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एब्स्ट्रैक्ट:चौकीदार राजनीतिक ध्रुवीकरण का इस तरह एक मात्र शब्द बन जाएगा इसका अनुमान शायद किसी ने नहीं लगाया होगा
चौकीदार राजनीतिक ध्रुवीकरण का इस तरह एक मात्र शब्द बन जाएगा इसका अनुमान शायद किसी ने नहीं लगाया होगा.
ट्वीट के मैदान-ए-जंग में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने अपने नाम के आगे चौकीदार लगाया तो पहले तो मुझे दूसरे ट्वीटरों की तरह यह एक मज़ाक़ लगा. लेकिन शाम होते होते पीयूष गोयल और उसके बाद राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज समेत पूरी कैबिनेट एक एक कर चौकीदार की क़तार में खड़े हो गए तो लगा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी कम्युनिकेशन थ्योरी से जवाब देने की गंभीर कोशिश में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भिड़ गया है.
यह एक अलग बात है कि रफ़ाल सौदे पर आक्रमकता के साथ 'चौकीदार' की सुरक्षा करने वाली रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण सबसे बाद में ट्वीटर पर आईं. इससे अंदाज़ा भले यह लग सकता था कि यह बीजेपी की तरफ़ से सांगठनिक सोची समझी रणनीति का हिस्सा नहीं है.
बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने फ़ैसले लेने के अपनी स्टाइल में ही कांग्रेस के चौकीदार चोर है के आरोप का जवाब के इर्द गिर्द राजनीतिक ध्रुवीकरण करने की किसी योजना की तरफ़ बढ़ रहे हैं.
नरेन्द्र मोदी ने जब उदार और विनम्र साबित करने के चक्कर में ख़ुद को सेवक और फिर चौकीदार कहा तो उन्होंने यह भी नहीं सोचा था कि राजनीतिक जंग में यह उनके गले की हड्डी भी बन सकता है और उन्हें बचाव में मैं भी चौकीदार की एक लंबी रेखा खींचने की ज़रूरत पड़ सकती है.
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दूसरी तरफ़ कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी को गुजरात के विधानसभा चुनाव तक यह अंदाज़ा नहीं था कि मोदी द्वारा ख़ुद को चौकीदार के जुमले के जवाब में जो पैरोडी रच रहे हैं वह लोकसभा चुनाव तक राजनीतिक ध्रुवीकरण का नारा बन सकता है.
एक शब्द राजनीति में किस तरह अपनी जगह बनाता हैं और वह किस तरह तमाम मुद्दों का आईना बनकर स्थापित होता है, लोक और मुहावरों में बरते जाने वाला चौकीदार जैसा शब्द कम्युनिकेशन के सिद्धांतकारों के लिए एक अध्ययन का विषय बन गया है.
राहुल गांधी के संचार सलाहकारों ने शायद इसे ठीक तरीक़े से भांप लिया था कि नरेन्द्र मोदी जब ख़ुद को चौकीदार बताते हैं तो वे उसके साथ छुपे अर्थों में चोर की तरफ़ भी इशारा करते हैं. लिहाज़ा चौकीदार की पहरेदारी की क्षमता पर ही सवाल खड़े करने का सिलसिला शुरू होना चाहिए, वरना लोकसभा चुनाव तक सिर दर्दी बढ़ सकती है.
राहुल गांधी ने नरेन्द्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में विधानसभा चुनाव के दौरान चौकीदार पर हमले शुरू कर दिए थे. लेकिन तब प्रधानमंत्री की केवल चौकीदारी की क्षमता पर वे सवाल खड़े कर रहे थे.
राहुल गांधी ने पहले नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की क्षमताओं पर सवाल खड़े करने के लिए यह कहना शुरू किया कि हर चीज़ में लीक है, चौकीदार वीक है. यह दौर चुनाव की तरीख़ों के लीक, सीबीएसई के पेपर के लीक होने के साथ डेटा लीक होने का था.
ऐसे हर माहौल में राहुल गांधी ने एक कवि की तरह चौकीदार की क्षमता को चुनौती देने की कोशिश की.
इस चौकीदार को छुट्टी चाहिए
राहुल ने कहा 'देश का चौकीदार चोर', तो जेटली ने क्या दिया जवाब
इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption जय शाह
अमित शाह के बेटे जय शाह की कंपनी की तेज़ी से बढ़ी कमाई पर उठने वाले सवालों के मौक़े की नज़ाकत को समझकर चौकीदार के जुमले में यह जोड़ा कि चौकीदार भागीदार बन गए हैं.
चौकीदार के कमज़ोर होने व भागीदार होने के आरोपों का यह सिलसिला बढ़ते बढ़ते पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के माहौल तक पहुंचा और रफ़ाल सौदे की परत दर परत सामने आने लगी तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने नवंबर 2108 में पूरे दमख़म के साथ यह ऐलान करना शुरू कर दिया कि दिल्ली में चौकीदार ही चोर है.
भारतीय राजनीति में अपने अनुकूल शब्दों को कविता की पंक्तियों की तरह गढ़ने का सिलसिला नरेन्द्र मोदी की सरकार की एक बड़ी देन मानी जा सकती है.
कविता जैसी पंक्तियों और इशारेबाज़ी दो तरफ़ा काम करती हैं. एक तो क़ानून की धाराओं से सुरक्षा प्रदान करती हैं तो दूसरी तरफ़ लोगों की भावनाओं को आसानी से उनके इर्द गिर्द खींचा जा सकता है.
'बेरोज़गार हूं, इसलिए चौकीदार हूं'
'चौकीदार चोर नहीं, चौकीदार प्योर है'
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राहुल गांधी का जब यह आरोप रफ़ाल सौदे के ब्यौरों के साथ मीडिया में सुर्ख़ियां पाने लगा कि चौकीदार ही चोर है तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को लगने लगा कि चौकीदार की जो रेखा उन्होंने खींची है और उस पर विपक्ष जिस तरह की लिखावट कर रहा है, उसे मिटाई तो नहीं जा सकती है लेकिन चाणक्य की नीति के तहत उसके समानांतर एक लंबी रेखा खींची जा सकती है.
गुजरात के बाद 2018 के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के प्रचार शैली पर ग़ौर करें तो यह आसानी से जाना जा सकता है कि एक तरफ़ राहुल गांधी का चौकीदार और चौकादारी पर आक्रमकता जितनी बढ़ती गई, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी उसका जवाब देने में उलझती गई.
लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र सात फ़रवरी 2019 को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चौकीदार चोर है के आरोप का जवाब प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में इस तरह दिया कि उल्टा चोर चौकीदार को डांट रहा है.
प्रधानमंत्री ने अपनी उपलब्धियों का ब्यौरा पेश किया और बताया कि वे किसकी चौकीदारी कर रहे हैं. संसद में पत्रकार दीर्धा में बैठे सदस्यों को यह संकेत मिला कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चौकीदार के जुमले में आक्रामकता के बजाय बचाव करने की मुद्रा हावी हो रही है.
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ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के साथ चौकीदार के नाम के साथ आने से यह सवाल आने लगे कि कहीं अपने बुने जाल में ही तो ये नहीं फंस गए?
बिहार विधानसभा के चुनाव के बाद इन पांच सालों में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने अपनी रेखा खींचने के बजाय जब लंबी रेखा तैयार करने की कोशिश की है तो उसे कामयाबी की जगह मुसीबतें झेलनी पड़ी है.
बीजेपी जब विभिन्न स्तरों पर 'ध्रुवीकरण' की कोशिशों में कामयाब होते नहीं दिखी तो लगता है कि उसे लंबी रेखा खींचने के प्रयोग को दोहराने के अलावा कोई विकल्प नज़र नहीं दिखा. मैं भी चौकीदार और चौकीदार चोर है के बीच लोकसभा चुनाव का जंग तैयार होता दिख रहा है.
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