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एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesजब नरेंद्र मोदी साल 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने देश के नाग
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जब नरेंद्र मोदी साल 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने देश के नागरिकों से एक वायदा किया था. उन्होंने कहा था कि वो प्रदूषित गंगा नदी को साफ करने का काम करेंगे.
साल 2015 में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने इसके लिए पांच साल का कार्यक्रम की शुरुआत की और 300 करोड़ रुपये भी रखे. जब नरेंद्र मोदी साल प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने देश के नागरिकों से एक वायदा किया था. उन्होंने कहा था कि वो प्रदूषित गंगा नदी को साफ करने का काम करेंगे.
बीते साल दिसंबर में मोदी ने अपने चुनाव क्षेत्र वाराणसी में एक रैली में कहा कि गंगा में प्रदूषण कम करने में सरकार को सफलता मिल रही है.
लेकिन विपक्ष का ये दावा है कि सरकार इस मामले में अपना वादा पूरा नहीं कर पा रही है.
सच भी यही है कि गंगा की सफाई का काम बेहद धीमी गति से चल रहा है.
हालांकि इस समस्या पर पहले से काफी अधिक धन खर्च किया जा रहा है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं लगता 1,568 मील लंबी इस नदी को साल 2020 तक पूरी तरह साफ़ किया जा सकेगा
इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption कानपुर में शहर का कचरा समेटता ये नाला सीधे गंगा में जा कर मिलता है आख़िर गंगा मैली क्यों है?
भारत में हिंदु धर्म माने वाले गंगा को पवित्र नदी मानते हैं. ये नदी हिमालय में गंगोत्री से निकल कर वाराणसी से होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है.
इसके तट पर हज़ारों शहर और गांव बसे हैं. आज के दौर में गंगा नदी के सामने जो मुश्किलें हैं उनमें मुख्य हैं -
कारखानों से निकलने वाला ज़हरीला प्रदूषित पानी
घर और कारखानों से निकलने वाला कचरा
प्लास्टिक जो बड़ी मात्रा में नदी में फेंका जा रहा है
खेती के लिए भूतल जल का दोहन
पानी के बहाव को रोकने वाले बांध जिनका पानी सिंचाई और दूसरे काम के लिए किया जा रहा है.
पिछली सरकारों ने गंगा को साफ करने के कई प्रयास किए हैं लेकिन उसका परिणाम कभी सही रूप में दिखा नहीं.
वर्तमान सरकार ने 2015 से हर साल गंगा की सफाई पर किए परियोजनाओं पर खर्च बढ़ाया है.
लेकिन जिस तेज़ी से काम होना चाहिए था, वो नहीं हुआ और इसका जिक्र सरकार की 2017 की ऑडिट रिपोर्ट में भी किया गया है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो सालों में उपलब्ध कराए गए बजट का एक चौथाई से भी कम खर्च किया गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक, परियोजनाओं के अनुमोदन में देरी, योजनाओं के लिए उपलब्ध कराए गए बजट का कम खर्च किया जाना और मानव संसाधनों की कमी के चलते तय लक्ष्यों को पूरा करने में देरी हो रही है."
पिछले साल संसद में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक 236 सफाई परियोजनाओं में से महज 63 को ही पूरा किया गया था.
इमेज कॉपीरइटROHIT GHOSH/BBC
सरकार का अब कहना है कि मार्च 2019 तक गंगा 70 से 80 फीसदी स्वच्छ हो जाएगी और अगले साल तक 100 फीसदी का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा.
कुछ हिस्सों में सुधार के भी संकेत मिले हैं. छह अति प्रदूषित क्षेत्रों के पानी के नमूनों की जांच करने वाले विशेषज्ञों की एक हालिया रिपोर्ट में पाया गया है कि पानी की गुणवत्ता ऑक्सीजन के मामले में सुधर रही है, जो जलीय जीवन को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है.
तो फिर अभी समस्या क्या है?
अभी भी कई मुद्दे हैं- सबसे महत्वपूर्ण है आबादी वाले क्षेत्र के प्रदूषित जल को साफ करना.
साफ-सफाई की देखरेख करने वाली सरकारी संस्था की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नदी के मुख्य भाग पर बसे 97 शहर हर दिन 2.9 अरब लीटर प्रदूषित जल छोड़ते हैं, जबकि इन्हें साफ करने की वर्तमान क्षमता केवल 1.6 अरब लीटर प्रतिदिन है.
इसका मतलब यह हुआ कि हर दिन एक अरब लीटर से अधिक प्रदूषित जल नदियों में प्रवेश करता है. इनमें सीवर के प्रदूषित जल भी शामिल हैं.
इसी रिपोर्ट का अनुमान है कि 2035 तक इस इलाक़े में हर दिन 3.6 अरब लीटर प्रदूषित जल छोड़े जाने लगेंगे.
रिपोर्ट यह भी कहती है कि 46 शहरों के 84 ट्रीटमेंट प्लांट में से 31 काम नहीं कर रहे हैं. वहीं, इसके अलावे 14 प्लांट अपनी क्षमता के हिसाब से पूरा काम नहीं कर पा रहे हैं.
गंगा की सफाई पर ख़र्च
सीवेज ट्रीटमेंट | 3.5 हज़ार करोड़ |
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नदी क्षेत्र में शौचालय निर्माण | 951 करोड़ |
तटों की सफाई | 709 करोड़ |
वानिकी परियोजनाएं | 114 करोड़ |
पानी की गुणवत्ता की | 38 करोड़ |
अनुसंधान और शिक्षा | 20 करोड़ |
ख़र्च करोड़ रुपए में (सितंबर 2018 तक)
Source: राष्ट्रीय गंगा सफाई योजना
प्रदूषण रोकने के लिए कई प्रयास भी किए गए हैं. कानपुर औद्योगिक क्षेत्र के चमड़ा उद्योग से निकलने वाले जहरीले पानी को गंगा में गिराने पर रोक लगा दी गई है.
धार्मिक आयोजनों पर इस्तेमाल होने वाले गंगा के स्नान क्षेत्रों को भी साफ किया गया है.
लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पिछले साल की जून की रिपोर्ट कहती है कि 41 में से सिर्फ चार जगह ही इनकी जांच में साफ़ या कम प्रदूषित पाए गए थे.
गंगा की सफाई की प्रगति पर सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के गंगा का पानी ही केवल पीने लायक है. यहां के पानी को किटाणुरहित किया गया था.
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि गंगा को साफ करने की दिशा में जितना काम होना चाहिए था उतना नहीं हुआ है. यहां तक की सरकार ने लक्ष्य को प्राप्त करने की समयसीमा भी बढ़ा दी है.
दिल्ली स्थित शोध संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरन्मेंट के चंद्र भूषण कहते हैं, शुरुआत के चार साल बाद, अब तक के प्रयासों से पानी की गुणवत्ता में कोई ख़ास बदलाव आने की उम्मीद नहीं दिख रही है."
उनका मानना है कि मार्च 2019 तक 80 फीसदी गंगा और मार्च 2020 तक पूरी नदी की सफाई का लक्ष्य निश्चित रूप से पूरा नहीं होगा.
अस्वीकरण:
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