceJet pic.twitter.com/hxdu0XOLxN
— SpiceJet (@flyspicejet) 15 मार्च 2019
पोस्ट ट्विटर समाप्त @flyspicejet
जेट एयरवेज़ की हालत को लेकर सरकार की भी चिंता बढ़ गई है. इसी सप्ताह मंगलवार को नागर विमानन मंत्री सुरेश प्रभु ने कंपनी की खस्ता हालत पर चर्चा करने, यात्रियों के हितों की रक्षा करने के लिए एक आपातकालीन बैठक बुलाई थी.
जेट एयरवेज़ ने पिछले महीने 14 फ़रवरी को ऐलान किया है कि वो चाहती है कि जेट को पैसा देने वाला बैंक एसबीआई एयरलाइन्स का संचालन अपने हाथों में ले ले.
इसके बाद सरकार ने सरकारी स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया से कहा है कि वो आर्थिक संकट से जूझ रही जेट एयरवेज़ को बचाने के लिए कुछ योजना लेकर सामने आए.
बीबीसी संवाददाता समीर हाशमी कहते हैं, “भारत में ऐसा कभी हुआ नहीं है कि भारत सरकार ने किसी निजी कंपनी को बचाने के लिए सरकारी बैंक से कहा हो. और इस लिहाज़ से ये एक अनोखी परिस्थिति है.”
ऐसे में अब ये सवाल उठता है कि भारत सरकार ऐसा क्यों कर रही है?
समीर हाशमी बताते हैं, “अगर जेट एयरवेज़ इस वक़्त बंद हो जाती है तो 23 हज़ार नौकरियां ख़तरे में पड़ जाएंगी क्योंकि ये भारत की सबसे पुरानी निजी एयरलाइन्स में से एक है. इस वक़्त चुनाव होने वाले हैं और मोदी सरकार पर बेरोज़गारी को लेकर पहले ही दवाब बना हुआ है, अर्थव्यवस्था में लगातार विकास हो रहा है लेकिन सरकार नौकरियां पैदा नहीं कर पाई है.”
ग़ौर करने वाली बात ये भी है कि विपक्ष पहले ही बेरोज़गारी के मुद्दे पर सरकार को घेरे हुए है और चुनाव से पहले सरकार आग में और घी डालने का काम नहीं करना चाहेगी.
इमेज कॉपीरइटReutersImage caption जेट एयरवेज़ के संस्थापक और चेयरमैन नरेश गोयल
लेकिन सरकार के फ़ैसले से जुड़ा एक सवाल ये भी है कि क्या लोगों का पैसा किसी खस्ताहाल कंपनी में डालना सही होगा, ख़ास कर तब जब सामने किंगफ़िशर एयरलाइन्स के डूबने और महाराजा कहे जाने वाले (एयर इंडिया) के 50 हज़ार करोड़ रुपए के क़र्ज़ में डूबने के मामले सामने खड़े हैं.
सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक जीतेंद्र भार्गव कहते हैं कि सरकार के लिए ये ग़लत क़दम होगा.
वो कहते हैं, “अगर मान भी लिया जाए कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया जो कि बैंकों को लीड कर रहा है, वो पहले से कंपनी पर बकाया आठ हज़ार करोड़ के क़र्जे़ को दरकिनार करते हुए उसमें निवेश करता है तो सवाल ये उठेगा कि इस वक़्त आपने कंपनी को उबार लिया लेकिन छह महीने बाद जब कंपनी को और निवेश की ज़रूरत होगी तो क्या होगा.”
“क्या भारतीय बैंक निरंतर करदाताओं का पैसा लगा सकते हैं?”
समीर हाशमी बताते हैं बैंक के लिए ये एक बेहद गंभीर प्रश्न है और इस मुद्दे पर वो खुलकर निवेश के लिए सामने नहीं आ रहे हैं.
वो कहते हैं, “योजना का नेतृत्व कर रहे एसबीआई के प्रमुख रजनीश कुमार ने कहीं नहीं कहा है कि वो इस एयरलाइन्स में निवेश करेंगे. वो चाहते हैं कि उनका पैसा भी बच जाए और कोई निवेशक वो ले आएं जो इसमें निवेश करे. और इस वक़्त कंपनी की जो हालत है उसमें ऐसा होना बेहद मुश्किल है.”
एसबीआई ने एतिहाद एयरवेज़ से बात की है जिसके पास जेट एयरवेज़ का 24 फ़ीसदी शेयर हैं.
बैंक चाहता है कि अबुधाबी स्थित ये कंपनी जेट एयरवेज़ में और पैसा लगाए लेकिन कंपनी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया है और कहा है कि कंपनी अब अपने सभी शेयर बेच कर जेट एयरवेज़ से बाहर निकलना चाहती है.
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इमेज कॉपीरइटAFP/Getty Images
जब महाराजा था, तब जेट एयरवेज़की शान थी
1990 का दशक था और देश उदारीकरण के दौर से गुज़र रहा था. इसी दशक के आख़िर में घरेलू उड़ान के मैदान में कई नई कंपनियों ने पैर रखे थे.
इनमें से जेट एयरवेज़ इंडिया लिमिटेड भी एक कंपनी थी जो एक अप्रैल 1992 में बनी थी.
1993 में चार बोइंग 737 विमानों के साथ पहली बार उड़ान सेवा शुरू करने वाली ये कंपनी साल 2012 के आते-आते देश की सबसे बड़ी निजी विमानन कंपनी बन गई.
भारतीय बाज़ार में यात्री शेयर की बात करें तो 26.3 फ़ीसदी शेयर जेट एयरवेज़ के नाम था जबकि इसके बाद एयर इंडिया 18.8 फ़ीसदी और उसके बाद इंडिगो 18.7 फ़ीसदी मार्केट शेयर के साथ थी.
इमेज कॉपीरइटwww.civilaviation.gov.inImage caption नागर विमानन मंत्रालय के भारतीय विमानन उद्योग का अध्ययन कर सलाह देने के लिए बनी समिती की जून 2012 की रिपोर्ट
लेकिन आने वाले वक़्त में बात बिगड़ी और साल 2018 के आख़िर तक ये कंपनी भयंकर आर्थिक संकट की चपेट में आ गई.
फ़िलहाल कंपनी 110 करोड़ डॉलर के घाटे में चल रही है और उसके पास एयरक्राफ्ट लीज़िंग कंपनियों को देने के लिए पैसे नहीं हैं.
खर्च कम करने के नाम पर कंपनी ने इकोनोमी क्लास में दिया जाने वाला खाना बंद किया, यात्री के सामान की सीमा भी कम कर दी.
बीते एक सप्ताह में कंपनी ने कई घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रद्द की हैं. साथ ही कई कर्मचारियों की नौकरी जाने की चर्चा भी है.
इमेज कॉपीरइटReutersउदारीकरण का असर झेल रही है जेट एयरवेज़?
इसके पीछे के कारणों में सबसे अहम कारण ये है कि उदारीकरण के बाद प्रतिस्पर्धा बढ़ी और कई कंपनियां सस्ती हवाई यात्रा देने के लिए सामने आईं.
इनमें इंडिगो और स्पाइसजेट जेट एयरवेज़ प्रतियोगी थीं जो कम दाम में उड़ान सेवाएं देने लगीं.
बाज़ार में टिकने के लिए कंपनी सस्ती यात्रा देने की कोशिश करती है.
जीतेंद्र भार्गव कहते हैं, “इंडियन कैरियर कंपनियों ने कई विमानों के ऑर्डर दिए हैं. लगभग 800 हवाई जहाज़ अगले 5-6 साल में बाज़ार में आ जाएंगे. उन्हें भरने के लिए कैरियर चाहते हैं कि बाज़ार विकास के रास्ते रहे और इसके लिए ज़रूरी है कि टिकट की क़ीमतें कम हों. सस्ती उड़ान देने वाली कंपनियां तो अपनी लागत वसूल कर पा रही हैं लेकिन फुल सर्विस कैरियर के लिए अपनी लागत भी बचा पाना मुश्किल हो रहा है.”
“इसके साथ-साथ ईंधन की क़ीमतों का महंगा होना और भारतीय मुद्रा का कमज़ोर होना भी जेट एयरवेज़ की इस हालत के पीछे बड़ा कारण है.”
इमेज कॉपीरइटReutersजब कच्चा तेल दे गया गच्चा
2016 में दुनिया में जब कच्चे तेल की क़ीमतें कम होने लगी थीं तो इसका फ़ायदा कंपनी को मिला क्योंकि उसकी लागत कम हुई. साथ ही इस बीच, जेट में एक विदेशी कंपनी ने भी निवेश किया और जेट को अधिक आय हुई.
जहां वित्त वर्ष 2015 में कंपनी ने 2097.41 करोड़ का नुक़सान दिखाया था, 2016 में कंपनी ने 1211.65 करोड़ रुपए का मुनाफ़ा भी दिखाया. लेकिन ये मुनाफ़ा अल्पकालिक था और कंपनी एक बार फिर नुक़सान के कगार पहुंच गई.
इस बार समस्या इतनी गंभीर है कि हो सकता है कंपनी का चेहरा ही बदल सकता है.
जीतेंद्र भार्गव कहते हैं, “अभी सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि नरेश गोयल ना तो निवेश कर पा रहे हैं ना ही कंपनी के बोर्ड से हटना चाहते हैं. किसी बड़े क़दम की आवश्यकता है.”
“ऐसे में बैंक ही तय करेगा कि क्या इनको बोर्ड से निकाला जाए और नए बोर्ड का गठन किया जाएगा. और जैसे सत्यम के साथ हुआ था एक बार कंपनी फिर से बेहतर काम करने लगे तो उसे बेच दिया जाए.”
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