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एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesबीते कई महीनों से आर्थिक विश्लेषक जिस बात की आशंका ज़ाहिर कर रहे थे, अब आंकड
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बीते कई महीनों से आर्थिक विश्लेषक जिस बात की आशंका ज़ाहिर कर रहे थे, अब आंकड़ों ने उसकी पुष्टि कर दी है.
ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक चीन की आर्थिक प्रगति की दर 1990 के बाद से सबसे धीमी रफ़्तार से आगे बढ़ रही है और पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर इसके असर को लेकर नए सिरे से चिंता ज़ाहिर की जा रही है.
अर्थव्यवस्था की प्रगति के आधिकारिक आंकड़े सोमवार को जारी हुए हैं. इसके मुताबिक साल 2018 में चीन की अर्थव्यवस्था 6.6 फ़ीसद की दर से बढ़ी.
इमेज कॉपीरइटAFP/Getty Imagesआर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक इसका असर भारत समेत पूरी दुनिया पर हो सकता है
दुनिया की एक तिहाई अर्थव्यवस्था पर चीन का असर
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है चीन
मंदी से चीन को निर्यात करने वाले देशों पर असर होगा
नौकरियों पर हो सकता है असर
चीन ने जिन देशों में निवेश किया है वहां असर दिख सकता है.
भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक चीन ने 2014 में भारत में 116 बिलियन डॉलर का निवेश किया था.
2017 में चीन का भारत में निवेश बढ़कर 160 बिलियन डॉलर हो गया था.
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सोमवार को जारी आंकड़े हैरान करने वाले नहीं है. आर्थिक प्रगति की दर को लेकर पहले से ही ऐसे अनुमान ज़ाहिर किए गए थे. लेकिन इन आंकड़ों ने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को लेकर जो चिंताएं ज़ाहिर की जा रही थीं, उन्हें बढ़ा दिया है.
चीन में आर्थिक प्रगति की रफ़्तार घटने का पूरी दुनिया पर असर हो सकता है. चीन और अमरीका के बीच जारी व्यापार युद्ध की वजह से मौजूदा स्थितियां और गंभीर नज़र आती हैं.
सोमवार को जो आधिकारिक आंकड़े सामने आए हैं, उनके मुताबिक वैश्विक आर्थिक संकट के बाद से चीन में एक तिमाही के दौरान अर्थव्यवस्था सबसे धीमी रफ़्तार से बढ़ी है.
चीन की अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वालों ने इस देश की आर्थिक प्रगति की दर (जीडीपी) के आंकड़ों को लेकर सतर्कता बरतने की सलाह दी है. इन आंकड़ों को चीन की विकास दर के लिए अहम संकेत माना जा रहा है.
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इमेज कॉपीरइटGetty Imagesअसर क्या होगा?
बीबीसी की एशिया बिज़नेस संवाददाता करिश्मा वासवानी का आकलन है कि चीनी अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ़्तार नई ख़बर नहीं है. चीन बीते कई सालों से कहता रहा है कि वो प्रगति की मात्रा नहीं बल्कि गुणवत्ता पर ध्यान लगाएगा.
लेकिन फिर भी अर्थवस्था की सुस्त रफ़्तार चिंता की बात है.
चीन की अर्थव्यवस्था का पहिया सुस्त रफ़्तार से आगे बढ़ेगा तो बाकी दुनिया की तरक्की भी धीमी होगी.
दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था का एक तिहाई हिस्सा चीन पर निर्भर है. दुनिया के तमाम देश चीन को निर्यात करते हैं. इसका असर नौकरियों और निर्यात पर होगा.
चीन की जीडीपी घटेगी तो उसके लिए कर्ज़ के पहाड़ से निपटना भी चुनौती होगी. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए दम दिखाने में सक्षम मानी जाती है फिर भी इस स्थिति को गंभीर चुनौती माना जा रहा है.
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इमेज कॉपीरइटAFP/Getty ImagesImage caption चीन और अमरीका के बीच ट्रेड वार की वजह से मंदी का संकट गंभीर होने का ख़तरा जाहिर किया जा रहा है. मंदी की चेतावनी
बीते कुछ महीने से चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी को लेकर चिंता जताई जा रही थी. कई कंपनियां भी इसे लेकर चेतावनी दे रही थीं.
इस महीने की शुरुआत में एप्पल ने आगाह किया था कि चीन में मंदी की वजह से उसकी बिक्री प्रभावित होगी.
कार बनाने वाली कंपनियों और दूसरे तमाम कंपनियों ने भी कहा था कि अमरीका और चीन के बीच जारी ट्रेड वार का असर दिखाई देगा.
चीन की सरकार नीतियों में बदलाव पर भी ध्यान दे रही है. वो अपनी अर्थव्यवस्था की प्रगति को निर्यात के बजाए घरेलू उपभोग पर निर्भर करना चाहती है.
चीन में नीति तैयार करने वालों ने हालिया महीनों के दौरान देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने वाले उपाय आज़माने शुरू कर दिए हैं.
इन उपायों में निर्माण परियोजनाओं को बढ़ाना, कुछ करों में कटौती और बैंकों के रिज़र्व में कमी लाना शामिल है.
अर्थशास्त्री जूलियन प्रिचार्ड का कहना है कि साल 2018 के अंत में चीन की अर्थव्यवस्था कमज़ोर रही लेकिन जितनी आशंका थी, उसके मुक़ाबले नतीजे बेहतर रहे.
उनका कहना है, "दुनिया भर की अर्थव्यवस्था में दिख रही मंदी और क्रेडिट वृद्धि के भी कमजोर रहने की आशंका है... ऐसे में चीन की आर्थिक प्रगति दर और गिर सकती है. साल की दूसरी छमाही में इसे स्थिर होना चाहिए."
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