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एब्स्ट्रैक्ट:मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड के सामने आने के बाद सरकार और सिस्टम बिहार के शेल्टर होम्स को लेकर कितन
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड के सामने आने के बाद सरकार और सिस्टम बिहार के शेल्टर होम्स को लेकर कितने गंभीर हैं?
यह सवाल इसलिए क्योंकि मई 2018 में समाज कल्याण विभाग के निदेशक को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ यानी टिस द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में बिहार के सभी 110 शेल्टर होम्स में से 104 की स्थिति ख़राब पाई गई थी. उनमें से 17 की हालत चिंताजनक थी. मुज़फ़्फ़रपुर का बालिका गृह उन्हीं 17 में से एक था.
जहां तक TISS की रिपोर्ट पर सरकार की गंभीरता का सवाल है तो वह मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड के मामले में सरकार की भूमिका से ही स्पष्ट हो जाता है. और सरकार की भूमिका तब सवालों के घेरे में आ जाती है जब हम यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि आख़िर मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड हुआ क्यों?
क्योंकि, जिस मामले को TISS की टीम ने 9 नवंबर 2017 को बालिका गृह में आधा घंटा बिताकर ही समझ लिया था और उसका ज़िक्र अपनी रिपोर्ट में किया था, सरकार और सिस्टम मिलकर सालों तक उसे समझ नहीं पाए. जबकि समाज कल्याण विभाग, बाल संरक्षण आयोग, महिला आयोग के अधिकारी नियमित रूप से जांच के लिए बालिका गृह जाते रहे थे.
इससे एक बात तो साफ़ है मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड कभी नहीं होता अगर सरकार और सिस्टम के लोग जो नियमित रूप से जांच अथवा निरीक्षण के लिए बालिका गृह जाते रहे थे, अपना काम बख़ूबी ईमानदारी के साथ करते.
बालिका गृह के रिमार्क्स रजिस्टर में वहां सभी आने-जाने वालों के नाम दर्ज थे और उनके रिमार्क्स भी. बालिका गृह की ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान कर्मियों ने बताया था कि जितने भी मंत्री, नेता, अधिकारी बालिकागृह आए सभी के रिमार्क्स उस रजिस्टर में दर्ज हैं. मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस के मुताबिक़ अब उस रजिस्टर को सीबीआई ने ज़ब्त कर लिया है.
अगर सरकार गंभीर होती तो ज़रूर उन लोगों से सवाल किया जाता कि आख़िर उनके निरीक्षण में कभी ऐसी बात सामने क्यों नहीं आई जो TISS के लोगों ने आधे घंटे में उजागर कर दिया था. सीबीआई की चार्जशीट में उस रिमार्क्स रजिस्टर को आधार बनाया गया है कि नहीं, मालूम नहीं. लेकिन अगर आधार बनाया जाएगा तो मामला उन सभी के ख़िलाफ़ बनेगा जो बालिका गृह आकर सब देख जाने के बाद भी अच्छे रिमार्क्स लगाकर गए थे. इन लोगों में बिहार सरकार के कई मंत्री, नेता और अफ़सर शामिल हैं.
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सरकार की गंभीरता पर सवाल
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह मामले की आगे की जांच भी सरकार की गंभीरता पर सवाल खड़े करती है. हाल के दिनों में इसका सबसे बड़ा उदाहरण देखने को मिलता है मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह की पीड़ित लड़कियों के रखरखाव और देखभाल में प्रबंधन की चूक का.
इमेज कॉपीरइटNeeraj Priyadarshi
मुज़फ़्फ़रपुर की पीड़ित लड़कियों को जिन्हें मधुबनी और मोकामा के शेल्टर होम्स में भेजा गया था, वहां से कई दफे़ लड़कियां लापता हुईं. 12 जुलाई को मधुबनी से लापता एक लड़की जो मामले की गवाह भी थी, उसका आज तक कोई पता नहीं लग सका है.
हाल ही में मोकामा के शेल्टर होम से भी मुज़फ़्फ़रपुर की चार लड़कियाँ लापता हुईं थीं, जो मामले की गवाह और पीड़िता दोनो थीं. पुलिस ने दावा किया है कि उसने सभी लड़कियों को बरामद कर लिया है. लेकिन इसपर अभी सवाल है! क्योंकि मधुबनी से लापता लड़की का जो पुलिस महीनों बाद तक कोई पता नहीं लगा सकी है, उसने दो दिनों के अदंर मोकामा से लापता सभी सातों लड़कियों को सकुशल बरामद कर लिया.
मुज़फ़्फ़रपुर के अलावा भी पटना, मोतिहारी और सीतामढ़ी के दूसरे शेल्टर होम्स से लड़कियां, महिलाएं और बच्चे रहस्यमयी परिस्थितियों में लापता हुए हैं. इनका ज़िक्र न सिर्फ़ TISS की रिपोर्ट में था, बल्कि मुज़फ़्फ़रपुर कांड के उजागर होने के बाद इन शेल्टर होम्स की कुव्यवस्था और कुप्रबंधन की ख़बरें भी सुर्ख़ियों में शामिल हुई थी.
दरअसल, आज तक यही सवाल कभी सुर्ख़ी नहीं बन पाया है कि बिहार के शेल्टर होम्स में ऐसे कांड हो क्यों रहे हैं?
यदि हम मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड और पटना शेल्टर होम के मनीष दयाल कांड को ग़ौर से देखें तो पाएंगे कि दोनों शेल्टर होमों को नियम और शर्तें नहीं पालन करने के बावजूद भी चलाने का ठेका दिया गया. जिन लोगों और संस्थाओं को शेल्टर होम चलाने को मिले उन्हें और भी तमाम तरह के (एड्स कंट्रोल, महिला पुनर्वास, वगैरह) ठेके सरकार द्वारा दिए गए.
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह मामले में हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले संतोष कुमार कहते हैं कि, यह एक सिंडिकेट की तरह लगता है. इसीलिए इसपर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. ब्रजेश को तीन अख़बार चलाने का लाइसेंस जिस आईपीआरडी विभाग ने दिया था, उसका प्रभार जब से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं, तभी से उन्हीं के पास है. मनीषा दयाल के एनजीओ को विभाग ने सबसे ज़रूरी नियम को ताक पर रखकर केवल दो सालों में शेल्टर होम चलाने का टेंडर दे दिया. लेकिन इन ग़लतियों के लिए किसी को ज़िम्मेदार तक नहीं ठहराया गया. बल्कि और संरक्षण दिया गया."
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संतोष कहते हैं, मुज़फ़्फ़रपुर कांड के बाद भी यह सिंडिकेट प्रोटेक्शन सिस्टम नहीं बदला है. अभी भी उन एनजीओ को शेल्टर होम्स को ठेके पर चलाने को दिया जा रहा, जिनके शेल्टर होम पर TISS की रिपोर्ट में सवाल उठाए गए थे. जबकि मुज़फ़्फ़रपुर कांड के बाद नीतीश कुमार ने ये बयान दिया था कि सरकार सभी शेल्टर होम्स को अपने नियंत्रण में लेगी."
संरक्षण
किन लोगों और एनजीओ को TISS की रिपोर्ट में सवाल उठाए जाने के बावजूद भी संरक्षण दिया जा रहा है? संतोष कुमार इसके जवाब में पहला नाम लेते हैं प्रमोद कुमार शर्मा का.
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प्रमोद कुमार शर्मा वो शख़्स हैं जिनके एनजीओ सेंटर डायरेक्ट से संचालित हो रहे सीतामढ़ी के बालगृह में भी गडबड़ियां पाई गई थीं. सीतामढ़ी का बालगृह जो कि एक मार्च 2017 से शुरू हुआ था, वहां 40 दिन बाद ही ज़िला बाल संरक्षण इकाई के एक वरीय अधिकारी ने अनियमितताएं पाते हुए बालगृह को बंद कराने के लिए विभाग को पत्र लिखा.
हमनें अपनी पड़ताल में पाया कि सीतामढ़ी ज़िला बाल संरक्षण इकाई के तत्कालीन एडिशनल डायरेक्टर गोपाल शरण ने बाल संरक्षण निदेशालय के निदेशक सुनील कुमार को बालगृह की जांच रिपोर्ट पिछले साल 13 अप्रैल 2017 को सौंपी थी. जिसमें बालगृह में रहने वाले बच्चों की फ़ाइलें सही से नहीं मेंटेन करने और बालगृह में कर्मियों की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने संबंधी आरोप लगाए गए थे.
बाद में बाल संरक्षण निदेशालय के तत्कालीन निदेशक सुनील कुमार ने पिछले साल चार अक्तूबर को सीतामढ़ी के ज़िला पदाधिकारी को पत्र लिखकर गोपाल शरण की निरीक्षण रिपोर्ट का हवाला देते हुए नए सीरे से जांच कराने का आग्रह किया था. उक्त बाल गृह से एक बच्चे की असंदिग्ध परिस्थितियों में मौत जबकि एक और बच्चे के लापता होने की एफ़आईआर रिपोर्ट दर्ज है.
संतोष कुमार कहते हैं, आप गंभीरता की बात करते हैं! प्रमोद कुमार शर्मा को शेल्टर होम चलाने का ज़िम्मा बिना रेंट एग्रीमेंट के दिया गया था. और ये सब ब्रजेश ठाकुर के चलते हुआ था, क्योंकि विभाग में उनकी अच्छी पैठ थी. ब्रजेश ठाकुर के साथ प्रमोद शर्मा के संबंध पुराने हैं. उन्हें राजनीति में लाने वाले प्रमोद कुमार शर्मा ही थे. क्योंकि ब्रजेश ठाकुर ने कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र से जब पहली बार 1995 में चुनाव लड़ा था तब शर्मा बिहार पीपुल्स पार्टी की संसदीय समिति के सदस्य थे."
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प्रमोद कुमार शर्मा का नाम एनजीओ सेंटर डायरेक्ट के संस्थापक और सेक्रेटरी के रूप में दर्ज है. फ़िलवक़्त वे जदयू में औपचारिक रूप से शामिल हो गए हैं तथा लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र पार्टी ने उन्हें मुज़फ़्फ़रपुर का प्रभारी बनाया है. शर्मा द्वारा संचालित सेंटर डायरेक्ट एनजीओ के शेल्टर होम न सिर्फ़ सीतामढ़ी में बल्कि बिहार के कुल छह ज़िलों में चल रहे हैं.
सीतामढ़ी बालगृह के आरोपों के आधार पर शेल्टर होम की तत्कालीन सुप्रीटेंडेंट करुणा झा ने पटना हाई कोर्ट में रिट पिटीशन भी दायर कर रखी है. लेकिन ताज्जुब की बात ये है कि इतने गंभीर आरोप लगने के बावजूद भी और निदेशालय द्वारा डीएम को पत्र लिखकर कार्रवाई करने के लिए कहने के क़रीब एक साल बाद भी उक्त बाल-गृह चल रहा है.
सीतामढ़ी के बाल गृह पर लगे आरोपों को ख़ारिज करते हुए प्रमोद कुमार शर्मा बीबीसी को कहते हैं कि, जिन दोनों बच्चों (एक की मौत, दूसरा लापता) को आधार बनाकर यह सब कहा जा रहा है, उनके मामले में हमने सारी प्रक्रियाओं का पालन किया. जिस बच्चे की मौत हुई है, उसके मेडिकल रिपोर्ट में लिखा हुआ कि थैलेसेमिया नामक बीमारी मरने का कारण थी. दूसरे बच्चे की गुमशुदगी की रिपोर्ट भी थाने में दर्ज है."
शर्मा का कहना है कि कुछ लोग अपने निहित स्वार्थों के कारण उनके ऊपर कीचड़ उछाल रहे हैं. उनके ख़िलाफ़ लगे सारे आरोप निराधार हैं. मीडिया के लोग वास्तविक स्थितियों को समझते नहीं है, कुछ का कुछ लिख देते हैं. मैने तो उस शेल्टर होम को दिसंबर में ही सरेंडर कर दिया है."
प्रमोद कुमार शर्मा फ़िलहाल चुनाव की तैयारियों में लगे हैं. पारो जो कि उनका अपना विधानसभा क्षेत्र भी है, से विधायिकी का टिकट पाने की उम्मीद में लगे हैं. कहते हैं, राजनीति में आने का मतलब जनता की सेवा करना था, चुनाव लड़ना है कि नहीं है ये तो पार्टी तय करेगी."
TISS की रिपोर्ट में मोतिहारी के बाल गृह में भी बच्चों के यौन शोषण और उनके ख़िलाफ़ हिंसा का ज़िक्र हुआ है, वह शेल्टर होम एनजीओ निर्देश चलाता है. जिसके जेनेरल सेक्रेटरी हैं सत्येंद्र सिंह. सत्येन्द्र सिंह और प्रमोद कुमार शर्मा दोनों रिश्तेदार हैं.
मोतिहारी स्थित निर्देश के इस ब्वायज़ चिल्ड्रेन होम में बच्चों के साथ मारपीट और उनका यौन शोषण किया जाता है. TISS की रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र है. साथ ही यह भी लिखा हुआ है कि बच्चों की हालत को देखते हुए विभाग को तत्काल एक्शन लेना चाहिए.
Image caption मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह का एक कमरा
प्रमोद कुमार शर्मा और सत्येन्द्र सिंह के एनजीओ क्रमश: सेंटर डायरेक्ट और निर्देश को ना सिर्फ़ समाजिक कल्याण विभाग से बल्कि दूसरे विदेशी संस्थानों से भी भारी भरकम राशि मिलती है. फ्रीडम फंड नाम की एक संस्था की वेबसाइट पर इन दोनों संस्थाओं को मिलने वाला जो फंड दिखाया गया है वो क्रमश: 23,000 अमरीकी डॉलर और 3,21,014 अमरीकी डॉलर है. इसके अलावा एड्स कंट्रोल सोसाइटी से भी ब्रजेश ठाकुर, प्रमोद कुमार शर्मा और सत्येंद्र सिंह के एनजीओ को करोड़ो रुपए मिलते हैं.
कई गड़बड़ियां
यदि हम शेल्टर होम चलाने वाले कुछ एनजीओ अथवा संस्थाओं और उनके सचिवों के नाम और विभाग को उनके द्वारा दी गई जानकारियों का मिलान करें तो पाएंगे कि कहीं नाम में अक्षर का फेरबदल किया गया है तो कहीं 10 अंको के मोबाइल नंबर को 9 अंक में लिख दिया गया है.
ख़ुद शर्मा का नाम उनकी पटना वाले संस्था के नाम के सामने एकदम सही प्रमोद कुमार शर्मा लिखा हुआ है. जबकि सीतामढ़ी वाली संस्था के नाम के सामने “पी के शरम” लिखा गया है. इसी तरह मुज़फ़्फ़रपुर मामले की एक अभियुक्त मधु कुमारी के संगठन वामा शक्ति वाहिनी के नाम के आगे एक जगह सही में “मधु कुमारी” लिखा हुआ है जबकि दूसरी जगह “मधु कुमार” लिख दिया गया है. इसी तरह एक और संस्था ग्राम प्रौद्योगिक विकास संस्थान, बेगूसराय के सचिव के नाम के आगे “रिपुदम” लिखा हुआ है, जबकि इसी संस्था के किशनगंज वाले संगठन में सचिव का नाम “रिपुधमन” लिख दिया गया है.
सवाल ये नहीं है कि किसने कितने शेल्टर होम खोल लिए, किसके शेल्टर होम पर सवाल उठा और किनके पास कहां से कितना पैसा आता है? सवाल ये है कि इतने आरोपों के बावजूद भी विभाग इन्हें शेल्टर होम चलाने का लाइसेंस (टेंडर) लगातार कैसे देता रहा?
Image caption मुख्य अभियुक्त ब्रजेश ठाकुर
मुज़फ़्फ़रपुर मामले में ब्रजेश ठाकुर के ख़िलाफ़ पीआईएल दायर कर केस लड़ रहे संतोष कुमार कहते हैं कि, शेल्टर होम का सिंडिकेट एक त्रिकोणीय समीकरण से चलता है. मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड का ख़ुलासा इस समीकरण के कोलैप्स होने के कारण हुआ है. जांच में अब तक जो सामने निकल कर आया है वह यही कहता है."
आख़िर में सवाल रह जाता है कि मुज़फ्फ़रपुर कांड होने के बाद सरकार और विभाग ने क्या एक्शन लिया?
सुप्रीम कोर्ट की बहुत फटकार के बाद बिहार सरकार ने जो हलफ़नामा सौंपा था, उसमें वही सबकुछ लिखा गया है जो अब तक सीबीआई जांच के दौरान घटित हुआ और ख़बरों में आ चुका है.
लेकिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जो नहीं बताया है, वह यह है कि, बिहार सरकार की तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा मुज़फ़्फ़रपुर मामले में संलिप्तता के आरोप में इस्तीफ़ा दे चुकी हैं. विभाग की मंत्री होने के नाते ज़िम्मेदारी उनकी ही बनती है. मगर सीबीआई की चार्जशीट में उनका नाम तक नहीं है.
इमेज कॉपीरइटFACEBOOK/CHANDRASHEKHAR VERMAImage caption मंजू वर्मा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सभी शेल्टर होमों को सरकार के नियंत्रण में लेने की घोषणा की थी, मगर अब तक उसकी अधिसूचना नहीं जारी हो सकी है. सारे शेल्टर होम अभी भी ठेके पर ही चलाये जा रहे हैं.
केस के पहले वादी और ज़िला बाल संरक्षण पदाधिकारी रवि रौशन जेल में हैं. जबकि दूसरे वादी और बाल संरक्षण निदेशालय के अपर निदेशक दिवेश चंद्र शर्मा को विभाग निलंबित कर चुका है.
हमने इस मसले पर समाज कल्याण विभाग के मौजूदा मंत्री कृष्ण नंदन प्रसाद वर्मा से भी बात करने की कोशिश की. लेकिन, ख़राब स्वास्थ्य के कारण वे पटना के एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं. इसलिए बात नहीं हो पायी. मंत्रीजी ने आश्वासन दिया है कि वे जल्द ही सारे सवालों के जवाब देंगे.
अस्वीकरण:
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